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गोरखपुर के हुनर से सजा हया का लिबास; दुबई, कुवैत, न्यूजीलैंड सहित 30 देशों में हो रही बिक्री

गोरखपुर के कारीगर इंडोनेशिया और जापान से मंगाए गए कपड़े क्रिस्टल मोती क्रिस्टल सुराही और जरी को अपने हुनर में बुन कर ऐसा बेजोड़ हिजाब तैयार कर रहे हैं जो दुबई कुवैत ओमान इंग्लैंड न्यूजीलैंड मलेशिया कनाडा सऊदी अरब कतर समेत 30 देशों में हाथोंहाथ बिक रहे हैं।

By Pradeep SrivastavaEdited By: Published: Mon, 09 Nov 2020 09:57 AM (IST)Updated: Mon, 09 Nov 2020 09:57 AM (IST)
गोरखपुर के हुनर से सजा हया का लिबास; दुबई, कुवैत, न्यूजीलैंड सहित 30 देशों में हो रही बिक्री
गोरखपुर में हिजाब तैयार करते कारीगर। - जागरण

काशिफ अली, गोरखपुर। गोरखपुर के कारीगरों की कारीगरी कई देशों में लोगों के सिर चढ़कर बोल रही है।  पिपरापुर मोहल्ले के कारीगर इंडोनेशिया और जापान से मंगाए गए कपड़े, क्रिस्टल मोती, क्रिस्टल सुराही और जरी को अपने हुनर में बुन कर ऐसा बेजोड़ हिजाब तैयार कर रहे हैं, जो दुबई, कुवैत, ओमान, इंग्लैंड, न्यूजीलैंड, मलेशिया, कनाडा, सऊदी अरब, कतर समेत 30 देशों में हाथोंहाथ बिक रहे हैं। हया का पर्दा तैयार करने में तीस कारीगर लगे हैं, जो एक दिन में 25 हिजाब बना लेते हैं।

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यूं तो देश के अलग-अलग हिस्सों में हिजाब तैयार किए जाते हैं लेकिन उनकी कीमत कारीगरी से तय होती है। जरदोजी व हाथ से तैयार नकाब की मांग और कीमत अधिक है। जितना महीन काम उतना अधिक पैसा। इसके लिए माहिर कारीगर की जरूरत पड़ती है। पिपरापुर के तौफीक अहमद इसके विशेषज्ञ हैं। 30 कारीगरों के साथ वह ऐसे ही हिजाब तैयार करते हैं। तौफीक बताते हैं कि अच्छे डिजाइन, महीन काम और बेहतर फिनिशिंग से कीमत तय होती है। एक अच्छा हिजाब तैयार करने में 12 से 15 हजार रुपये तक का कच्चा माल लगता है और विदेश में दोगुने दाम पर आसानी से बिक जाता है। मांग बहुत है लेकिन प्रशिक्षित कारीगर न होने से पूरा नहीं कर पाते हैं।

धूप में नहीं होता गर्मी का एहसास

हिजाब इंडोनेशियाई कपड़े से बनाया जाता है। कड़ी धूप में पहनने पर भी गर्मी का अहसास न होना ही इस कपड़े की खासियत है। हिजाब तैयार कर आजमगढ़ की एक फर्म को दे दिया जाता है। वही फर्म आर्डर लेती है और निर्यात करती है।

आ जाएंगे अच्छे दिन

गोरखपुर को गारमेंट्स हब बनाने की मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की घोषणा से कारीगरों के हौसले को पंख लग गए हैं। तौफीक कहते हैं, यदि सरल प्रक्रिया से आर्थिक सहयोग मिल जाए तो कारीगर निर्यात जैसा काम अपने दम पर भी कर सकते हैं। हमारे में योग्यता है और हम अपने उत्पाद को वैश्विक बनाने में जी जान लगा देंगे।

लाकडाउन में भी हुआ काम

हिजाब की मांग इतनी है कि लाकडाउन में भी कारीगरों के हाथ नहीं रुके। प्रति हिजाब एक हजार रुपये मेहनताने में भी कोई कटौती नहीं हुई। कारीगरों ने इस समय का उपयोग अपने पुराने आर्डर को पूरा करने के लिए किया।


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