अभाविप बनाम विधि विभाग हुआ विश्वविद्यालय परिसर
दीनदयाल उपाध्याय गोरखपुर विश्वविद्यालय परिसर में हुए उपद्रव के बाद माहौल गर्म।
जागरण संवाददाता, गोरखपुर : दीनदयाल उपाध्याय गोरखपुर विश्वविद्यालय परिसर में हुए उपद्रव के बाद पूरा परिसर दो खेमों में बंटा नजर आया। एक खेमा वह जो विधि विभाग के साथ है दूसरा वह जो अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद के कार्यकर्ताओं पर दोषारोपण नहीं करने की बात कह रहा है। चुनाव निरस्त होने से छात्रों के एक बड़े वर्ग में निराशा है।
मंगलवार सुबह 11 बजे के करीब कक्षाएं चल रही थीं। प्रत्याशी समर्थक नारेबाजी कर रहे थे। शिक्षक डॉ. अभय मल्ल ने समझाया कि विधि संकाय में पहले भी चुनावों में कक्षाओं के बीच नारेबाजी नहीं किए जाने की परंपरा रही है। इसी बीच एक युवक अधिष्ठाता कार्यालय में पोस्टर चिपकाने लगा। शिक्षक डॉ. शिवपूजन सिंह ने मना किया तो वह भिड़ गया, हाथापाई शुरू हो गई। अन्य शिक्षक बचाव में पहुंचे तो उनसे भी दुर्व्यवहार किया गया। कुर्सिया व गमले तोड़ कर शिक्षकों को मारने का प्रयास किया गया। तब तक कक्षाएं छोड़ कर विधि संकाय के सभी शिक्षक व छात्र बाहर आ गए। तब अभाविप कार्यकर्ता बाहर भागे और मुख्य द्वार पर आकर धरना प्रदर्शन करने लगे। पीछे से विधि संकाय के छात्र मुख्य द्वार पर पहुंचे और दोनों के बीच जमकर मारपीट होने लगी। माहौल संभालने के लिए पुलिस ने हल्का बल प्रयोग किया, जिसमें अनिल दुबे और आलोक सहित करीब आधा दर्जन छात्र घायल हुए। एक छात्र का सिर फट गया। इन दोनों को पुलिस ने कुछ देर के लिए हिरासत में लिया। शिक्षकों-कर्मचारियों ने कहा, चुनाव में सहयोग नहीं करेंगे : परिसर में शिक्षक से अभद्रता, मारपीट और पुलिसिया कार्रवाई से आहत शिक्षकों से आपात बैठक कर छात्रसंघ चुनाव के बहिष्कार का एलान किया। संघ अध्यक्ष प्रो. विनोद सिंह ने कहा कि सभी शिक्षक इस घटना से आक्रोशित हैं। कोई भी शिक्षक मार खा कर चुनाव नहीं कराएगा। वहीं कर्मचारी संघ के अध्यक्ष महेन्द्र नाथ सिंह, डॉ. बीएन सिंह ने भी अराजक माहौल के बीच चुनाव में किसी प्रकार का सहयोग नहीं करने की घोषणा की। बदली परिस्थितियों के बीच कुलपति ने चुनाव एडवायजरी कमेटी की बैठक बुलाई। हालात पर चर्चा के बाद कमेटी के सदस्यों ने कहा कि चुनाव में विवि प्रशासन की जितनी भूमिका होती है, उससे अधिक नियमों का पालन करने व कराने में छात्रों की भी भूमिका होती है। छात्रनेता मनमानी करने से बाज नहीं आ रहे हैं। विद्यार्थियों के चुनाव में बड़े राजनीतिक दलों के सीधे हस्तक्षेप पर भी चर्चा हुई। कमेटी ने निर्णय लिया कि इस हालात में चुनाव नहीं कराए जा सकते।
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विद्यार्थी परिषद के कार्यकर्ता चुनाव को विषाक्त बना रहे हैं। शिक्षक से अभद्रता स्वीकार नहीं की जा सकती। दरअसल उन्हें यह अहसास हो गया था कि वह चुनाव नहीं जीत रहे, इसी वजह से कुचक्र रचते हुए मंगलवार को मारपीट की। विद्यार्थी परिषद की कुत्सित राजनीति का दंड आम छात्र भुगत रहा है, यह परिसर आज का दिन हमेशा याद रखेगा।
अनिल दुबे
प्रत्याशी, अध्यक्ष
----------------- विधि विभाग में जो कुछ हुआ, उसकी पृष्ठभूमि पहले से ही तैयार हो रही थी। विश्वविद्यालय प्रशासन एक प्रत्याशी को जिताने के लिए कमर कस के तैयार था। इसी वजह से आयु सीमा भी बढ़ा दी गई। स्वयं कुलपति पक्षकार बनकर एक प्रत्याशी को जिताने पर आमादा थे। विश्वविद्यालय प्रशासन निष्पक्ष चुनाव नहीं कराना चाहता।
सौरभ कुमार गौड़
महानगर मंत्री
अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद
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विधि विभाग के अधिष्ठाता प्रो. जितेंद्र मिश्र शुरू से ही अभाविप विरोधी रहे हैं। सारा कुचक्र उन्हीं का रचा हुआ है। जो कुछ हुआ उनके इशारे पर हुआ। चुनाव का समय है, क्या प्रत्याशी के समर्थक प्रचार नहीं करेंगे। विद्यार्थी परिषद अनुशासित संगठन है। शिक्षकों से मारपीट हम सोच भी नहीं सकते। फिर भी अगर हम दोषी हों तो सजा दें।
सत्यभान सिंह
प्रांत संगठन मंत्री
अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद
---------- विभाग में शिक्षकों से दुर्व्यवहार से हम सभी आहत हैं। इसकी जितनी निंदा की जाए कम है। संबंधित शिक्षक परिसर के लिए नए थे, ऐसे में वह युवकों को पहचान नहीं सके, लेकिन छात्रों ने बताया है कि उनके हाथ में अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद के पोस्टर थे, उसे वह चिपकाने आए थे। विश्वविद्यालय प्रशासन से अनुरोध है कि संबंधित युवकों पर सख्त कार्रवाई कराई जाए।
प्रो. जितेंद्र मिश्र
अधिष्ठाता
विधि संकाय
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शिक्षकों से दुर्व्यवहार होगा तो कोई भी छात्र चुप नहीं रहेगा। आज परिसर में बेकसूर छात्र पीटे गए, विश्वविद्यालय प्रशासन मूकदर्शक बना रहा। विद्यार्थी परिषद के कुचक्र का परिणाम पूरा विश्वविद्यालय भुगत रहा है। हम पर पड़ीं एक-एक लाठियों की चोट विश्वविद्यालय के हर आम छात्र तक पहुंची है। विवि प्रशासन की एक संगठन के प्रति निष्ठा का परिणाम आज सभी ने देखा।
आलोक सिंह
प्रत्याशी, महामंत्री
---------- जो कुछ हुआ है, वह दुख देने वाला है और निंदनीय है। विश्वविद्यालय प्रशासन को छात्रों के भविष्य की तनिक भी चिंता होती तो व छात्रों की भावनाओं से खिलवाड़ नहीं करती। चुनाव अपने तय समय पर ही होने चाहिए, अन्यथा हम सभी यही मानेंगे कि कहीं न कहीं चुनाव स्थगन सरकार के दबाव में हुआ है।
एश्वर्या पांडेय
प्रत्याशी, छात्रसंघ