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ममता और सेवा भाव के तराजू पर नहीं डिगा हौसला

संक्रमण काल में नहीं खोया हौसलासास को कोरोना से भी बचाया

By JagranEdited By: Published: Sat, 08 May 2021 10:44 PM (IST)Updated: Sat, 08 May 2021 10:44 PM (IST)
ममता और सेवा भाव के तराजू पर नहीं डिगा हौसला
ममता और सेवा भाव के तराजू पर नहीं डिगा हौसला

जागरण संवाददाता,बस्ती : ममता और सेवाभाव के तराजू पर तौलने की बारी आई तो महिला अस्पताल की स्टाफ नर्स शिखा कश्यप ने कदम पीछे खींचे न ही हौसला खोया। जी हां, कोरोना की पहली लहर से अब तक बिना छुट्टी वह मरीजों की सेवा कर रही हैं। इनका तीन साल का बेटा है। एक साल बीतने को है लेकिन बेटे को मां की गोद और दुलार नहीं मिल पाई। यह प्रेरणादायी कहानी हैं एक बच्चे की मां की।

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शिखा बस्ती के कटरा में किराए के मकान में पुत्र, पति और सास के साथ रहती हैं। खुद को कोरोना काल से परिवार से दूरी बनाकर रह रही हैं। इतना ही नहीं बच्चे को संक्रमण से बचाने के लिए खुद से दूर रखा। बच्चा मां को घर में देखता है तो पास आना चाहता है लेकिन उसे दूर ही रोक देती हैं। कभी-कभी वह रोने लगता है,तो खुद के आंसू भी छलक जाते हैं। इनको लगा कोरोना चला जाएगा लेकिन दूसरी लहर ने अंदर से और डरा दिया है। कहती हैं बेटा जीने का सहारा है। यह दूरियां तो कुछ दिनों की है।

बताया पिछले महीने की बात है सास कोरोना संक्रमण की जद में आ गईं। यह चुनौती वाला समय था लेकिन बच्चे को दूर रखते हुए सास का घर में ही डाक्टर की सलाह पर रखा और इलाज कराया और स्वस्थ हो गईं। अब तो सभी कोरोना को लेकर सजग हैं और बचाव के उपाय अपना रहे हैं। कहा पति ने संकट के इस दौर में भरपूर साथ दिया। वह भी जब नौकरी से खाली होते थे तो कुछ देर के लिए मां व बच्चे को समय देते थे। मेरी सुबह और रात कब होती,पता नहीं चलता। नींद भी कभी पूरी नहीं हुई। एक तरफ जब कोरोना महामारी में लोग नौकरी से भाग रहे हैं, डर से घर में ही दुबके हैं, ऐसे में शिखा का हौंसला औरों के लिए प्रेरित करने वाला है।

शिखा की तैनाती महिला अस्पताल में साल 2019 में नियमित के रूप में हुई थी। कोरोना की पहली लहर में भी उन्होंने हौसला व जज्बा दिखाते हुए कार्य किया। दूसरी लहर में भी उन्हीं जज्बों के साथ जुटी हुई हैं। खुद की चिता छोड़ मरीजों की सेवा में तत्पर शिखा ने सेवा के इस क्षेत्र में अपनी अलग पहचान बनाई है। कहा एक मां होते हुए भी अपने मासूम बेटे को जो प्यार, दुलार देना है नहीं दे पा रही हैं। यह कसक है लेकिन सैकड़ों के आंसू पोछने में जो सुखद अनुभूति होती है,उसमें यह दुख भूल जाता है।


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