सोशल मीडिया बदल रहा है लोगों विचार धारा, शोध में हुआ खुलासा Gorakhpur news
आभासी कही जाने वाली सोशल मीडिया हमारे सोच-विचार को काफी हद तक बदल रही है। एक शोध में इसका खुलासा हुआ है।
By Edited By: Published: Sat, 07 Sep 2019 08:12 AM (IST)Updated: Sun, 08 Sep 2019 12:20 PM (IST)
गोरखपुर, क्षितिज पांडेय। आभासी कही जाने वाली सोशल मीडिया हमारे सोच-विचार पर किस कदर असर डाल रही है, इसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि इसमें हमारी राजनीतिक विचारधारा को बदलने तक का माद्दा है। फेसबुक पर होने वाले बहस-मुबाहिसों का असर इतना है कि वषरें की राजनीतिक वैचारिक प्रतिबद्धता भी बदलने लगी है।
फेसबुक पोस्ट की राजनीतिक वैचारिकी को तय करने में अहम भूमिका
यही नहीं फेसबुक से बाहर भी इन पोस्ट-कमेंट की पहुंच घरेलू बैठकों में हो चली है और एक चेन रिएक्शन की तरह फेसबुक से बाहर के लोगों को भी अप्रत्यक्ष रूप से इन बहसों से जोड़ रही है। युवाओं पर हुआ अध्ययन दीनदयाल उपाध्याय गोरखपुर विश्वविद्यालय के समाजशास्त्र विभाग में एक शोधार्थी की युवाओं पर किए गए एक अध्ययन में कुछ ऐसी ही बातों की पुष्टि हुई है। शोध में करीब 51 फीसद युवाओं ने माना है कि फेसबुक पोस्ट उनकी राजनीतिक वैचारिकी को तय करने में अहम भूमिका निभा रही है।
फेसबुक बदल रहा है लोगों की अवधारणा
खास बात यह कि इन युवाओं में से करीब 58 फीसद ऐसे थे जिन्होंने फेसबुक पर प्रत्यक्ष रूप से किसी राजनीतिक परिचर्चा में हिस्सा नहीं लिया, बार-बार पोस्ट-कमेंट पढ़ते और खुद में गुनते रहे, जिसका असर उनकी राजनीतिक विचारधारा पर पड़ा। स्पष्ट है कि उन्होंने सक्रिय रूप से राजनीतिक बहसों में हिस्सा नहीं लिया,लेकिन उसके असर से बचे भी नहीं रह सके। ऐसे बदली नजरिया एक अहम बात यह भी सामने आई कि राजनीतिक दलों के भ्रष्टाचार को लेकर लोगों की अवधारणा पर फेसबुक पोस्ट व्यापक असर डालते हैं। 16-35 वर्ष आयु वर्ग के करीब 60.4 फीसद लोगों ने माना कि राजनीतिक दलों के भ्रष्टाचार के पक्ष में पोस्ट उन्होंने पढ़े और परिजनों-दोस्तों के बीच इसे लेकर चर्चा भी की, जिससे उनका भी नजरिया बदला।
300 युवाओं हुआ है अध्ययन
विश्वविद्यालय के समाजशास्त्र विभाग में शोधार्थी बरुण प्रशात शर्मा ने कुल 300 युवाओं पर अध्ययन किया है। यूजीसी रेफरीड जर्नल 'शोध प्रवाह' के ताजा अंक में यह शोध प्रकाशित हुआ है। बरुण ने फेसबुक पर राजनीतिक बहसों में हिस्सा लेने, परिचर्चा से प्रभावित होने, राजनीतिक भ्रष्टाचार से जुड़े पोस्ट के असर सहित अलग-अलग सवाल लोगों से पूछे थे। चेन रिएक्शन से बढ़ता जाता है असर बरुण ने बताया कि फेसबुक पोस्ट का असर प्रत्यक्ष से कहीं ज्यादा अप्रत्यक्ष है। सीधे पोस्ट पढ़कर प्रभावित होने वालों की संख्या ही फेसबुक के असर की असली पहचान नहीं कराती।
सभी राजनीतिक दलों के हैं सोशल मीडिया सेल
दरअसल, हम जब किसी चीज को पढ़ते हैं, फिर उस पर दूसरों से चर्चा करते हैं, वह प्रभावित होता है तो फिर किसी तीसरे तक वह तर्क-विचार पहुंचता है, इस तरह एक चेन बनती चली जाती है। हर दल के हैं सोशल मीडिया सेल सोशल मीडिया सिर्फ चेहरा दिखाने का माध्यम नहीं विश्वविद्यालय के समाजशास्त्र विभाग के प्रोफेसर शफीक अहमद के मुताबिक जाहिर है कि सोशल मीडिया सिर्फ चेहरा दिखाने का माध्यम नहीं बल्कि लोगों को जोड़ने, यादों को सहेजने, संवाद करने, उनमें चेतना फैलाने व विमर्श पैदा करने एवं विभिन्न सरोकारों पर जीवंत एवं अनंत बहस का उत्कृष्ट माध्यम है। सोशल मीडिया के बढ़ते असर को देखते हुए अब कमोबेश सभी राजनीतिक दलों ने अपने सोशल मीडिया सेल स्थापित किए हैं।
