घाटे से ऊबरने को लगन का इंतजार, मुनाफे की बढ़ी उम्मीद
गनेशपुर के शंकरनगर में दिलीप गुप्ता ने बेरोजगारी का कलंक मिटाने के लिए जनवरी 20 में कपड़े की दुकान खोली। वह कृषि स्नातक हैं। दुकान चलने को हुई तो अचानक लॉकडाउन हो गया। चहुंचोर बंदी और कफ्र्यू जैसे हालात थे। पूरी पूजी डंप हो गई थी।
बस्ती, जेएनएन। कोरोना संक्रमण काल में छोटे एवं मझोले कारोबार को सर्वाधिक चोट पहुंचाई। आम अवाम की बात छोडिय़े सुविधा संपन्न तबका भी घरों में कैद हो गया था। अचानक लॉकडाउन होने के चलते कपड़े की दुकानें बंद हो गई। कुछ दिनों के बाद शर्तों के साथ किराना,सब्जी और दवा की दुकानें खुलने लगी। कपडे की दुकान के बारे में किसी ने सोचा ही नहीं। सत्तर फीसद लोगों की जरूरतें कपड़े की छोटी दुकानों से ही पूरी होती हैं। माल और बड़े शो रूम में गांव और कस्बों में रहने वालों प्रवेश करने से हिचकते हैं। गनेशपुर के शंकरनगर में दिलीप गुप्ता ने बेरोजगारी का कलंक मिटाने के लिए जनवरी 20 में कपड़े की दुकान खोली। वह कृषि स्नातक हैं। दुकान चलने को हुई तो अचानक लॉकडाउन हो गया। चहुंचोर बंदी और कफ्र्यू जैसे हालात थे। पूरी पूजी डंप हो गई थी। दुकान खोल नहीं सकते थे जमा पूंजी सब दुकान में लगा चुके थे। तीन महीने तक दुकान का शटर डाउन रहा। रात में आर्थिक तंगी और दुकान में रखे कपड़े चूहों के कतरने की ङ्क्षचता में नींद नहीं आती थी। गत 30 अगस्त से कपड़े की दुकानें खोलने की अनुमति मिली तो जान में जान आई। घर से दुकान पहुंचा तो नमी से तमाम कपड़े बदरंग हो गए थे। चूहों ने भी कुछ नुकसान पहुंचाया था। दुकान मेंं बैठने लायक नहीं था। दो दिन कड़ी मेहनत कर दुकान की साफ सफाई और कपड़ों को धूप में रखकर सही कराया। दुकान खुलने लगी तो इक्का दुक्का ग्राहक आने लगे है।
ग्राहकों को जोडऩे के लिए दोबारा लगाई पूंजी
शहर के आवास विकास कालोनी में रहने वाले दिलीप गुप्ता ने बताया पहले दुकान में चार लाख रुपये लगाए। लॉकडाउन में लंबे समय तक दुकान बंद रहने के चलते तमाम कपड़े खराब हो गये। नये तरीके से दुकान को खड़ा करने के लिए फिर से पिता से पचास हजार रुपये लिए। लखनऊ और कानपुर से रेडीमेड नये डिजाइनिंग के कपड़े मंगाये है। एक बार फिर से ब्रांड के सहारे ग्राहकों का विश्वास जीतने और कारोबार चलाने की कोशिश जारी है।
नकदी पर चल रहा बाजार
कपड़ा व्यवसायी का कहना है हम बाजार में अभी नये हैं लेकिन पुराने जो कारोबारी है वह भी परेशान हैं। कोरोना ने शारीरिक ही नहीं मानसिक दूरियां भी बढ़ा दी है। थोक व्यापारी पहले बड़े व्यापारी को माल देता है। हमें नकद देकर सामान लाना पड़ता है और इंतजार भी करना पड़ता है। हमारी दुकान गांव के पास है लिहाजा अधिकतर ग्राहक उधारी वाले होते हैं। बदले माहौल में हम भी अपना कारोबार नकदी पर चला रहे हैं।
डिजिटली भुगतान की है व्यवस्था
दिलीप का कहना है कि कोरोना संक्रमण से बचने को नकदी लेन देन से बचने की कोशिश की जा रही है। दुकान पर पेटीएम और गुगल पे से फिलहाल लेनदेन किया जा रहा है। दुकान के ग्राहक अधिकतर ग्रामीण परिवेश के हैं लेकिन आनलाइन भुगतान में रूचि लेने लगे हैं। लगन में कारोबार बढऩे की उम्मीद है। फिलहाल घाटा कम हो इसलिए तमाम खर्चों में कटौती कर दी है।
मास्क लगाकर आना अनिवार्य
व्यवसायी दिलीप की दुकान पर कोरोना से बचाव का पूरा इंतजाम है। बताया मास्क लगाकर दुकान में आना अनिवार्य कर दिया गया है। सैनिटाइजर की भी व्यवस्था की गई है। दूसरे दुकान में दो गज की दूरी का पालन करने के लिए एक से दो ग्राहक ही अंदर बुलाये जाते हैं। बताया ग्राहकों को भी कोरोना से बचने को प्रेरित करते हैं । कहा कि सबको बताया जा रहा है जब तक दवाई नहीं है तब तक ढिलाई न बरतें।