क्षेत्रफल इतना कि बस जाए एक शहर, ऐसी है बखिरा झील
संतकबीर नगर की बखिरा झील यदि विकसित हुई और इस झील को लेकर बनी योजनाएं लागू हुईं तो पूर्वांचल के विकास की दिशा बदल जाएगी।
गोरखपुर/संतकबीर नगर, (वेद प्रकाश गुप्त)। यूपी के संतकबीर नगर जिला मुख्यालय से लगभग 16 किलोमीटर दूर खलीलाबाद-मेहदावल मार्ग पर बखिरा कस्बे से सटे झील में अक्टूबर से फरवरी तक प्रवासी पक्षियों की मौजूदगी से 29 वर्ग किलोमीटर का क्षेत्रफल रमणीक हो जाता है। केंद्र सरकार 1990 में अधिसूचना जारी कर बखिरा के मोती झील को पक्षी विहार घोषित कर चुकी है। इस झील में ठंड के दिनों में प्रवासी पक्षियों के कलरव से झील गुंजायमान रहता है। अक्टूबर आने के बाद और मार्च शुरू होने तक इनकी वापसी शुरू हो जाती है। शेष आठ महीने का समय वीरान हो जाता है। झील का कुल क्षेत्रफल 2894.21 हेक्टेयर है लेकिन झील का सीमाकंन प्रशासानिक उदासीनता के कारण लटका पड़ा है। इस संबंध में कई बार पहल हुई लेकिन हर बार उम्मीदें दम तोड़ देती हैं।
बखिरा झील क्यों है महत्वपूर्ण
इतिहास के पन्नों में बखिरा की मोती झील का मनमोहक दृश्य , रंग- बिरंगें विदेशी पक्षियों के झुंड़ से झील गुंजायमान रहती है। यहां आने वाला हर कोई व्यक्ति कुछ पल के लिए खो जाता है। झील का दायरा 29 वर्ग किमी में फैला हुआ है। इसमें स्थानीय पक्षियों के साथ ही प्रवासी पक्षियों की दर्ज़नों प्रकार की प्रजातियां झील की खूबसूरती बढ़ा देती है। झील में मौजूद विभिन्न प्रकार की मछलियां व अन्य जलीय वनस्पतियां महत्वपूर्ण है। झील के किनारे निवास करने वाले सैकड़ों परिवारों की आजीविका भी इसी पर निर्भर है। पर्यटन की दृष्टि से यह झील काफी महत्वपूर्ण है।
झील को लेकर शासन की यह है योजना
बखिरा झील 1990 में पक्षी विहार बना था। इसके पीछे झील में आने वाली प्रवासी पक्षियों को संरक्षित करने के साथ ही इसके विकास की कार्ययोजना शासन ने कई बार बनाई थी। झील के चारों तरफ बांध निर्माण, वाच टावर, गेस्ट रूम, जेट्टी निर्माण समेत अन्य आवश्यक निर्माण की कार्ययोजना बनी थी लेकिन जिम्मेदारों की सुस्ती से योजना अधूरी है।
अब तक किए गए ये प्रयास
अभी तक झील के विकास के लिए किए गए प्रयास धरातल पर कहीं भी नजर नही आता है। अधिकारियों द्रारा झील के विकास के वादे तो खूब किए लेकिन वादों को असली जामा पहनाना तो दूर अभी तक झील का सीमांकन तक नहीं कर पाए। विकास के नाम पर पक्षी विहार परिसर में कर्मचारियों के लिए कुछ कमरे ही बने हैं। इसके सिवाय विकास के नाम पर कुछ भी नजर ही नहीं आता है। मौजूद कर्मचारी सिवाय समय व्यतीत करने के कुछ भी नहीं करते है।
झील के विकसित होने में क्या है अवरोध
झील के विकास में सबसे बड़ी बाधा है काश्तकारों की जमीन। जब तक किसानों को उनकी जमीन का मुआवजा मिल नहीं जाता है तब तक विकास की बात बेमानी है। जनपद के स्थानीय जिम्मेदार दर्जनों बार शिकायत के बाद भी इस दिशा में काम नहीं कर रहे है। यही इसके विकास में सबसे बड़ा रोड़ा बन हुआ है।
झील के विकसित होने पर विकास को मिलेगा नया आयाम
झील के विकास से निश्चित ही क्षेत्र का नक्सा बदल जाएगा। पक्षी बिहार घोषित होने के बाद से ही लोगों ने बड़े-बड़े सपने पाल रखे हैं लेकिन 28 साल बाद भी झील का विकास नहीं हो सका। यदि इस झील का विकास हो जाए तो बखिरा के आसपास के क्षेत्रों का ही नहीं बल्कि इस जनपद की तस्वीर बदल जाएगी। विदेशी, गैर प्रांत व जनपद के पर्यटकों के आने से रोजगार की संभावनाएं बढ़ेंगी। आर्थिक रूप से मजबूती मिलेगी। देशी-विदेशी पर्यटकों के आने पर्यटन के नक्शे में जनपद को ऊंचा मुकाम हासिल हो जाएगा।
पर्यटन स्थल के रूप में विकसित करने के लिए चल रही पहल : डीएम
डीएम भूपेंद्र एस चौधरी ने कहाकि कुछ माह पहले केंद्रीय टीम भी यहां आई थी। पर्यटन स्थल के रूप में इसे विकसित करने के लिए इस स्थल का भ्रमण किया था। इसके इतर संभावनाओं का अवलोकन किया था। इसे पर्यटन स्थल के रूप में विकसित करने की पहल चल रही है।