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Makar Sankranti 2021: गुरु गोरक्षनाथ की खिचड़ी से प्रति वर्ष साढ़े तीन लाख से अधिक जरूरतमंदों को भोजन

प्रति वर्ष मकर संक्रांति पर श्रद्धालु गोरखनाथ मंदिर में बाबा गोरखनाथ को हजारों क्विंटल खिचड़ी चढ़ाते हैैं और मंदिर के प्रबंधन से आस्था की यह खिचड़ी प्रति वर्ष साढ़े तीन लाख से अधिक जरूरतमंदों के लिए भोजन प्रसाद बन जाती है।

By Satish chand shuklaEdited By: Published: Thu, 14 Jan 2021 04:00 AM (IST)Updated: Thu, 14 Jan 2021 07:36 PM (IST)
Makar Sankranti 2021: गुरु गोरक्षनाथ की खिचड़ी से प्रति वर्ष साढ़े तीन लाख से अधिक जरूरतमंदों को भोजन
खिचड़ी पर्व पर सजकर तैयार हुआ गोरखनाथ मंदिर।

रजनीश त्रिपाठी, गोरखपुर।

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भगवान जगदीश्वर की यह आरती गुरु गोरक्षनाथ के मंदिर में गाई ही नहीं जाती, व्यावहारिक रूप में आत्मसात भी की जाती है। प्रति वर्ष मकर संक्रांति पर श्रद्धालु गोरखनाथ मंदिर में बाबा गोरखनाथ को हजारों क्विंटल खिचड़ी चढ़ाते हैैं और मंदिर के प्रबंधन से आस्था की यह खिचड़ी प्रति वर्ष साढ़े तीन लाख से अधिक जरूरतमंदों के लिए भोजन प्रसाद बन जाती है।

खिचड़ी में चढ़े अन्न से मंदिर प्रबंधन दैनिक भंडारा चलाता है, जिसमें संस्कृत विद्यालय के 250 छात्र, सौ से अधिक साधु के अलावा भिक्षुक व अन्य जरूरतमंद समेत 700-800 व्यक्ति भोजन ग्रहण करते हैैं। भंडारे के प्रसाद में समता और गुणवत्ता का भाव बना रहे, इसलिए गोरक्षपीठाधीश्वर मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ भी गोरखपुर प्रवास के दौरान भंडारे में ही बना चावल और रोटी ग्रहण करते हैैं। अतिथियों को भी यही प्रसाद परोसा जाता है। त्योहार व विशेष आयोजनों में यह संख्या दोगुनी हो जाती है।

नाथ संप्रदाय की प्रमुख पीठ गोरखनाथ मंदिर में गुरु गोरक्षनाथ को खिचड़ी चढ़ाने की परंपरा सदियों पुरानी है। मकर संक्रांति पर ही देशभर से तीन लाख से अधिक श्रद्धालु गुरु गोरक्षनाथ को खिचड़ी (कच्चा चावल, दाल, नमक, सब्जी, हल्दी आदि) चढ़ाने आते हैं। मकर संक्रांति के दिन यहां पर आस्था अन्न का पर्वताकार स्वरूप ले लेती है। यह परंपरा महाशिवरात्रि तक चलती है। संक्रांति के बाद के पहले मंगलवार (यहां बुढ़वा मंगल भी कहते हैैं), बसंत पंचमी और प्रत्येक रविवार को काफी संख्या में श्रद्धालु आते हैैं और खिचड़ी चढ़ाने वाले श्रद्धालुओं का आंकड़ा दस लाख पार कर जाता है। इस एक माह में मंदिर में हजारों क्विंटल अन्न इकट्ठा हो जाता है। मंदिर सचिव द्वारिका तिवारी बताते हैैं कि श्रद्धालुओं की आस्था को प्रसाद और आशीर्वाद का स्वरूप देकर जरूरतमंदों को वापस करने का सिलसिला यहीं से शुरू होता है।

सेवा संग रोजगार भी

मंदिर प्रशासन संक्रांति से ही अन्न का प्रबंधन शुरू कर देता है। कच्ची खिचड़ी से सब्जियां (आलू, गोभी, मटर) उसी समय निकालकर भंडारे के प्रयोग में ले ली जाती हैैं। फिर अन्न की छंटाई शुरू हो जाती है। इस काम में मंदिर के सेवादार, कर्मचारियों के अतिरिक्त 100 महिला श्रमिक भी लगती हैैं। यह काम पूरे वर्ष भर चलता है। दाल-चावल चुनने का काम मशीन से इसलिए नहीं कराया जाता ताकि जरूरतमंदों को रोजगार मिलता रहे।

कांगड़ा में खौल रहा पानी, यहां चढ़ रही खिचड़ी

गुरु गोरक्षनाथ भिक्षा मांगते हुए हिमाचल प्रदेश के कांगड़ा के ज्वाला देवी मंदिर पहुंचे। उन्हेंं देख ज्वाला देवी प्रकट हुईं और भोज के लिए आमंत्रित किया। विविध व्यंजन देखकर बाबा ने ग्रहण करने से इन्कार कर दिया तो देवी ने उनकी इच्छा अनुरूप चावल-दाल बनाने के लिए अदहन चढ़ा दिया। बाबा चावल-दाल की भिक्षा लेने निकले तो चलते-चलते गोरखपुर आ गए। जहां गोरक्षपीठ है, वहीं अक्षय पात्र रखकर साधना में लीन हो गए। मकर संक्रांति हुई तो आस्थावान उनके अक्षय पात्र में चावल-दाल डालने लगे। काफी मात्रा में अन्न डालने के बाद भी पात्र नहीं भरा तो लोगों ने इसे चमत्कार माना। तभी से यहां मकर संक्रांति पर खिचड़ी चढ़ाई जाती है। वहीं, ज्वाला देवी मंदिर में आज भी गुरु गोरक्षनाथ के इंतजार में पानी खौल रहा है।


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