पूर्वांचल में स्वाइन फ्लू का कहर, हल्के में ले रहे अधिकारी
पूर्वांचल में स्वाइन फ्लू का कहर लगातार बढ़ता जा रहा है। लेकिन अफसर सच स्वीकार करने की बजाय बीमारी पर पर्दा डालने में जुटे हैं। खुद आंकड़े इसके गवाह हैं।
गोरखपुर, हेमन्त पाठक। पूर्वांचल में स्वाइन फ्लू का कहर लगातार बढ़ता जा रहा है। लेकिन अफसर सच स्वीकार करने की बजाय बीमारी पर पर्दा डालने में जुटे हैं। खुद आंकड़े इसके गवाह हैं। निजी पैथालॉजी सेंटर में जितने भी नमूने जांच के लिए पहुंच रहे हैं, उनमें से आधे से अधिक में बीमारी की पुष्टि हो रही है। दूसरी तरफ बीआरडी मेडिकल कालेज में एक तो करीब दस दिन से जांच लगभग ठप है, दूसरे अब तक हुई जांच में सिर्फ दस फीसद लोगों में बीमारी पाई गई है।
तादाद की बात करें तो मेडिकल कालेज में अबतक करीब सौ नमूनों की जांच में सिर्फ 12 लोगों में बीमारी सामने आई है जबकि एक निजी पैथालॉजी में हुई 39 लोगों की जांच में बीस से अधिक लोगों में स्वाइन फ्लू की पुष्टि हुई है। वह भी सिर्फ दस दिन के भीतर। इससे भी गंभीर तो यह है बीआरडी में जांच तक ठप है। ओपीडी में पहुंचने वाले मरीजों को डाक्टर साफ लक्षण दिखने के बावजूद जांच तक लिखने से बच रहे हैं। सिर्फ उन्हीं मरीजों की जांच हो रही है जिनमें बीमारी के लक्षण सी कटेगरी तक पहुंच चुके हैं। मतलब है बीमारी की शुरुआती अवस्था में न तो जांच होगी और न ही इलाज शुरू हो पाएगा। काफी मशक्कत के बाद यदि बीमारी सी कटेगरी तक पहुंचने के बाद जांच में पुष्टि हो भी गई तो गंभीर अवस्था में पहुंचने पर जान बच ही जाएगी इसकी कोई गारंटी नहीं है।
सच तो कुछ और ही है
स्वाइन फ्लू का कहर कितना अधिक है इसकी पुष्टि यहां के निजी पैथालॉजी सेंटर में हुई जांचों व पुष्टि से हो जाता है। महानगर स्थित लाइफ डाइग्नोस्टिक से मिले आंकड़े चौंकाने वाले हैं। पैथालॉजिस्ट अमित गोयल के मुताबिक सिर्फ बीते दस दिन में उन्होंने सेंटर में 39 लोग स्वाइन फ्लू की जांच के लिए पहुंचे। इसमें से 21 में बीमारी की पुष्टि हुई। यह तो सिर्फ एक पैथालॉजी सेंटर का हाल है, यदि शहर के बाकी सेंटर भी बात करें तो यह संख्या कहीं ज्यादा हो सकती है। लेकिन अफसरों के डर व रिपोर्टिंग के झंझट से बचने के लिए बाकी सेंटर जांच से बच रहे हैं। गोरखपुर पैथालॉजी एसोसिएशन के सचिव व पैथालॉजिस्ट डा. मंगलेश श्रीवास्तव खुद इस बात को स्वीकार करते हैं। उनका कहना है कि उनके पास स्वाइन फ्लू की जांच के लिए अत्याधुनिक मशीन हैं। लेकिन अनावश्यक कागजी कार्रवाई, रिपोर्टिंग व अफसरों को बेवजह जवाब देने से बचने के लिए इस साल उन्होंने एक भी जांच नहीं की। ऐसा तब है जबकि उनके पास सिर्फ बीते दो हफ्ते में करीब 25 मरीज पहुंचे।
सिर्फ गंभीर मरीजों की जांच
खुद चिकित्सक यह सलाह देते हैं कि यदि शुरुआती अवस्था में किसी बीमारी की पहचान कर इलाज शुरू किया जाए तो बीमारी के ठीक होने की संभावना बढ़ जाती है। लेकिन यहां तो इसके ठीक उल्टा हो रहा है। एकमात्र बीआरडी में जांच की सुविधा है। वहां भी सिर्फ उन्हीं मरीजों की जांच हो रही है जो सी केटेगरी के हैं। ऐसे मरीजों के लक्षण की बात करें तो इसको लेकर जारी गाइड लाइन में कहा गया है कि जिन वयस्क मरीजों में बुखार के साथ गले में खराश, सांस फूलना, सीने में दर्द, ब्लड प्रेशर गिरना, रक्त मिश्रित बलगम आना व नाखूनों का नीला होने जैसे लक्षण होंगे उन्हीं की जांच होगी। इतने गंभीर हाल में पहुंच चुके मरीज का इलाज कितना सफल हो पाएगा इसका अंदाजा आसानी से लगाया जा सकता है। सीएमओ डा. एसके तिवारी ने कहा कि सरकारी अस्पतालों में सिर्फ बीआरडी मेडिकल कालेज में जांच की सुविधा है। वहां जिस मरीज को चिकित्सक गंभीर समझ रहे हैं उनकी जांच हो रही है। केटेगरी सी के मरीजों की जांच के गाइडलाइन का पालन किया जा रहा है।