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Coronavirus: भारतीय चिकित्सा पद्धति की तरफ आकर्षित हुई दुनिया Gorakhpur News

नाथ परंपरा में योग और आयुर्वेद का अत्यंत महत्वपूर्ण स्थान रहा है।

By Satish ShuklaEdited By: Published: Fri, 21 Aug 2020 05:29 PM (IST)Updated: Fri, 21 Aug 2020 05:29 PM (IST)
Coronavirus: भारतीय चिकित्सा पद्धति की तरफ आकर्षित हुई दुनिया Gorakhpur News
Coronavirus: भारतीय चिकित्सा पद्धति की तरफ आकर्षित हुई दुनिया Gorakhpur News

गोरखपुर, जेएनएन। लखनऊ के वरिष्ठ आयुर्वेदाचार्य वैद्य अजय दत्त शर्मा ने कहा कि आयुर्वेद वैदिक काल से लेकर आजतक स्वस्थ मानव जीवन एवं प्रगतिशील मानव, सभ्यता और संस्कृति का मूलाधार बना हुआ है। कोरोना काल में भारतीय चिकित्सा पद्धति की तरफ दुनिया आकर्षित हुई है। नाथ परंपरा में योग और आयुर्वेद का अत्यंत महत्वपूर्ण स्थान रहा है। नाथ योगियों ने योग और आयुर्वेद के सिद्धांतों को लोक-कल्याण का आधार मानकर जन-जन तक पहुंचाने का श्रमसाध्य कार्य किया है। साहित्‍य में इसका उल्‍लेख मिलता है।

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ऑनलाइन व्याख्यानमाला में बोले वैद्य अजय दत्‍त शर्मा

वैद्य अजय दत्त शर्मा यहां महाराणा प्रताप पीजी कॉलेज, जंगल धूसड़ में युगपुरुष ब्रह्मलीन महंत दिग्विजयनाथ की 125वीं जयंती एवं राष्ट्रसंत ब्रह्मलीन महंत अवेद्यनाथ के जन्म शताब्दी वर्ष की स्मृति में आयोजित ऑनलाइन व्याख्यानमाला को संबोधित कर रहे थे। अध्यक्षता प्राचार्य डॉ. प्रदीप कुमार राव, स्वागत डॉ. अभय श्रीवास्तव व संचालन सुबोध मिश्र ने किया।

ऋषियों की परिकल्पना को साकार करने में महंत दिग्विजयनाथ की भूमिका अहम

ब्रह्मलीन महंतद्वय की स्मृति में दिग्विजयनाथ पीजी कॉलेज में आयोजित ऑनलाइन व्याख्यानमाला में उच्चतर शिक्षा सेवा चयन आयोग के अध्यक्ष प्रो. ईश्वर शरण विश्वकर्मा मुख्य वक्ता रहे। उन्होंने कहा कि लोक साधना और शिक्षा संस्कार की जो परिकल्पना ऋषि मुनियों ने की थी, उसे साकार करने की दिशा में महंत दिग्विजयनाथ का योगदान अप्रतिम है।

राम मंदिर में यह है गोरखनाथ मंदिर का योगदान

महाराणा प्रताप शिक्षा परिषद के अध्यक्ष एवं पूर्वांचल विश्वविद्यालय, जौनपुर के पूर्व कुलपति प्रो. यूपी सिंह ने कहा कि गोरक्ष पीठ के महंत दिग्विजयनाथ ने अयोध्या में श्रीराम मन्दिर निर्माण का जो प्रयास किया था, उसे महंत अवेद्यनाथ ने अपने कुशल मार्गदर्शन में आगे बढाया। आज उनके उत्तराधिकारी योगी आदित्यनाथ की देखरेख में भव्य मन्दिर निर्माण का शुभारंभ इस संत परंपरा के तेजस्वी योगदान को दर्शाता है। वक्ताओं का स्वागत डॉ. राजशरण शाही और आभार ज्ञापन प्राचार्य डॉ. शैलेन्द्र प्रताप सिंह ने किया।


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