Move to Jagran APP

गोरखपुर के माेहल्‍ले : नाम मुरब्बा गली, बिकते हैं कपड़े Gorakhpur News

जब मुरब्बे की दुकानें गली में हैं ही नहीं तो उसे नाम कैसे मिला? गली के इतिहास की पड़ताल की गई तो पता चला कि यह नाम सौ वर्ष से अधिक समय से चला आ रहा है।

By Pradeep SrivastavaEdited By: Published: Mon, 17 Feb 2020 03:01 PM (IST)Updated: Mon, 17 Feb 2020 03:39 PM (IST)
गोरखपुर के माेहल्‍ले : नाम मुरब्बा गली, बिकते हैं कपड़े Gorakhpur News
गोरखपुर के माेहल्‍ले : नाम मुरब्बा गली, बिकते हैं कपड़े Gorakhpur News

गोरखपुर, जेएनएन। उर्दू बाजार के दायरे में यूं तो कई गलियां हैं लेकिन मुरब्बा गली की अपनी अलग ही पहचान है। वहां की हर दुकान के शाइन बोर्ड पर मुरब्बा गली तो लिखा हुआ है लेकिन नाम की लाज रखने की जिम्मेदारी सिर्फ एक दुकान ने संभाल रखी है। यह दुकान है युवा प्राणनाथ की, जिन्होंने पूर्वजों की परंपरा कायम रखने की जिद पाल रखी है। आज की तारीख में यह संकरी गली में ज्यादातर कपड़े की दुकानों से गुलजार है। कुछेक सिन्होरा की दुकानें भी गली में हैं।

loksabha election banner

सौ साल से पुराना है इतिहास

जब मुरब्बे की दुकानें गली में हैं ही नहीं तो उसे नाम कैसे मिला? इस सवाल का जवाब तलाशने के क्रम में गली के इतिहास की पड़ताल की गई तो पता चला कि यह नाम 10-20 बरस से नहीं बल्कि सौ वर्ष से अधिक समय से चला आ रहा है। गली के नाम की नींव 1912 में तब पड़ी, जब श्याम लाल गुप्ता उर्फ लाला जी नाम के एक व्यक्ति ने उसमें मुरब्बे की दुकान खोली। उनके निधन के बाद परिवार के सदस्यों ने परंपरा को कायम रखा। एक से पांच दुकान तक सिलसिला बढ़ा लेकिन बाद में जब मुरब्बे की मांग घटने लगी तो दुकानों की संख्या भी घट गई। फिलहाल परिवार के प्राणनाथ और उनके छोटे भाई सुधाकर अपने पूर्वजों की परंपरा को कायम रखे हुए हैं। हालांकि अब मुरब्बे के खरीदार कम हो गए हैं लेकिन इसके पुराने शौकीन आज भी इसी गली की ओर रुख करते हैं। प्राणनाथ बताते हैं कि कभी उनकी दुकान पर दर्जन भर वेरायटी के मुरब्बे बिकते थे। चंदन, बांस, छुहाड़ा और किशमिश के मुरब्बे की काफी डिमांड होती थी लेकिन अब यह दायरा आंवले व बेल के मुरब्बे तक सिमट कर रह गया है। दुकान को सजाने के लिए दोनों भाइयों ने तरह-तरह के आचार का जार भी सजा रखा है।

कौमी एकता की मिसाल है मुरब्बा गली

मुरब्बा गली की एक बड़ी खासियत है उसकी कौमी एकता छवि। गली के अधिकतर दुकानों के मालिक तो मुस्लिम है लेकिन उनके ज्यादातर किराएदार ङ्क्षहदू हैं। सौहार्द की बानगी यह है कि ङ्क्षहदू-मुस्लिम सभी एक-दूसरे के त्योहार को मिलकर मनाते हैं। सुख-दुख में सभी एक-दूसरे के साथ बिना किसी भेदभाव के खड़े नजर आते हैं। इलाके में गली की एकता की नजीर दी जाती है।

गली में देर रात तक रहती है रौनक

मुरब्बा गली एक खूबी यह भी है कि इसमें सुबह 10 बजे से लेकर रात 10 बजे तक रौनक बनी रहती है। गली में थोक कपड़ों की कई दुकानें हैं, इसके चलते आसपास के कई जिलों के फुटकर दुकानदार यहां खरीदारी करने आते हैं। स्थानीय ग्राहकों का तांता भी पूरे दिन लगा रहता है।

मुरब्बे की दुकान के स्वर्णिम दौर का गवाह हूं मैं। लोग दूर-दूर से मुरब्बा लेने के लिए मुरब्बा गली में आते थे। यह फक्र की बात है कि लाला जी के परिवार दो लड़कों ने परंपरा को कायम रखने की जिम्मेदारी ले रखी है। - इश्तेयाक अहमद, सिन्होरा व्यवसायी

हमारे पूर्वजों की विरासत को कायम रखना हमारी जिम्मेदारी है। अगर हमने कोई और व्यापार किया तो भी मुरब्बे की दुकान के अस्तित्व को नहीं मिटाएंगे। यह दुकान हमारे परिवार ही नहीं गली की भी पहचान है। - सुधाकर गुप्ता, मुरब्बा व्यवसाई 


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.