विज्ञान के बौना होने पर होती है अध्यात्म की सृष्टि : डॉ. दीनानाथ
योग कार्यशाला के तहत गोरखनाथ मंदिर में वक्ताओं ने कहा कि विज्ञान के बौना होने पर होता है योग ।
गोरखपुर : गोरखनाथ मंदिर में गुरुगोरखनाथ योग संस्थान और महाराणा प्रताप शिक्षा परिषद द्वारा आयोजित साप्ताहिक योग शिविर व शिक्षक कार्यशाला के पांचवें दिन योग शिविर के सैद्धांतिक सत्र में कुंडलिनी योग रिसर्च इंस्टीट्यूट के मनोचिकित्सक डॉ. दीनानाथ ने कहा कि योग और आध्यात्म एक-दूसरे से पूरी तरह जुड़े हुए हैं। योग विद्या अपरिमेय है। इसे किसी निश्चित परिधि, परंपरा या परिभाषा में नहीं बांटा जा सकता।
डॉ. दीनानाथ 'योग एवं महायोगी गोरखनाथ' विषय पर बतौर मुख्य वक्ता शिविर को संबोधित कर रहे थे। विज्ञान की सीमाओं की चर्चा करते हुए डॉ. नाथ ने कहा कि जहां पर विज्ञान बौना साबित होने लगता है, वहीं से योग या आध्यात्म की सृष्टि होती है। विश्व में योग दर्शन ही एक मात्र ऐसा है, जिसका कभी खंडन या मंडन नहीं हुआ। उन्होंने सलाह दी कि भोग उतना ही करना चाहिए, जो योग में बाधक न हो। चरम सत्य के अन्वेषण के दौरान तार्किक एवं बौद्धिक प्रक्रियाओं की सीमाओं व अपूर्णताओं का अनुभव कर भारतीय मनीषियों ने आध्यात्मिक अनुशासन के मार्ग को अपनाया। वस्तुत: यह आध्यात्मिक अनुशासन ही योग है।
कटक उड़ीसा से आए महंत शिवनाथ ने कहा कि योग भारत की एक अति प्राचीन विरासत है, जिसे गोरक्षपीठ ने सुरक्षित रखा है। आज योग को जीवन जीने की एक कला एवं विज्ञान के साथ-साथ औषधि रहित चिकित्सा पद्धति के रूप में लोकप्रियता मिल रही है। योग का नियमित अभ्यास हमारे अन्दर समता, समभाव और सौहार्द को बढ़ाता है तथा हमें आपस में जोड़ता है। इसका नियमित अभ्यास हमें आत्मा की शुद्धि के मार्ग की ओर ले जाने का प्रयास करता है साथ ही यह हमें सन्तोष और सत्य की ओर भी ले जाता है। उन्होंने दावा किया कि स्वार्थ, अविश्वास, क्रोध, नासमझी, अधैर्य, ईष्र्या, असहिष्णुता और तनाव से भरी इस दुनिया का कायाकल्प यदि कोई कर सकता है तो वह है योग। निश्चित रूप से आगे आने वाला युग योग का युग होगा। कार्यक्रम का संचालन डॉ. प्राणेश मिश्र ने किया। इससे पूर्व मंगलवार की अल सुबह योग प्रशिक्षक डॉ. चंद्रजीत यादव ने प्रशिक्षुओं को योग और प्राणायाम का प्रशिक्षण दिया।