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विरासत : पूर्वांचल के आंचल में दुर्लभ भित्तिचित्रों की थाती Gorakhpur News

इंटेक देश भर के दुर्लभ भित्तिचित्रों को संजोने की तैयारी कर रहा है। इसके लिए इंटेक की ओर से एक निर्देशिका तैयार की जा रही है जिसमें भित्तिचित्र स्थलों के नाम दर्ज किए जा रहे हैं।

By Pradeep SrivastavaEdited By: Published: Thu, 27 Jun 2019 02:13 PM (IST)Updated: Fri, 28 Jun 2019 10:29 AM (IST)
विरासत : पूर्वांचल के आंचल में दुर्लभ भित्तिचित्रों की थाती Gorakhpur News
विरासत : पूर्वांचल के आंचल में दुर्लभ भित्तिचित्रों की थाती Gorakhpur News

डॉ. राकेश राय, गोरखपुर। क्या आपको पता है कि पूर्वांचल की थाती में दुर्लभ भित्तिचित्र हैं। और वो भी सैकड़ों वर्ष पुराने। नहीं जानते हैं तो जल्द जान जाएंगे। माध्यम बनेगा नेशनल ट्रस्ट फॉर आर्ट एंड कल्चर हेरिटेज 'इंटेक', जो देश भर के प्राचीन दुर्लभ भित्तिचित्रों को संजोने की तैयारी कर रहा है। इसके लिए इंटेक की ओर से एक निर्देशिका तैयार की जा रही है, जिसमें भित्तिचित्र स्थलों के नाम दर्ज किए जा रहे हैं। इसी क्रम में केंद्रीय नेतृत्व के निर्देश पर इंटेक के गोरखपुर चेप्टर की टीम ने भी पूर्वांचल के सभी जिलों में भित्तिचित्र स्थलों को चिन्हित करना शुरू किया है।

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चिन्हीकरण के क्रम में गोरखपुर में ऐसे 54 स्थल पाए गए हैं, जहां भित्तिचित्रों के प्रमाण मिले हैं। इनमें चार स्थलों पर आज भी सैकड़ों वर्ष पुराने दुर्लभ भित्तिचित्र मौजूद हैं, हालांकि देखरेख के अभाव में वह अपने अस्तित्व के लिए संघर्ष कर रहे हैं। गोरखपुर के जिन स्थलों पर प्राचीन भित्तिचित्र आज भी मौजूद पाए गए हैं, उनमें गोरखपुर गोला क्षेत्र के रामामऊ का ठाकुरद्वारा मंदिर, गोरखनाथ क्षेत्र का दाऊजी मंदिर, डेईडीहा बड़हलगंज का शंकर बाबा मंदिर और पीपीगंज का दुर्गा माता मंदिर शामिल हैं।

गोला क्षेत्र का ठाकुरद्वारा मंदिर तो 300 वर्ष पुराना है। इसमें  प्राकृतिक रंगों से 841 वर्गफीट में भित्तिचित्र बनाए गए हैं। इन भित्तिचित्रों में रामायण काल के प्रमुख प्रसंगों को दर्शाया गया है। गोरखनाथ क्षेत्र के दाऊजी मंदिर में बने भित्तिचित्रों का इतिहास भी 400 वर्ष पुराना है। डेईडीहा और पीपीगंज के भित्तिचित्र भी करीब 300 वर्ष पुराने हैं।

क्या है भित्तिचित्र कला

भित्तिचित्र का अर्थ है, ऐसा चित्र जो दीवार पर बनाया गया हो। भित्तिचित्र कला  सबसे पुरानी चित्रकला है। प्रागैतिहासिक युग के ऐतिहासिक रिकॉर्ड में पहले यह चित्र मिट्टी के बर्तन पर बनाये जाते थे, लेकिन कुछ समय बाद लोगों ने यह कार्य दीवारों पर भी करना शुरू कर दिया। बाद में यह कला चित्रकला की विधा के रूप में विकसित हो गई।

सुंदरीकरण के फेर विलुप्त हो रहे दुर्लभ भित्तिचित्र : इं. कंडोई

इंटेक के गोरखपुर चेप्टर के संयोजक इं. महावीर प्रसाद कंडोई बताते हैं कि भित्तिचित्रों के चिन्हीकरण के दौरान बहुत से स्थलों पर लोगों ने बताया कि वहां के मंदिरों में भित्तिचित्र मौजूद थे लेकिन सुंदरीकरण के फेर में उनका अस्तित्व समाप्त हो गया। ज्यादातर मंदिरों मेंं भित्तिचित्रों के ऊपर टाइल्स लगा दिए गए। जिन स्थानों पर प्राचीन भित्तिचित्र मिले भी हैं, वह भी अपने अस्तित्व से संघर्ष कर रहे हैं। ऐसा इन चित्रों की महत्ता की जानकारी न होने के वजह से हुआ है। इंटेक इनके संरक्षण के लिए लोगों को जागरूक कर रहा है। आवश्यकता पडऩे पर संरक्षित रखने की तकनीक और आर्थिक सहायता का भी प्रबंध कराया जाएगा। इसके लिए मंदिरों की देखरेख करने वालों से संपर्क भी साधा जा रहा है। जिन प्राचीन निजी घरों में दुर्लभ भित्तिचित्र मौजूद हैं, उनसे अपील की जा रही है कि वह उसे संरक्षित रखने का प्रयास करें। वह कोई मामूली चित्र नहीं बल्कि थाती है।

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