पूरे भारत में फैलेगी कालानमक चावल की खुशबू, कृषि वैज्ञानिकों टीम ने शुरू किया काम
कालानमक धान पारंपरिक फसलों का ही एक पुरानी किस्म है। इस धान की खेती की ओर से बढ़ती महंगाई कम उत्पादन के कारण किसानों का रूझान कम होता जा रहा है। सिद्धार्थनगर जनपद सहित नौ जिले में इसकी पैदावार के लिए मशहूर है।
गोरखपुर, जेएनएन। भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान नई दिल्ली के निदेशक डा. एके सिंह के तकनीकी प्रयास से उत्तर प्रदेश कृषि अनुसंधान परिषद लखनऊ के वित्तीय सहयोग से कृषि विज्ञान केंद्र सोहना, सिद्धार्थनगर में कालानमक के आनुवांशिक एवं गुणात्मक विकास के लिए एक प्रोजेक्ट भारत सरकार द्वारा मिला है। जिस पर कृषि वैज्ञानिकों की टीम ने कार्य करना प्रारंभ कर दिया है। सबकुछ ठीक रहा तो अगले साल तक दो नई प्रजातियों के रिलीज होने की संभावना है। जो कम अवधि में न केवल अच्छा उत्पादन देंगी, बल्कि इसकी खुशबू फिर फिजाओं में घुलने लगेगी।
कम अवधि में अधिक उत्पादन पर दिया जा रहा जोर
कालानमक धान पारंपरिक फसलों का ही एक पुरानी किस्म है। इस धान की खेती की ओर से बढ़ती महंगाई, कम उत्पादन के कारण किसानों का रूझान कम होता जा रहा है। सिद्धार्थनगर जनपद सहित नौ जिले में इसकी पैदावार के लिए मशहूर है। संबंधित जिलों सहित पूरे भारत में कालानमक चावल की खुशबू फैले इसके लिए कृषि विज्ञान केंद्र को इसकी जिम्मेदारी दी गई है। यहां के वैज्ञानिक विभिन्न गांवों में जाकर अच्छी वैरायटी के धान एकत्रित करेंगे। यह भी देखा जाएगा, कि इसमें सुगंध भी रहे और बीज रोगग्रस्त न हो। फिर इनका केंद्र स्थित शोध प्रक्षेत्र खरेला में परीक्षण किया जाएगा। इस प्रकार की प्रजाति विकसित की जाएगी, जो कम अवधि में अधिक उत्पादन देने वाली हो।
शुरू हुआ सर्वे कार्य
केंद्र के वरिष्ठ वैज्ञानिक एवं अध्यक्ष डा. एलसी वर्मा और उनकी टीम डा. मार्कंडेय सिंह, डा. प्रदीप कुमार व डा. एस एन सिंह द्वारा सर्वे कार्य शुरू किया गया। विभिन्न गांवों में टीम द्वारा भ्रमण करते हुए किसानों से संपर्क किया गया। ग्राम सियांव नानकार, नियांव नानकार ब्लॉक शोहरतगढ़ की त्रिलोकीनाथ पांडेय एवं शिवराम चौधरी के खेत से कालानमक का जर्मप्लाजम व बर्डपुर ब्लाक के अलिदापुर के रामशंकर गुप्ता, पलटादेवी, रमवापुर, गौरा, बढ़या, मधुबेनिया, दुबरीपुर के गांव से करीब 99 जर्मप्लाज्म एकत्रित किया गया। प्रोजेक्ट के माध्यम से केंद्र स्थित शोध प्रक्षेत्र खरेला में इनका परीक्षण किया जाएगा।
क्या कहते हैं कृषि वैज्ञानिक
कृषि वैज्ञानिक डा. प्रदीप कुमार व डा. मार्कंडेय सिंह ने बताया कि कालानमक चावल फिर से देश व विदेशाें में अपनी खुशबू बिखेरे, इस पर काम चल रहा है। अगले वर्ष तक दो नई प्रजाति के रिलीज होने की संभावना है। इस बीज को भारत के दूसरे किसी भी रिसर्च सेंटर के लोग चाहेंगे, तो उपलब्ध मिलेगी।