फेसबुक पोस्ट की राजनीतिक वैचारिकी को तय करने में अहम भूमिका
यही नहीं फेसबुक से बाहर भी इन पोस्ट-कमेंट की पहुंच घरेलू बैठकों में हो चली है और एक चेन रिएक्शन की तरह फेसबुक से बाहर के लोगों को भी अप्रत्यक्ष रूप से इन बहसों से जोड़ रही है। युवाओं पर हुआ अध्ययन दीनदयाल उपाध्याय गोरखपुर विश्वविद्यालय के समाजशास्त्र विभाग में एक शोधार्थी की युवाओं पर किए गए एक अध्ययन में कुछ ऐसी ही बातों की पुष्टि हुई है। शोध में करीब 51 फीसद युवाओं ने माना है कि फेसबुक पोस्ट उनकी राजनीतिक वैचारिकी को तय करने में अहम भूमिका निभा रही है।
फेसबुक बदल रहा है लोगों की अवधारणा
खास बात यह कि इन युवाओं में से करीब 58 फीसद ऐसे थे जिन्होंने फेसबुक पर प्रत्यक्ष रूप से किसी राजनीतिक परिचर्चा में हिस्सा नहीं लिया, बार-बार पोस्ट-कमेंट पढ़ते और खुद में गुनते रहे, जिसका असर उनकी राजनीतिक विचारधारा पर पड़ा। स्पष्ट है कि उन्होंने सक्रिय रूप से राजनीतिक बहसों में हिस्सा नहीं लिया,लेकिन उसके असर से बचे भी नहीं रह सके। ऐसे बदली नजरिया एक अहम बात यह भी सामने आई कि राजनीतिक दलों के भ्रष्टाचार को लेकर लोगों की अवधारणा पर फेसबुक पोस्ट व्यापक असर डालते हैं। 16-35 वर्ष आयु वर्ग के करीब 60.4 फीसद लोगों ने माना कि राजनीतिक दलों के भ्रष्टाचार के पक्ष में पोस्ट उन्होंने पढ़े और परिजनों-दोस्तों के बीच इसे लेकर चर्चा भी की, जिससे उनका भी नजरिया बदला।
300 युवाओं हुआ है अध्ययन
विश्वविद्यालय के समाजशास्त्र विभाग में शोधार्थी बरुण प्रशात शर्मा ने कुल 300 युवाओं पर अध्ययन किया है। यूजीसी रेफरीड जर्नल 'शोध प्रवाह' के ताजा अंक में यह शोध प्रकाशित हुआ है। बरुण ने फेसबुक पर राजनीतिक बहसों में हिस्सा लेने, परिचर्चा से प्रभावित होने, राजनीतिक भ्रष्टाचार से जुड़े पोस्ट के असर सहित अलग-अलग सवाल लोगों से पूछे थे। चेन रिएक्शन से बढ़ता जाता है असर बरुण ने बताया कि फेसबुक पोस्ट का असर प्रत्यक्ष से कहीं ज्यादा अप्रत्यक्ष है। सीधे पोस्ट पढ़कर प्रभावित होने वालों की संख्या ही फेसबुक के असर की असली पहचान नहीं कराती।
सभी राजनीतिक दलों के हैं सोशल मीडिया सेल
दरअसल, हम जब किसी चीज को पढ़ते हैं, फिर उस पर दूसरों से चर्चा करते हैं, वह प्रभावित होता है तो फिर किसी तीसरे तक वह तर्क-विचार पहुंचता है, इस तरह एक चेन बनती चली जाती है। हर दल के हैं सोशल मीडिया सेल सोशल मीडिया सिर्फ चेहरा दिखाने का माध्यम नहीं विश्वविद्यालय के समाजशास्त्र विभाग के प्रोफेसर शफीक अहमद के मुताबिक जाहिर है कि सोशल मीडिया सिर्फ चेहरा दिखाने का माध्यम नहीं बल्कि लोगों को जोड़ने, यादों को सहेजने, संवाद करने, उनमें चेतना फैलाने व विमर्श पैदा करने एवं विभिन्न सरोकारों पर जीवंत एवं अनंत बहस का उत्कृष्ट माध्यम है। सोशल मीडिया के बढ़ते असर को देखते हुए अब कमोबेश सभी राजनीतिक दलों ने अपने सोशल मीडिया सेल स्थापित किए हैं।
Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें