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गोरखपुर में लिखी थी प्रेमचंद ने अपनी पहली कहानी, जानें-कथा सम्राट की विशेषता

कथा सम्राट मुंशी प्रेमचंद ने अपनी पहली कहानी गोरखपुर में ही लिखी थी। उनकी फिराक गोरखपुरी से भी गोरखपुर में ही मुलाकात हुई थी।

By JagranEdited By: Published: Wed, 31 Jul 2019 06:30 AM (IST)Updated: Wed, 31 Jul 2019 06:30 AM (IST)
गोरखपुर में लिखी थी प्रेमचंद ने अपनी पहली कहानी, जानें-कथा सम्राट की विशेषता
गोरखपुर में लिखी थी प्रेमचंद ने अपनी पहली कहानी, जानें-कथा सम्राट की विशेषता

गोरखपुर, जेएनएन। कथा सम्राट मुंशी प्रेमचंद ने जन्म भले ही लमही में लिया हो लेकिन उनकी कर्मस्थली गोरखपुर ही बनी। इस शहर में मुंशी जी पढ़े तो पढ़ाए भी। इसी धरती पर पहली बार उन्होंने उर्दू लिखना शुरू किया। साहित्यकारों की मानें तो दो बैलों की जोड़ी, ईदगाह, रामलीला, बूढ़ी काकी, कफन, पंच परमेश्वर, गोदान, गबन जैसी उनकी कालजयी कृतियों की पृष्ठभूमि गोरखपुर में ही तैयार हुई थी। यहीं उन्हें मन्नन द्विवेदी गजपुरी और फिराक गोरखपुरी जैसे लोगों का साथ मिला। कहने का मतलब उनके जीवन के बेहद महत्वपूर्ण अध्याय गोरखपुर में रचे गए। इसी शहर में उन्होंने महात्मा गांधी के आह्वान पर 1921 में अपनी नौकरी से त्यागपत्र दे दिया था और स्वाधीनता सेनानी बने। यही वजह है कि यह शहर उन्हें आज भी शिद्दत से याद करता है और उनसे अपना रिश्ता जोड़कर गर्व से इतराता भी है। कहने का मतलब गोरखपुर की फिजा में प्रेमचंद की यादें आज भी जिंदा हैं। ऐसे में प्रेमचंद जयंती वह अवसर है, जब हम उनसे गोरखपुर के रिश्ते को याद करें और गौरव की अनुभूति करें।

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पहली बार अपने पिता के साथ गोरखपुर आए थे प्रेमचंद

मुंशी प्रेमचंद के बचपन के चार वर्ष गोरखपुर में बीते। वह इस शहर में पहली बार 1892 में अपने पिता मुंशी अजायब लाल के साथ आए, जो डाक विभाग में मुलाजिम थे और तबादले के तौर पर गोरखपुर आए थे। तब वह धनपत राय कहे जाते थे। चार वर्ष के प्रवास के दौरान उन्होंने यहां रावत पाठशाला और मिशन स्कूल से आठवीं कक्षा पास की। इनसे हटकर धनपत राय के गोरखपुर में अनौपचारिक शिक्षा के भी केंद्र थे, जिनसे यह महान कथाकार निकला। प्रेमचंद ने खुद स्वीकार किया है कि वह नखास चौक पर मौजूद बुद्धिलाल की दुकान पर बैठते थे और वहां से उपन्यास लेकर पढ़ते थे।

गोरखपुर की सच्ची घटना पर आधारित कहानी

'मेरी पहली रचना' शीर्षक से लिखी गई उनकी पहली कहानी गोरखपुर की एक सच्ची घटना से निकली। यह घटना मामा जी नाम के एक चरित्र से जुड़ी थी। मामा जी पढ़ने-लिखने को लेकर प्रेमचंद से बेवजह टोका-टाकी करते रहते थे। चिढ़कर प्रेमचंद ने उनकी करतूतों पर एक नाटक लिखा और उसे उनके सिरहाने रखकर स्कूल चले गए। उनके मामा ने जब नाटक देखा और उसे लेकर चले गए। इस घटना ने युवा प्रेमचंद को कलम की ताकत का प्रत्यक्ष ज्ञान करा दिया।

