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संकटों के बीच पाकिस्‍तान से आए भारत, रास्ते में भाई खोया- गोरखपुर में ल‍िखी सफलता की कहानी

भारत पाकिस्‍तान बंटवारे का दर्द वैसे तो पूरे देश ने सहा लेकिन स‍िंधी समाज के लोगों ने उस दर्द के बीच गोरखपुर में अपनी नई पहचान बनाई। बंटवारे के समय अपना सबकुछ पाकिस्‍तान छोड़कर गोरखपुर आए स‍िंधी समाज ने सफलता की नई कहानी ल‍िखी।

By Pradeep SrivastavaEdited By: Published: Tue, 09 Aug 2022 07:03 AM (IST)Updated: Tue, 09 Aug 2022 07:03 AM (IST)
संकटों के बीच पाकिस्‍तान से आए भारत, रास्ते में भाई खोया- गोरखपुर में ल‍िखी सफलता की कहानी
बंटवारे के समय पाकिस्‍तान से गोरखपुर आए हंसराज वालानी। - जागरण

गोरखपुर, जागरण संवाददाता। भारत-पाकिस्तान बंटवारे के बाद अपना घर-बार छोड़ना और अपनों के बिछड़ने का दर्द क्या होता है, यह सूर्यकुंड निवासी हंसराज वालानी की आंखों में साफ देखा जा सकता है। 78 वर्षीय हंसराज वालानी उस समय मात्र 3.5 साल के थे। लेकिन उन्हें याद है कि भारत आते समय किसी जालिम की गोली से उनके बड़े भाई की मौत हो गई थी।

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कड़ी मेहनत कर अपने पैरों पर खड़े हुए

यहां आने के बाद भी उनके माता-पिता को जो संघर्ष झेलना पड़ा, उसके बारे में उन्होंने केवल सुना है। कड़ी मेहनत से वह अपने पैरों पर खड़े हुए। न सिर्फ उन्होंने बच्चों काे पढ़ाया-लिखाया बल्कि अपने लिए दुकानें व आवास भी तैयार किया।

सबकुछ छोड़कर हुए थे विस्‍थाप‍ित

हंसराज वालानी बताते हैं कि उन्होंने अपने पिता व ताऊ से उस समय की भयावहता सुनी है। सिंध प्रांत के सखकर जिले के थाडे गांव के वह रहने वाले थे। उनके पास सबकुछ था। गाय-भैंस, दुकान व बड़ा सा मकान। सभी सुख-सुविधाएं थीं। लेकिन अचानक सब छोड़कर वहां से भागना पड़ा। जब भारत आए तो सबसे पहले मुंबई में राहत शिविर में जगह मिली। वहां कुछ दिन रहने के बाद हम लोग गोरखपुर आ गए। यहां विजय चौक पर तब जंगल हुआ करता था। वहीं एक शरणार्थी शिविर में हम लोग रहने लगे। कुछ दिन के बाद जटाशंकर में एक मकान में आ गए।

प‍िता ने चाय बेची, बच्‍चों ने बनाया नया मुकाम

चाय बेचकर पिता व ताऊ हम लोगों का पालन करने लगे। ऐसे ही चलता रहा। फिर धीरे-धीरे किराना व कपड़े की दुकान खोली गई। उन्होंने जो भी सहा, उसका असर बच्चों पर नहीं होने दिया। हमें पढ़ाते-लिखाते रहे। बाद में सिंधी कालोनी में हम लोगों को जगह मिली। इसी बीच मैंने पालिटेक्निक कर लिया और इंजीनियरिंग कालेज में मुझे जूनियर इंजीनियर की नौकरी मिल गई। इसके बाद सूर्यकुंड में अपनी मकान बनवाया। आज पूरा परिवार बहुत खुश है।


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