पुरखों की जड़ें खोजने हालैंड से यहां आकर घूम रहे गांव-गांव
1908 को बस्ती जनपद के मझौआ गांव से काफी की खेती करने के लिए सूरीनाम चला गया था परिवार। अब बस्ती में आकर खोज रहे पुरखों का गांव।
गोरखपुर/बस्ती, (गिरिजेश त्रिपाठी)। हजारों मील दूर रहकर भी नरदेव चरन को अपने वतन से उतना ही मोह है, जितना हर हिंदुस्तानी को है। तभी तो वह अपने पूर्वजों की खोज में सरहद पार से अपने तीन मित्रों के साथ वतन चले आए। काफी खोजबीन करने के बाद भी अभी तक उन्हें अपनी दादी के गांव का पता नहीं पाया है। फिर भी तसल्ली इस बात की है कि उन्हें विविधताओं से भरे इस देश के भ्रमण का अवसर मिला। हालैंड से अपने दोस्त कृष्णा दत्त पंचू, हैंड्रिड बस्कित व राजेंद्र प्रसाद जग्गी के साथ अपनी दादी इलाइची देवी का गांव खोजने इन दिनों भारत आए हुए हैं।
1908 में सूरीनाम के लिए रवाना हुए थे
बताया कि उनकी दादी इलाइची देवी ओरी की संतान थी। 11 जनवरी 1908 को बस्ती जनपद के सोनहा थाना क्षेत्र के मझौआ गांव से काफी की खेती करने के लिए पांच साल के कांट्रैक्ट पर अंग्रेजों के साथ वह कलकत्ता गंगाज नामक पानी की जहाज से सूरीनाम के लिए रवाना हुई थीं। 19 वर्ष की उम्र में दादी इलाइची 17 फरवरी 1908 को पहुंच गई थीं। उसी जहाज से 21 वर्ष के बनकटी वर्तमान में लालगंज थाना क्षेत्र के सुफाई गांव निवासी हरदयाल पुत्र चरन भी गए थे। जहां दोनों ने शादी कर ली। जिनसे मंगरी देवी, राम दयाल, राम नरायन, शिव नरायन व इतवरिया समेत कुल पांच बच्चे पैदा हुए।
सूरीनाम जाकर से हालैंड बसे
बाद में यह लोग सूरीनाम से हालैंड जाकर बस गए। शिव नरायन के पुत्र नरदेव को हालैंड में आयकर विभाग में नौकरी मिल गई थी। बताते हैं कि उनके मन में हमेशा से अपने पुरखों का गांव देखने की इच्छा थी। सेवानिवृत्त होने के बाद अपनी इस इच्छा को पूरा करने को यहां आ गए। काफी खोजबीन के बाद भी अभी उन्हें दादी का गांव नहीं मिल सका है। सोनहा थाना क्षेत्र में मझौआ नाम से कई गांव हैं। वे अपने मित्रों के साथ मझौआ राम प्रसाद, मझौआ लाल ङ्क्षसह के अलावा वाल्टरगंज थाना क्षेत्र के मझौआ लाला, मझौआ खजुरी, मझौआ बाबा व मझौआ मीर भी गए। थकहार कर सोनहा थाने पर पहुंचे। प्रभारी निरीक्षक सोनहा शिवाकांत मिश्र ने भी पूरा प्रयास किया। लेकिन सफलता नहीं मिल सकी। बताया कि वे कल अपने मित्र कृष्ण दत्त पंचू पुत्र रामलाल के बाबा राम सरन पुत्र राम दीन का गांव देखने गाजीपुर जनपद के सैदापुर जाएंगे। उन्होंने लोगों से अनुरोध किया कि अगर उनके पुरखों के गांव के बारे में कुछ पता चले तो उन्हें जरूर बताएं।
108 साल बाद भी इनके घरों में जीवित है भोजपुरी
108 साल बाद भी हालैंड के इन परिवारों में अपने वतन की बोली भोजपुरी जिंदा है। यह लोग भारत से जाकर हालैंड भले बस गए है लेकिन अपनी संस्कृति नहीं भूले। नरदेव चरन, कृष्ण दत्त पंचू, राजेंद्र प्रसाद जग्गी ने गांवों में पहुंचकर लोगों के साथ भोजपुरी में संवाद किया। लोगों से विदा लेते वक्त उन्होंने भोजपुरी में राम-राम, जयराम कहकर अपनेपन का एहसास कराया। बताया कि उनके घरों में आज भी भोजपुरी ही बोली जाती है।