नेट बैंकिंग से जमा होगी धरोहर धनराशि, फर्जीवाड़ा पर लगेगा रोक, जानें-किस विभाग का है मामला gorakhpur News
पहले टेंडर के लिए चालान व बैंक एफडीआर के रूप में धरोहर धनराशि ली जाती थी लेकिन अब शासन ने इस व्यवस्था को समाप्त कर दिया है।
गोरखपुर, जेएनएन। सिंचाई विभाग द्वारा तटबंधों के मरम्मत व निर्माण आदि के लिए निकाली जाने वाली आन लाइन निविदा में अब धरोहर धनराशि को लेकर फर्जीवाड़ा नहीं हो सकेगा। फर्जीवाड़े को रोकने के लिए विभाग ने पुख्ता तैयारी की है। अब निविदा में प्रतिभाग करने वाली एजेंसियों को निविदा मूल्य व धरोहर धनराशि को नेट बैंकिंग के जरिये विभाग के खाते में भुगतान करना होगा। इसके बाद ही एजेंसियां निविदा प्रक्रिया में भाग ले सकेंगी। अब तक धरोहर धनराशि के रूप में बैंक एफडीआर (फिक्स्ड डिपाजिट रिसिप्ट) ही मान्य था।
धरोहर राशि को लेकर बड़ा बदलाव
सिंचाई विभाग ने धरोहर धनराशि को लेकर नियमों में बड़ा बदलाव कर दिया है। सिंचाई व जल संसाधन विभाग के प्रमुख अभियंता व विभागाध्यक्ष अनूप श्रीवास्तव ने इस संबंध में विस्तृत दिशा-निर्देश जारी किए हैं। अब निविदा शुल्क व धरोहर धनराशि के भुगतान व वापसी की प्रक्रिया तत्काल प्रभाव से आनलाइन कर दी गई है। इस बारे में विभाग के अपने तर्क हैं। विभाग का कहना है कि निविदा आमंत्रित करने के बाद एजेंसियां बैक एफडीआर लगाती थीं। एफडीआर के सत्यापन में काफी विलंब होता था। सत्यापन के दौरान फर्जी एफडीआर लगाए जाने के मामले भी प्रकाश में आते थे। इसके अलावा एफडीआर को जिस सक्षम अधिकारी के नाम से बंधक रखना होता था अगर उसके नाम में कोई गलती रह जाती थी तो एजेंसी का टेंडर निरस्त हो जाता है।
निविदा प्रक्रिया का होगा बहिष्कार
हालांकि पूजा ठेकेदार समिति के संरक्षक हरि जी पांडेय का कहना है कि यह कार्यदायी एजेंसियों के साथ अन्याय है। एफडीआर देने में बैंक से आठ फीसद तक ब्याज मिलता है। सरकार से मांग है कि पुरानी व्यवस्था को बहाल करे अन्यथा निविदा प्रक्रिया का बहिष्कार किया जाएगा। समिति के महामंत्री रामसेवक सिंह कहते हैं कि नई व्यवस्था में धनराशि वापसी के बारे में भी कोई दिशा-निर्देश नहीं दिया गया है, इस कारण संशय की स्थिति बनी हुई है। कभी-कभी विभागों में धरोहर धनराशि एक साल तक पड़ी रहती है ऐसी स्थिति में ब्याज का नुकसान होगा।
ब्याज को लेकर स्पष्ट नहीं है स्थिति
अगर कोई एजेंसी निविदा में भाग लेने के लिए धरोहर धनराशि के रूप में बैंक एफडीआर लगाती है तो उसे बैंक द्वारा ब्याज दिया जाता है। नई व्यवस्था में अभी यह तय नहीं है कि एजेंसियों से धरोहर धनराशि के रूप में जो धनराशि विभाग अपने खाते में लेगा उस पर ब्याज देगा या नहीं। इसको लेकर विभाग ने अपना कोई रुख स्पष्ट नहीं किया है, इस कारण भी एजेंसियों व ठेकेदारों में आक्रोश है।
क्या है धरोहर धनराशि
किसी भी निविदा में प्रतिभाग करने के लिए एजेंसियों को शासन द्वारा निर्धारित दो फीसद धनराशि (निविदा की अनुमानित लागत) को विभाग के पक्ष में बंधक रखना अनिवार्य होता है। अगर एजेंसी निविदा हासिल करने के लिए न्यूनतम दर डालकर कार्य करने से इन्कार करती है तो विभाग उक्त धरोहर धनराशि को जब्त कर लेता है। अगर एजेंसी को कार्य आंवटित होता है तो उससे आठ फीसद अतिरिक्त धनराशि भी धरोहर धनराशि के रूप में ली जाती है। कार्य की गुणवत्ता खराब पाए जाने पर विभाग इस धनराशि से नियमानुसार कटौती कर सकता है।
शासन ने दी नई व्यवस्था
अधीक्षण अभियंता केके राय का कहना है कि अब टेंडर प्रक्रिया में नया बदलाव किया गया है। पहले टेंडर के लिए चालान व बैंक एफडीआर के रूप में धरोहर धनराशि ली जाती थी लेकिन अब शासन ने इस व्यवस्था को समाप्त कर दिया है। नई व्यवस्था के तहत निविदा में भाग लेने के लिए एजेंसियों को नेट बैंकिंग के माध्यम से सीधे सरकारी खाते में निर्धारित धनराशि डालनी होगी। इससे फर्जीवाड़े पर पूरी तरह से अंकुश लग सकेगा और टेंडर प्रक्रिया को पूरा करने में अनावश्यक विलंब नहीं होगा।