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कभी बखिरा के बने पीतल के बर्तनों से होती थी जिले की पहचान Gorakhpur News

बखिरा के हुनरमंदों के हाथों से बने पीतल के बर्तन की खूब मांग थी। बखिरा में बने बर्तनों से पूरे देश में जनपद की पहचान थी लेकिन एक दौर ऐसा भी आया कि यह उद्योग धीरे-धीरे दम तोड़ने लगा।

By Rahul SrivastavaEdited By: Published: Fri, 22 Jan 2021 10:10 AM (IST)Updated: Fri, 22 Jan 2021 10:10 AM (IST)
कभी बखिरा के बने पीतल के बर्तनों से होती थी जिले की पहचान Gorakhpur News
संतकबीरनगर जिले के बखिरा कस्बा में बर्तन बनाते कारीगर।

हरिशंकर साहनी, गोरखपुर : एक दौर वह भी था, जब संतकबीर नगर स्थित बखिरा के हुनरमंदों के हाथों से बने पीतल के बर्तन की खूब मांग थी। बखिरा में बने बर्तनों से पूरे देश में जनपद की पहचान थी, लेकिन एक दौर ऐसा भी आया कि यह उद्योग धीरे-धीरे दम तोड़ने लगा। शासन ने फरवरी, 2018 में एक जिला-एक उत्पाद योजना में बखिरा के पीतल बर्तन को शामिल किया। इस योजना के जरिये कारीगरों को प्रशिक्षण के साथ ही सस्ता कर्ज देने के वादे किए गए थे। इसके बाद भी स्थिति में सुधार नहीं है। यहां के कारीगर रोजी-रोटी के लिए पलायन कर रहे हैं।

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हाथ से बने पीतल के बर्तनों की खूब रहती थी मांग

जनपद मुख्यालय से उत्तर करीब 16 किमी दूरी पर स्थित बखिरा कस्बा में लगभग 150 साल पहले कुछ कारीगर हाथ से पीतल के बर्तन बनाने का काम शुरू किए थे। इनकी देखा-देखी बूंदीपार, परतिया, जसवल भरवलिया, मेड़रापार, हरदी, तिघरा, झुंगिया सहित अन्य गांवों के कुछ और कारीगर भी यही काम करने लगे। शादी में देने के लिए लोग यहां पर हाथ से बने पीतल का थारा, पराता, लोटा, करछूल, बटुली, हंडा, थाली, कटोरा सहित अन्य बर्तनों की खरीदारी में काफी रुचि दिखाते रहे। इस जनपद के ही नहीं अपितु गोरखपुर, बस्ती, सिद्धार्थनगर सहित अन्य जनपदों से लोग बर्तन खरीदने के लिए आते थे। यहां के बने बर्तन देश के कई हिस्सों में पहुंचाए जाते थे। लगभग एक दर्जन गांवों के करीब दो हजार कारीगरों की रोजी-रोटी इससे चलती रही। वर्ष 1995 से कच्चा माल के अभाव में यह उद्योग मंदी की तरफ चल पड़ा।

34 कारीगरों को नहीं मिला बैंक से सस्ता कर्ज

हाथ से बने पीतल के बर्तन वजनी होते हैं, इससे इसकी कीमत भी अधिक होती है। वहीं मशीन से बने पीतल के बर्तन हल्के होते हैं, इससे इसकी कीमत भी कम होती है। बाजार में हाथ से बने वजनी बर्तनों की जगह मशीन से बने हल्के बर्तनों की मांग बढ़ गई। इसका असर कारीगरों पर पड़ा। ये कारीगर जिला उद्योग विभाग के जरिये प्रशिक्षण प्राप्‍त करने और बैंक से सस्ता कर्ज लेने के लिए प्रयास किए। कस्बे के 34 कारोबारी बैंक से कर्ज के लिए फाइल लगाए हैं, लेकिन अभी तक उस पर कोई सुनवाई नहीं हुई।

पीतल का बर्तन बनाने की जगह बाहर कर रहे काम

बखिरा कस्बा निवासी शनि सिंह कसेरा, राजेंद्र कुमार, श्याम कुमार पीतल का बर्तन बनाने की जगह दस साल से दमन में एक प्लास्टिक की फैक्ट्री में काम कर रहे हैं। इनका कहना है कि जब तक विभाग और बैंक की तरफ से सकारात्मक पहल नहीं की जाएगी, तब तक इस पेशे में छाई मंदी दूर नहीं हो सकती है।

कर्ज के आवेदन स्वीकृति के अभाव में चल रहे लंबित

उपायुक्त उद्योग रवि शर्मा ने बताया कि सांसद के अलावा डीएम की कई बार चेतावनी के बाद भी बैंक शाखाओं में कर्ज के आवेदन स्वीकृति के अभाव में लंबित चल रहे हैं। कुछ बैंक शाखाओं के अधिकारी इसमें रुचि नहीं दिखा रहे हैं।


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