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शाहपुर बाजार से उठी थी आजादी की चिगारी

बात वर्ष 1935 की है जब कांग्रेस के मंत्रिमंडल का गठन हुआ। मंत्रिमंडल के गठन के बाद कांग्रेस की पहली रैली डुमरियागंज तहसील क्षेत्र के शाहपुर बाजार में आयोजित हुई। इससे पूर्व की कांग्रेस रैलियों में स्थानीय किसानों की सहभागिता गोरों के जुल्म के चलते कम हुआ करती।

By JagranEdited By: Published: Fri, 13 Aug 2021 08:30 PM (IST)Updated: Fri, 13 Aug 2021 08:30 PM (IST)
शाहपुर बाजार से उठी थी आजादी की चिगारी
शाहपुर बाजार से उठी थी आजादी की चिगारी

सिद्धार्थनगर: आजादी आंदोलन की लड़ाई की शुरुआत जिले में उस कांग्रेस की रैली से हुई जिसमें शामिल होने वाले किसानों की जमीन ज्यादा लगान होने के चलते हड़प ली गई थी। बावजूद इसके वह भूमि अतिक्रमण की चपेट में है और यहां किसी स्मारक का भी निर्माण नहीं हुआ। जिससे गौरवशाली अतीत को संरक्षित रखा जा सके।

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बात वर्ष 1935 की है जब कांग्रेस के मंत्रिमंडल का गठन हुआ। मंत्रिमंडल के गठन के बाद कांग्रेस की पहली रैली डुमरियागंज तहसील क्षेत्र के शाहपुर बाजार में आयोजित हुई। इससे पूर्व की कांग्रेस रैलियों में स्थानीय किसानों की सहभागिता गोरों के जुल्म के चलते कम हुआ करती। इस रैली में रमाशंकर लाल और पंडित राजाराम शर्मा पहुंचे थे, जिसके बलबूते हजारों किसानों की भीड़ इस रैली में शामिल हुई। भारी संख्या में किसानों को रैली में शामिल होने की सूचना मिलते ही ब्रिटिश हुकूमत के कान खड़े हो गए और उसने किसानों को परेशान करने के लिए लगान में दोगुने की बढ़ोतरी के आदेश के साथ यह भी निर्देश दिया कि जो किसान लगान नहीं देगा उसकी जमीन जब्त कर ली जाएगी। दोगुना लगान देने के खिलाफ किसान उठ खड़े हुए और अंग्रेजों के खिलाफ मोर्चा खोल दिया। इसके बाद एक साथ कई किसानों की जमीन लगान न देने का कारण बताकर अंग्रेजों ने अपने कब्जे में कर लिया।

लंबी लड़ाई के बाद मिली भूमि

जमीन चले जाने के बाद किसानों पर मानों दुखों का पहाड़ टूट पड़ा। घर में खाने को कुछ नहीं था, लेकिन किसानों ने हिम्मत हारने की जगह कांग्रेस के पदाधिकारियों से मिलकर अंग्रेजों पर जमीन हड़पने का मुकदमा दायर किया। कलक्टर रफीउल कद्र की अदालत में मुकदमा दर्ज हुआ तो कलक्टर ने यह कहकर मुकदमा खारिज कर दिया कि कांग्रेस के बहकावे में आकर किसान लगान नहीं जमा कर रहे जिसके चलते उनकी जमीन ली गई। किसानों ने इस आदेश के खिलाफ पुन: यह कहते हुए अपील दायर की कि लगान अचानक दो गुना कैसे बढ़ाया गया। लंबे समय तक यह मुकदमा चला और किसान मीलों पैदल चलकर मुकदमा देखने जाते रहे। वर्ष 1942 में गांधी जी के करो या मरो के नारे के बीच जब यहां के हालात बिगड़ने लगे तो तत्कालीन कलेक्टर सुधा सिंह ने एक लाख किसानों का लगान माफ करते हुए उन्हें उनकी जमीन वापस की। जमीन वापस पाने के बाद यहां के लोगों का हौसला बढ़ा और आजादी की प्राप्ति तक अंग्रेजों की खिलाफत करते रहे। इस बात का उल्लेख बस्ती मंडल के आलोक में स्वतंत्रता संग्राम पुस्तक में दर्ज है। जिसे यश भारती पुरस्कृत जिले मणेन्द्र मिश्रा मशाल ने लिखा है। एसडीएम त्रिभुवन ने कहा कि उक्त स्थान को चिह्नित करके वहां स्मारक निर्माण के लिए प्रस्ताव भेजा जाएगा।


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