Move to Jagran APP

खानाबदोश जिंदगियों को मिली ठौर तो मजबूत हुई लोकतंत्र की डोर

समाज में अंतिम पायदान पर खड़े इस समुदाय की आबादी गोरखपुर-बस्ती मंडल में भले ही मामूली हो लेकिन कल्याणकारी योजनाओं का लाभ पाने से यह भी वंचित नहीं रहे।

By Pradeep SrivastavaEdited By: Published: Sun, 07 Apr 2019 01:08 PM (IST)Updated: Mon, 08 Apr 2019 09:55 AM (IST)
खानाबदोश जिंदगियों को मिली ठौर तो मजबूत हुई लोकतंत्र की डोर
खानाबदोश जिंदगियों को मिली ठौर तो मजबूत हुई लोकतंत्र की डोर

केस-एक : गुलबंद का जब इंतकाल हुआ तब उनकी पत्नी हसरुन निशा झोपड़ी में रहती थी। सात बच्चों की परवरिश में पूरा जीवन खप गया। फूस का आशियाना हर साल आंधी-पानी में खराब हो जाता था। हमारा भी कभी पक्का घर होगा, ऐसा ख्वाब इस परिवार ने कभी देखा ही नहीं था। मगर बीते पांच साल में हसरुन की जिंदगी बदल गई। आज यह परिवार न केवल बिजली से रोशन पक्के मकान में रहता है बल्कि गैस चूल्हे पर खाना भी बनाता है।

loksabha election banner

केस-दो : नगमा निशा को वह दिन आज भी याद है जब स्थाई पहचान न होने से सरकारी इमदाद के लिए उन्हें अपात्र बता दिया गया था। नगमा बताती हैं कि आजादी के बाद से ही उनके पूर्वज खानाबदोश जिंदगी जी रहे थे। वह लोग महराजगंज के भौंराबारी से विस्थापित होकर आए थे। एक-एक सुविधाओं के लिए उन्हें तरसना पड़ता पड़ता था। पिछले पांच सालों में उन्हें आवास, शौचालय, बिजली, सिलेंडर सब कुछ मिला है।

गोरखपुर : यह न तो किसी के चहेते हैं न ही इनका कोई बड़ा वोट बैंक है। देशज बोली में बंजारा, घूमंतू, नट कहे जाने वाले इन समुदाय की बदली जिंदगी जनकल्याणकारी योजनाओं का लाभ गरीबों तक पहुंचने का प्रमाण है। समाज में अंतिम पायदान पर खड़े इस समुदाय की आबादी गोरखपुर-बस्ती मंडल में भले ही मामूली हो, लेकिन कल्याणकारी योजनाओं का लाभ पाने से यह भी वंचित नहीं रहे। शहर से तकरीबन 20 किलोमीटर दूर सड़क किनारे बसे टोले का हाल जानने पहुंचे रजनीश त्रिपाठी की रिपोर्ट।

भटहट ग्राम पंचायत के धुसवा टोला में महज दस मकान हैं। पिच रोड से सटे इस टोले की आबादी सौ से ज्यादा है। दरवाजों पर घूमती बकरियां और मवेशी स्वच्छता अभियान पर सवाल तो उठा रहे थे, लेकिन घरों के बाहर बने शौचालय उनके धीरे-धीरे ही सही जागरूक होने की वकालत भी कर रहे थे। टोले में घुसते ही मिले गुलजार ने बातचीत के क्रम में बताया कि गांव के कुछ लड़के खलासी का काम करते हैं तो कुछ टेंपो, जीप चलाते हैं। महिलाएं और बुजुर्ग मजदूरी करते हैं। हमारे पूर्वज चूडिय़ां बेचते थे, धीरे-धीरे मांग कम हुई तो हमने पेशा बदल लिया। हालांकि कुछ परिवार अभी भी इस काम से जुड़े हैं।

आगे बढऩे पर जो शख्स मिले उन्होंने अपना नाम अमीन बताया। उनसे पूछा गया कि सरकारी योजनाओं के बारे में जानते हैं तो उन्होंने सबसे पहला नाम शौचालय का लिया। स्वच्छ भारत मिशन लिखे 'इज्जत घरÓ की तरफ इशारा करते हुए अमीन ने बताया कि देखो, वही तो है। और भी कई सुविधाएं प्रधान जी के जरिये मिली हैं। अमीन को प्रधानमंत्री आवास योजना, सौभाग्य और उज्जवला योजना का नाम नहीं पता था, लेकिन बिजली, सिलेंडर और आवास अब मुफ्त में मिलता है, इसकी उन्हें बखूबी जानकारी थी।