मुंशी प्रेमचंद से यहीं पर फिराक की मुलाकात

गोरखपुर में दूसरी बार प्रेमचंद नौकरी के दौरान बस्ती से तबादला लेकर 1916 में आए। उस समय वह उर्दू कथाकार के रूप में स्थापित हो चुके थे। उसके बाद वह यहां वे यहा 18 मार्च 1921 तक सरकारी नौकरी से इस्तीफा देने तक रहे। गोरखपुर में ही उनके बड़े पुत्र श्रीपत राय का जन्म हुआ था। यहां उनकी मुलाकात महावीर प्रसाद पोद्दार से हुई, जो कलकत्ता में हिदी पुस्तक एजेंसी चलाते थे। उनकी प्रेरणा से ही प्रेमचंद की कृतियां हिदी में आनी शुरू हो गई। इसका जिक्र प्रेमचंद के पुत्र अमृत राय ने अपनी पुस्तक कलम के सिपाही में भी किया है। पोद्दार की वजह से ही प्रेमचंद और फिराक की मुलाकात हुई। गोरखपुर से प्रकाशित होने वाले प्रसिद्ध पत्र स्वदेश व उसके संपादक दशरथ प्रसाद द्विवेदी से प्रेमचंद के गहरे संबंध थे। स्वदेश के लिए प्रेमचंद ने कई क्रातिकारी लेख लिखे। नार्मल स्कूल के जिस आवास में रहकर प्रेमचंद ने गोरखपुर में शिक्षा विभाग की नौकरी की, उसी में आज प्रेमचंद साहित्य संस्थान की लाइब्रेरी है। उन्हीं के नाम पर लाइब्रेरी के इर्दगिर्द पार्क विकसित किया गया है। पार्क परिसर में एक मुक्ताकाशी मंच है, जहां नाट्य संस्थाएं उनकी कहानियों की नाट्य प्रस्तुति कर उससे निकलने वाले संदेश को जन-जन तक पहुंचाती हैं।

चेतना का दस्तावेज है प्रेमचंद का साहित्य

प्रेमचंद ने कथा क्षेत्र में प्रवेश के साथ ही अपनी कसौटी पर रचनाओं का विकास किया। साहित्य की एक नई जमीन तैयार की। भारतीय समाज में किसान, दलित, स्त्री का पक्ष लेने वाले सर्वाधिक समर्थ लेखक बने। अपने अंतिम दिनों में प्रेमचंद कफन, पूस की रात, और गोदान जैसी कृतियां देश को सौंप गए तो आगे चलकर विश्व साहित्य का अंग बनीं। प्रेमचंद का साहित्य मुक्ति की व्यापक चेतना का दस्तावेज है। उनकी करीब तीन सौ कहानियों में मानव जीवन का यथार्थ इतने अनोखे और सुंदर ढंग से समाहित है कि वह युगों-युगों तक अस्तित्व में रहेंगी।

प्रेमचंद सतत विकासशील चेतना के यथार्थवादी कथाकार थे। उनका मानना था कि इतिहास की पुस्तकों में नामों और वर्षो के अलावा कुछ भी वास्तविक नहीं होता। जबकि कथा साहित्य में नामों और वर्षो के अलावा कुछ भी आवश्यक नहीं होता। डॉ. राम विलास शर्मा ने लिखा भी है कि प्रेमचंद की कहानियों में जो एक ठेठपन है, उसमें पाठक के हृदय में अपनी बात सीधे उतार देने की ताकत है। उन्होंने यह भी कहा है कि प्रेमचंद का साहित्य करोड़ों भारतीय जनता की वाणी है। उनके कथा साहित्य को औपनिवेशिक सामंती व्यवस्था के अनावरण का कथा साहित्य भी कहा जा सकता है। प्रेमचंद मानते थे कि साहित्य की सर्वोत्तम परिभाषा जीवन की आलोचना में है, चाहे वह निबंध के रूप में, कहानी के रूप में हो या फिर काव्य के रूप में। कथा का फलक चाहे जितना भी छोटा हो, प्रेमचंद जैसे रचनाकार अपने समय की धड़कन किसी न किसी रूप में सांकेतिक कर ही देते थे।

