बीमार होकर गोरखपुर आए थे शचींद्रनाथ सान्याल, यहीं ली अंतिम सांसें Gorakhpur News
गोरखपुर शहर के दाउदपुर काली मंदिर के बगल से गुजरने वाली गली में शचींद्र के भाई रवींद्र सान्याल का मकान था जिसमें शचींद्र के आखिरी दिन गुजरे।
गोरखपुर, जेएनएन। देश की आजादी के लिए काकोरी व बनारस कांड की व्यूहरचना करने वाले और शहीदे-आजम भगत सिंह के गुुरु शचींद्रनाथ सान्याल का गोरखपुर से गहरा नाता था, यह कम ही लोग जानते हैं। जानेंगे भी कैसे? उनके नाम पर कुछ भी तो नहीं है यहां। चौक, चौराहा, गली, स्मारक कुछ भी नहीं। बंगाली समाज के लोगों में इसकी टीस आज भी है। इस महान क्रांतिकारी ने जीवन का अधिकांश हिस्सा आजादी के लिए जेल में गुजार दिया पर अपनी आखिरी सांस गोरखपुर में ली।
दाउदपुर काली मंदिर के बगल से गुजरने वाली गली में शचींद्र के भाई रवींद्र सान्याल का मकान था, जिसमें शचींद्र के आखिरी दिन गुजरे। मकान के बगल में रहने वाली उनकी नजदीकी रिश्तेदार डॉ. लीना लाहिड़ी बताती हैं कि जिंदगी के अंतिम दिनों में वह टीबी के मरीज हो गए थे। इसके बावजूद अंग्रेजों ने उन्हें कोलकाता की जेल में कैद रखा। जेल मेंमिलने के दौरान जब शचींद्र की पत्नी ने उन्हें खून की उल्टी करते देखा तो अंग्रेजों को अंजाम भुगतने की चेतावनी दे डाली। हालत ज्यादा बिगड़ी तो उन्हें जेल से रिहा कर दिया गया। डॉक्टरों की सलाह पर गोरखपुर रहने आए, जहां 50 वर्ष की उम्र में सात फरवरी 1942 में उनका निधन हो गया। शचींद्रनाथ सान्याल का जन्म तीन जून 1893 को वाराणसी में हुआ था।
सड़क के नामकरण की मांग उठी पर दबकर रह गई
डॉ. लीना लाहिड़ी बताती हैं कि एक बार शचींद्रनाथ के नाम पर काली मंदिर के बगल की गली का नाम रखे जाने की मांग उठाई गई लेकिन बात सिर्फ मांग तक ही रह गई। उन्होंने बताया कि शचींद्र के भाई रवींद्र सेंट एंड्रयूज कॉलेज में शिक्षक थे। उनकी कुछ सम्पत्ति 1998 को भारत सेवाश्रम को दान में दे दी गई। जहां आज की तारीख मेंं स्वामी प्रणवानंद का आश्रम है।
गोरखपुर में ही पढ़े सचींद्र के बेटे-बेटी
डॉ. लीना बताती हैं कि चूंकि शचींद्रनाथ सान्याल का ज्यादातर जीवन जेल में ही बीता, इसलिए बेटे रंजीत और बेटी अंजलि की पढ़ाई की जिम्मेदारी भाई रवींद्र ने उठा रखी थी। ऐसे में उनकी पढ़ाई-लिखाई गोरखपुर में ही हुई थी। हालांकि अब यहां उनके परिवार से जुड़ा कोई व्यक्ति नहीं रहता।