लापरवाही की दास्तां है झांकियों की खामोशी
राजकीय बौद्ध संग्रहालय में एक गैलरी स्वचालित ऐतिहासिक झांकियों की भी है, यह शायद ही किसी को पता हो।
सबहेड : राजकीय बौद्ध संग्रहालय में एक दशक से जड़ा है स्वचालित झांकियों की गैलरी में ताला
क्रासर : गैलरी में स्थापित की गई हैं 19 स्वचालित झांकियां
धन के अभाव में रुक गई झांकियों की गतिविधि
जागरण संवाददाता, गोरखपुर :
राजकीय बौद्ध संग्रहालय में एक गैलरी स्वचालित ऐतिहासिक झांकियों की भी है, यह शायद ही किसी को पता हो। होगा भी कैसे? गैलरी के दरवाजे पर 24 घंटे ताला जो जड़ा रहता है। यह ताला साल-दो साल से नहीं बल्कि बीते एक दशक से जड़ा हुआ है। ऐसे में ऐतिहासिक धरोहरों को देखने संग्रहालय पहुंचे लोगों को इस बात की भनक भी नहीं लग पाती कि वह संग्रहालय में मौजूद कुछ ऐतिहासिक झांकियों को देखने से वंचित रह जा रहे हैं। दरअसल गैलरी का यह ताला संग्रहालय प्रशासन की लापरवाही को छुपाने के प्रयास का प्रतीक बन गया है।
गैलरी निर्माण की नींव 2006 में तब बनी, जब संग्रहालय के प्रति लोगों का आकर्षक बढ़ाने के लिए तत्कालीन संग्रहालय प्रभारी ने वहां एक ऐसी गैलरी बनाने का प्रयास शुरू किया, जिससे समूचे भारतीय इतिहास की झलक मिले। इस गैलरी में प्रागैतिहासिक काल से लेकर मुगल काल तक के ऐतिहासिक विकास से जुड़ी 19 स्वचालित झांकियों को स्थापित करने की योजना बनाई गई। इसके लिए संग्रहालय की ओर से केंद्र सरकार को प्रस्ताव भेजा गया। केंद्र सरकार ने प्रस्ताव को इस शर्त के साथ स्वीकृति दे दी कि 75 फीसद रकम वह उपलब्ध कराएगी, जबकि 25 फीसद रकम और रख-रखाव का जिम्मा प्रदेश सरकार को लेना होगा। स्वीकृति मिलते ही जल निगम को कार्यदायी संस्था बनाकर एम्स टेक्नोक्रेट प्राइवेट लिमिटेड से काम भी शुरू करा दिया गया। कंपनी से जुड़े कलाकारों ने दिन-रात काम करके सभी 19 झांकियां चंद महीनों में ही तैयार कर दीं, लेकिन अंतिम चरण में जाकर मामला कार्य के भुगतान को लेकर फंस गया। राज्य सरकार का अंशदान न मिलने की वजह से प्रस्तावित 10.50 लाख की रकम में अंतिम किस्त का भुगतान संग्रहालय प्रशासन कंपनी को नहीं दे सका, सो अंतिम चरण में काम रुक गया। कुछ दिन तक तो संग्रहालय प्रशासन ने इसे लेकर प्रयास किया लेकिन बाद में हाथ में हाथ रखकर बैठ गए और 10 वर्ष से अधिक का वक्त कब बीत गया, पता ही नहीं चला। अब तो स्थिति यह है कि स्वचालित झांकियां इतनी पुरानी हो गई हैं कि यदि प्रस्तावित रकम मिल भी जाए तो उस लागत में उन्हें गतिमान कराना चुनौती होगा।
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सक्रिय होंगी झांकियां तो कुछ ऐसा होगा प्रारूप
स्वचालित झाकियों की गैलरी में प्रवेश के साथ ही मानव विकास की दास्तां नेपथ्य से गूंजने लगेगी। पहली झांकी प्रस्तर युग की जानकारी देगी तो दूसरी झांकी से अग्नि के प्रयोग की शुरुआत का इतिहास पता चलेगा। इसी क्रम में पहले आदि मानव, सभ्यता के युग में प्रवेश करता दिखेगा और फिर कृषि युग की ओर बढ़ता दिखाई पड़ेगा। सिक्कों की शुरुआत और मिट्टी के बर्तन व लकड़ी के समान निर्माण का इतिहास बताती झांकियां इसकी अगली और आकर्षक कड़ी होंगी। मूर्तियों को तराशते और अंजता-एलोरा की चित्रकारी करते कलाकारों की झांकियां कला के विकास के कौतूहल को दूर करेंगी। स्तंभों पर हस्तलेखन करते लोग और ऋषि-मुनियों द्वारा पत्तों पर लेखन को दिखाती झांकियां लेखन विधा का इतिहास बताएंगी। शाहजहां द्वारा फूल सूंघते ताजमहल का निर्माण देखने की झांकी मुगल सम्राट की भवन शिल्प के प्रति रुचि की तस्दीक होगी। इसके अलावा गीता प्रेस, गोरखनाथ मंदिर, भगवान बुद्ध के महापरिनिर्वाण स्थल और संत कबीर के समाधि स्थल की स्थिर झांकियां गैलरी को स्थानीय इतिहास से जोड़ेंगी।
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स्वचालित झांकियों वाली गैलरी को लोगों के अवलोकनार्थ खोले जाने के लिए प्रयास शुरू कर दिया गया है। झांकियों को गतिमान करने में बचे हुए कार्य को जल्द पूरा करा लिया जाएगा। निश्चित रूप से इससे संग्रहालय के प्रति लोगों का आकर्षण बढ़ेगा और यहां अवलोकनार्थ आने वाले दर्शकों की संख्या में भी इजाफा होगा।
डॉ. मनोज कुमार गौतम, उप निदेशक, राजकीय बौद्ध संग्रहालय, गोरखपुर