प्रो. रामदेव शुक्ल, कथाकार

स्मृतियों के वातायन से प्रेमचंद

भोजपुरी साहित्यकार रवींद्र श्रीवास्तव जुगानी बताते हैं कि फिराक गोरखपुरी के पिता गोरख प्रसाद इब्रत मशहूर वकील होने के साथ-साथ नामचीन शायर भी थे। तुर्कमान में उनका लक्ष्मी निवास था, जहां शाम होते-होते साहित्यकारों की महफिल जम जाती थी। फिराक के गुरु वसीम खैराबादी, मुंशी संतलाल अंबर, मन्नन द्विवेदी जैसे साहित्यकारों के साथ-साथ मुंशी प्रेमचंद की मौजूदगी उस महफिल की जान होती थी। जबतक उस महफिल की चश्मदीद जीवित रहे, उस महफिल की चर्चा छिड़ते ही उनकी आंखों की चमक बढ़ जाती थी। वह बताते थे कि फिराक उस महफिल में बतौर श्रोता बैठा करते थे। महफिल के दौरान ही फिराक अपनी रचनाएं प्रेमचंद को दिखाया करते थे। कहते हैं कि प्रेमचंद की सलाह पर ही फिराक ने अपने शेरो-शायरी के सिलसिले को आगे बढ़ाया।

जब प्रेमचंद ने ली राम कुमार वर्मा की चुटकी

प्रेमचंद की जयंती की चर्चा छेड़ते ही साहित्यकार प्रो. केसी लाल मशहूर साहित्यकार राम कुमार वर्मा के उस लेख का जिक्र करते हैं, जिसमें उन्होंने प्रेमचंद से जुड़ा एक रोचक प्रसंग साझा किया है। वर्मा ने लिखा है कि इलाहाबाद विश्वविद्यालय में एक साहित्यिक गोष्ठी थी और मुंशी प्रेमचंद उसमें बतौर मुख्य अतिथि मौजूद थे। गोष्ठी के दौरान एक पाठक ने प्रेमचंद से सवाल किया कि वह आदर्शवादी कहानियां ही क्यों लिखते हैं? प्रेमचंद का जवाब था कि उनका विश्वास समाज को जोड़ने में है और यथार्थवाद कई बार उसे तोड़ता दिखता है। इसी क्रम में जब रामकुमार वर्मा ने कहा कि यह सौभाग्य की बात है कि प्रेमचंद हमारे बीच हैं तो प्रेमचंद ने चुटकी लेते हुए कहा कि सौभाग्यकांक्षिणी तो महिलाएं होती है, आप कब से चक्कर में कहा से पड़ गए। यह सुनना था कि पूरा हाल ठहाकों से गूंज उठा।

एक नजर में प्रेमचंद का परिचय

मूल नाम : धनपत राय

साहित्यिक नाम : नवाब राय, प्रेमचंद

जन्म : 31 जुलाई 1880

मृत्यु : 8 अक्टूबर 1936

पत्‍‌नी : शिवरानी देवी

संतान : श्रीपत राय, अमृत राय, कमला देवी

साहित्यिक रचना संचार :

उपन्यास : वरदान, प्रतिज्ञा, सेवा सदन, प्रेमाश्रम, निर्मला, रंगभूमि, कर्मभूमि, गोदान, मनोरमा

कहानी : कुल 21 कहानी संग्रह प्रकाशित हुए, जिनमें 300 कहानियों को समाहित किया गया। शोजे-वतन, सप्त सरोज, नमक का दारोगा, प्रेम पचीसी, प्रेम प्रसून, प्रेम द्वादशी, प्रेम प्रतिमा, प्रेम तिथि, प्रेम चतुर्थी, सप्त सुमन, प्रेम प्रतिज्ञा, प्रेम पंचमी, प्रेरणा, समर यात्रा, नवजीवन आदि प्रमुख कहानी संग्रह हैं। सभी कहानियों का संग्रह आज की तिथि में मानसरोवर नाम से आठ भागों में प्रकाशित है।

जीवनियां : महात्मा शेख सादी, दुर्गादास, कलम, तलवार व त्याग, जीवन सार।

बाल रचनाएं : मनमोदक, कुंते, कहानी, जंगल की कहानियां, राम चर्चा

अनुवाद : प्रेमचंद ने जार्ज इलियट, टालस्टाय, गाल्सवर्दी आदि लेखकों की कहानियों का अनुवाद भी किया।

प्रेमचंद की रचनाओं पर बनीं फिल्में : नवजीवन, सेवा सदन, स्वामी, रंगभूमि, कफन, गोदान, गबन, उपन्यास निर्मला पर टीवी धारावाहिक। (मुंशी प्रेमचंद ने मोहन भगनानी की फिल्म मिल मजदूर की पटकथा भी लिखी थी)

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