टोले से बाहर निकलने पर ग्राम प्रधान उर्मिला देवी से मुलाकात हुई। उन्होंने बताया कि इन परिवारों को सरकारी योजनाओं का लाभ दिलाया जा रहा है। ज्यादातर को सभी सुविधाएं मिल भी गई हैं। आधे को आवास दे दिया गया है, जो बचे हैं वह भी कतार में हैं। कितने परिवारों को किन-किन योजनाओं का लाभ मिल गया? इस सवाल का पुख्ता जवाब देने के लिए उन्होंने अपने पति सुनील मोदनवाल का सहारा लिया।

प्रधान पति सुनील ने बताया कि आजादी के बाद से ही यह बंजारे महराजगंज से विस्थापित होकर आए थे। 10 परिवारों की आबादी 100 से ज्यादा है। यह यहां के बाशिंदे नहीं थे इसलिए सुविधाएं नहीं मिल पा रही थीं। सभी को ग्राम सभा की धूस की जमीन भूमिधरी के नाम से दर्ज कराकर दे दी गई। सबसे पहले परिवारों का नाम कुटुंब रजिस्टर में दर्ज कराया गया। 10 में पांच परिवारों को प्रधानमंत्री आवास दिया जा चुका है। सभी 10 परिवारों के घर शौचालय बनवाने के साथ उज्जवला योजना में गैस चूल्हा, सौभाग्य योजना से बिजली का कनेक्शन दिया गया है। बस्ती की चार महिलाओं को विधवा पेंशन भी दिया जा रहा है। इन घरों के जो बच्चे पहले सिर्फ घूमते थे आज वह स्कूल जा रहे हैं।

आसपास भी बदल रही तस्वीर

महराजगंज में खानाबदोश परिवारों की पड़ताल में पता चला कि जयप्रकाश नगर, इंदिरा नगर, फरेंदा के जोगियाबारी व मथुरानगर आदि क्षेत्र में कंजड़ समुदाय के 1900 लोग रहते हैं। इन परिवारों को बड़े पैमाने पर प्रधानमंत्री आवास, उज्ज्वला, राशनकार्ड आदि योजनाओं से लाभान्वित किया गया है। चीन्नी, राजकुमारी, शांती, संगीता, बुच्ची, दखनी, राजन, छब्बी लाल, दूना, पप्पू, रम्भा जैसे कई ऐसे हैं जिनका कहना है कि जो कभी सोचा भी नहीं था वह आज सच हो गया।

सिद्धार्थनगर में भी बंजारा समुदाय की बस्तियां अलग-अलग इलाकों में सुविधाओं से सम्पन्न मिलीं। नौगढ़ ब्लाक के कोडऱा ग्रांट में तो बकायदा बंजारा डीह है, जिसकी आबादी तकरीबन 400 है। 15 से ज्यादा मकान पक्के हैं, जिसमें नौ प्रधानमंत्री आवास योजना के लाभान्वित हैं। हर परिवार को शौंचालय दिया गया है। मोहाना के गोपीजोत में 250 मकानों में 75 पक्के हैं। यहां की सड़कें सीसी हैं तो लाइट से घर रोशन हैं। गांव में इंडिया मार्का हैंड पंप भी नजर आए। परसा महापात्र भी इसी समुदाय का गांव हैं जहां कई पक्के मकान बने हैं।

देवरिया में नरौली भीखम, तेनुआ व खुखुंदू आदि इलाकों में नट जाति के लोग निवास कर रहे हैं। यहां जाने पर पता चला कि सैकड़ों लोगों को सरकारी योजनाओं का लाभ मिला है। दर्जनभर से अधिक ऐसे लोग हैं जो प्रधानमंत्री आवास योजना से लाभान्वित हुए हैं जबकि पेंशन और शौचालय जैसी योजनाएं तो लगभग हर पात्र तक पहुंच गई है। हालांकि अभी भी कई ऐसे टोले बस्तियां हैं जहां इन समुदाय के लोग सरकारी योजनाओं के लिए तरस रहे हैं।


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.