गोरखपुर शहर में नहीं है कूड़ा निस्तारण की व्यवस्था, 14 साल ढूढने के बाद मिली जमीन Gorakhpur News
वर्ष 2006 में प्लांट के लिए बने प्रस्ताव की फाइल को दोबारा निकाला गया है। तब प्लांट लगाने के लिए मिले 12 करोड़ रुपये में से बचे रुपये की जानकारी ली जा रही है।
गोरखपुर, जेएनएन। 14 साल बाद एक बार फिर शहर का कूड़ा निस्तारित होने की उम्मीद जगी है। भटहट ब्लॉक अंतर्गत जंगल डुमरी नंबर दो के बांस स्थान पर जमीन का प्रस्ताव बनने के साथ ही नगर निगम प्रशासन सॉलिड वेस्ट मैनेजमेंट प्लांट लगाने की दिशा में सक्रिय हो गया है। गोरखपुर शहर से 500 मीट्रिक टन से ज्यादा कूड़ा निकलता है। इसके लिए 225 गाडिय़ों में भरकर कूड़ा शहर के बाहर जाता है।
2006 में बना था प्रस्ताव, 12 करोड़ रुपये भी मिले थे
वर्ष 2006 में प्लांट के लिए बने प्रस्ताव की फाइल को दोबारा निकाला गया है। तब प्लांट लगाने के लिए मिले 12 करोड़ रुपये में से बचे रुपये की जानकारी ली जा रही है। शहर का कूड़ा निस्तारित करने की आज तक कोई व्यवस्था ही नहीं बन सकी है। स्थानीय लोगों के विरोध के बीच वर्तमान में कूड़ा एकला बांध पर गिराया जा रहा है।
25 एकड़ जमीन का प्रस्ताव
दो फरवरी को महापौर सीताराम जायसवाल, ज्वाइंट मजिस्ट्रेट सदर गौरव सिंह सोगरवाल, अपर नगर आयुक्त डीके सिन्हा, चीफ इंजीनियर सुरेश चंद ने बांस स्थान पर सीलिंग की 25 एकड़ जमीन को सॉलिड वेस्ट मैनेजमेंट प्लांट लगाने के लिए उपयुक्त पाया था। जमीन समतल है और चिलुआ नदी से कुछ दूरी पर है। साथ ही दो किलोमीटर से ज्यादा क्षेत्रफल में आबादी भी नहीं है। सब कुछ अच्छा दिखने पर प्रशासन ने जमीन का प्रस्ताव तैयार किया।
महेसरा और गीडा में हुआ विरोध
नगर निगम ने सबसे पहले महेसरा में कूड़ा निस्तारण की योजना बनाई थी। इस पर काम भी शुरू हो गया था लेकिन नागरिकों ने विरोध शुरू कर दिया था। एकला बांध पर कूड़ा गिराने का नागरिक लगातार विरोध करते हैं। नगर निगम ने गीडा क्षेत्र में कूड़ा निस्तारण के लिए जमीन देखी। जमीन फाइनल भी कर ली गई लेकिन वहां भी लोगों ने विरोध कर दिया।
पांच मेगावाट बिजली का होना था उत्पादन
वर्ष 2006 में जल निगम की संस्था सीएंडडीएस (कंस्ट्रक्शन एंड डिजाइन सर्विस) को सॉलिड वेस्ट मैनेजमेंट प्लांट लगाने के लिए 12 करोड़ रुपये का बजट दिया गया था। योजना को वर्ष 2012 में पूरा करने का लक्ष्य रखा गया था। इसके तहत शहर के कचरे का समुचित प्रबंधन कर पांच मेगावाट बिजली का उत्पादन करना था। घर-घर जाकर कूड़ा समेटने का काम भी प्लांट लगाने वाली कंपनी को देना था। लेकिन चार साल में जमीन फाइनल हो सकी। नगर निगम प्रशासन ने वर्ष 2010 में महेसरा में 11.567 हेक्टेयर जमीन अधिग्रहीत कर निर्माण के लिए कार्यदायी संस्था जलनिगम को सौंपा।
डेढ़ साल में बंद हो गया काम
जल निगम ने दिसंबर 2010 से काम शुरू किया। प्लांट स्थल पर बाउंड्री, वर्कर रेस्ट रूम, इलेक्ट्रिकल पैनल और प्रशासनिक भवन का कुछ काम हुआ था, लेकिन बारिश होते ही काम ठप हो गया। गड्ढे में जमीन होने के कारण महीनों जलभराव रहा। फिर जमीन किनारे पांच फीट ऊंचा बांध बनाने और डिजाइन में बदलाव का प्रस्ताव बना लेकिन बात आगे नहीं बढ़ सकी। कार्यदायी संस्था ने जून वर्ष 12 से निर्माण कार्य पूरी तरह ठप कर दिया।
बिजली का भी होगा उत्पादन
इस संबंध में नगर आयुक्त अंजनी कुमार सिंह का कहना है कि जंगल डुमरी नंबर दो के बांस स्थान पर सॉलिड वेस्ट मैनेजमेंट प्लांट लगाने के लिए जमीन फाइनल की गई है। सीएंडडीएस को पहले ही 12 करोड़ रुपये दिए गए थे। इन रुपयों में से निर्माण पर कुछ खर्च हुआ था। बाकी रुपये बचे हैं। प्लांट लगाकर बिजली उत्पादन की योजना बन रही है। प्लांट लगाने वाली एजेंसी ही डोर टू डोर कूड़ा कलेक्शन भी करेगी।