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गोरखपुर में एक पहल जो अब बन गई परंपरा, जानें-कैसे शुरू हुई प्रभात फेरी की यह परंपरा Gorakhpur News

गोरखपुर शहर में पिछले आठ साल से नियमित प्रभातफेरी निकल रही है। यह प्रभातफेरी कई स्थानों से सुबह के समय निकलती है।

By Edited By: Published: Mon, 05 Aug 2019 10:31 AM (IST)Updated: Mon, 05 Aug 2019 01:27 PM (IST)
गोरखपुर में एक पहल जो अब बन गई परंपरा, जानें-कैसे शुरू हुई प्रभात फेरी की यह परंपरा Gorakhpur News
गोरखपुर में एक पहल जो अब बन गई परंपरा, जानें-कैसे शुरू हुई प्रभात फेरी की यह परंपरा Gorakhpur News
गोरखपुर, जेएनएन। यूं तो प्रभातफेरी का नाम आते किसी विशेष अवसर का भाव खुद-ब-खुद उभरने लगता है लेकिन गोरखपुर में इसे लेकर एक नई पहल देखने को मिली है। प्रभात फेरी को किसी विशेष आध्यात्मिक अवसर से जोड़ कर न देखने की पहल। सुबह-सुबह सामूहिक भगवत भजन से सद्भाव बढ़ाने की मंशा के साथ शहर के आधा दर्जन से अधिक स्थानों से हर दिन प्रभात फेरी निकाली जाती है, जो धीरे-धीरे परंपरा का रूप भी ले चुकी है। स्वास्थ्य की बेहतरी से जोड़कर इसमें ज्यादा से ज्यादा लोगों को शामिल करने की कोशिश भी देखी जाती रही है। इस प्रयास में भी पर्याप्त सफलता मिली है। बेतियाहाता से शुरू होकर आर्यनगर, साहबगंज सहित आधा दर्जन से अधिक स्थानों से निकलने वाली प्रभात फेरी में शामिल होने वालों की बढ़ती संख्या इसे लेकर लोगों के रुझान की तस्दीक है। पहल से लेकर परंपरा बनने तक के इस सिलसिले की एक मुकम्मल रिपोर्ट। संत राधाकृष्ण के प्रयास से शुरू हुई परंपरा शहर में संत राधाकृष्ण महाराज द्वारा शुरू किया गया एक प्रभात फेरी का प्रयास आज परंपरा का रूप लेता दिख रहा है। समाज में शुभता के विकास के लिए संत अपना निराला तरीका अपनाते हैं। अशुभ प्रवृत्तियों को समाप्त करने के लिए वे सृष्टि की समस्त इकाई के आत्मिक विकास पर जोर देते हैं। उनका पूरा प्रयास होता है कि केवल मनुष्य ही नहीं, जीव-जंतु, पशु-पक्षी, पेड़-पौधे व समस्त जड़-चेतन में शुभता का वास हो। जब पूरे वातावरण में शुभता व्याप्त हो जाती है तो समाज से विद्वेष, घृणा व कलह आदि अशुभ प्रवृत्तियां धीरे-धीरे विलीन होने लगती हैं और मैत्री भाव का पदार्पण होने लगता है। ऐसी ही शुभता के लिए एक प्रयास संत राधाकृष्ण महाराज ने गोरखपुर में भी किया है। आठ वर्ष से शुरू है प्रभात फेरी संत राधाकृष्ण गोरखपुर में पहली बार 2011 में गीता वाटिका में आयोजित एक कथा कार्यक्रम में आए हुए थे। उन्होंने लोगों को प्रेरित किया और 27 मार्च 2011 को हनुमान मंदिर बेतियाहाता से प्रभात फेरी की शुरुआत की। प्रभातफेरी की उन्होंने स्वयं अगुवाई की थी। उसके बाद तो यह सिलसिला चल निकला। अब तो शहर में सात स्थानों से प्रभात फेरी निकलती है। कई स्थानों की प्रभात फेरी में वह खुद भी शामिल हुए। अलग-अलग स्थानों से निकलने वाली प्रभात फेरी में शुरू में कम ही लोग आए लेकिन उसके लाभ को देखते हुए धीरे-धीरे संख्या बढ़ती चली गई। आज की तारीख में प्रतिदिन तड़के सैकड़ों लोग प्रभात फेरी का हिस्सा बनकर भजन-कीर्तन करते हुए करीब तीन से पांच किलोमीटर की यात्रा करते हैं। सर्दी हो या गर्मी, उत्साह में नहीं है कमी प्रभात फेरी को लेकर लोगों की प्रतिबद्धता इस कदर है कि जबसे यह शुरू हुई, बारिश हो या भीषण ठंड, कभी बाधित होने की स्थिति नहीं आई। इन प्रभात फेरियों ने लोगों में उत्साह का संचार किया है। भजन-कीर्तन व भक्ति भाव से लोगों में जहा एकता व मैत्री की भावना विकसित होती है, वहीं सुबह की ताजी हवा उनकेमन-मस्तिष्क व शरीर को स्वस्थ रखने का कार्य करती है। यहा से निकलती हैं प्रभात फेरियां -हनुमान मंदिर, बेतियाहाता, -लक्ष्मीनारायण मंदिर, साहबगंज, -सत्संग भवन, रायगंज, -संतोषी माता मंदिर, आर्यनगर, -रामजानकी मंदिर, सुमेर सागर, -गोड़ियाना, मिर्जापुर, - हनुमान गढ़ी और लालडिग्गी से प्रभात फेरी निकलती है। क्या कहते हैं संत राधाकृष्ण महाराज इस संबंध में संत राधाकृष्ण महाराज का मानना है कि पेड़-पौधे, जीव-जंतु, पशु-पक्षी आदि भगवान का नाम नहीं ले सकते लेकिन जब हम प्रभातफेरी में भजन-कीर्तन करते चलते हैं तो भगवान का नाम उनके कानों में भी पड़ता है। इससे उनके भीतर भी सकारात्मकता जन्म लेती है। इस तरह पूरा वातावरण सकारात्मक होने लगता है। जब वातावरण सकारात्मक हो जाएगा तो मनुष्य उससे बच नहीं सकता। यह प्रयास यदि निरंतर चलता रहा तो एक दिन समाज से कलह, वैमनस्य व घृणा के भाव दूर हो जाएंगे और मैत्री भाव की स्थापना हो जाएगी। इससे मन, शरीर व समाज तीनों स्वस्थ होंगे।

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