कसौटी - झटपट से छुटकारा दे दो साहब Gorakhpur News
पढ़ें गोरखपुर से उमेश पाठक का कालम कसौटी--
गोरखपुर, जेएनएन। घर में रोशनी करने का अधिकार पाने के लिए लोग 'पॉवर आपूर्ति वाले विभाग के चक्कर लगा रहे हैं, लेकिन उन्हें इस मेहनत का फल नहीं मिल रहा। घर बैठे लोग यह अधिकार 'झटपट प्राप्त कर सकें, इसके लिए विभाग ने ऑनलाइन आवेदन की नई व्यवस्था बनाई है। दावा किया गया कि लोगों को इसके लिए कार्यालय आने की जरूरत नहीं है। आवेदन के दौरान जरूरी कागजात अपलोड करिए, एक सप्ताह के भीतर रोशनी का अधिकार मिल जाएगा। इस दावे से जरूरतमंदों को बिल्कुल रामराज्य वाला अनुभव होने लगा और शुरू हो गया घर बैठे आवेदन करने का सिलसिला। पर, तमाम कोशिशों के बावजूद पूरा आवेदन भर पाने में अधिकतर लोग नाकाम हो रहे हैं। थक-हारकर दोबारा अधिकारियों के यहां पहुंच रहे हैं, लेकिन उनकी समस्या को वास्तविक मानने के लिए कोई तैयार नहीं। अब आवेदकों को यह समझ नहीं आ रहा कि 'झटपटÓ रूपी झंझट से छुटकारा कैसे पाएं?
तारणहार बने पहले वाले साहब
शहरी विकास की रूपरेखा तय करने वाले विभाग में पहले वाले एक साहब आजकल खूब चर्चा में हैं। चर्चा यूं ही नहीं है। उनके कुर्सी पर रहते हुए यह बात सार्वजनिक थी कि वह राजस्व की वसूली के मामले में कोई समझौता नहीं करते। दिमाग बकाया वसूलने के रास्ते की खोज में विचरण करता रहता था। यहां से उनके जाने के बाद जो बातें सामने आ रही हैं वो पुरानी चर्चाओं से अलग हैं। चर्चा विभाग में कानूनी दांव-पेच से जुड़े एक छोटे साहब को लेकर है। उन्होंने विभाग से एक संपत्ति ली थी। कालांतर में वह बड़े डिफाल्टर बन गए। माना जा रहा था कि यह 'तमगा हटाने के लिए उन्हें संपत्ति बेचनी ही पड़ेगी। हर दरवाजे से नाउम्मीदी मिल चुकी थी, लेकिन ख्याति के विपरीत बड़े साहब उनके तारणहार बने। बकाए का 50 फीसद माफ कर दिया। डिफाल्टर घोषित हो चुके साहब फिर से पूरे रौब में हैं।
इतनी टसल क्यों है भाई?
फिटनेस से जुड़े विभाग के एक साहब व पैरों से खेले जाने वाले खेल के संघ से जुड़े एक पदाधिकारी के बीच आजकल टसल चल रही है। साहब तो सार्वजनिक रूप से इस पर बात करने से बचते नजर आते हैं, लेकिन थोड़ा सा कुरेंदने पर पदाधिकारी की भावनाएं जुबां पर आ जाती हैं। यह पदाधिकारी भी ऐसे-वैसे नहीं हैं। एक समय था जब मंच पर एक जगह इनकी भी तय रहती थी। उनकी आवाज के लोग कायल थे। अतिथियों के पद की गरिमा के बखान में उनका कोई जवाब नहीं था। पर, आजकल वह मंच से दूर मैदान में दर्शक की भूमिका में रहते हैं। भरसक कोशिश होती है कि साहब से उनका सामना न हो। दोनों के बीच की यह दूरी उनके साझा शुभचिंतकों को रास नहीं आ रही। किसी से पूछ सकते नहीं तो वे मन ही मन सोच रहे हैं कि इतनी टसल क्यों है भाई?
खेल से यूं न 'खेलिए जनाब
खेल विकास के दावों के बीच 15 महीने से बंद पड़ा वीर बहादुर सिंह स्पोट्र्स कॉलेज का वॉलीबाल हाल जिम्मेदारों को मुंह चिढ़ा रहा है। लाखों रुपये खर्च कर हाल का निर्माण इस उद्देश्य से कराया गया था कि खिलाडिय़ों को अभ्यास के लिए बेहतर सुविधा मिल सके। लेकिन निर्माण के बाद से ही इस सुविधा से 'खेलनेÓ का सिलसिला शुरू हो गया। अक्टूबर 2018 में हाल की फॉल्स सीलिंग भरभरा कर गिर गई। खिलाड़ी विपरीत परिस्थितियों में जैसे-तैसे बाहर अभ्यास करने को मजबूर हैं, लेकिन महज कुछ लाख रुपये में दोबारा बन सकने वाले हाल के निर्माण की बजाय 15 महीने से अधिक समय से इसके गिरने का कारण ही ढूंढा जा रहा है। खेल विभाग हो या निर्माण एजेंसी, दोनों के अपने दावे हैं, पर दावे से कुछ होने वाला नहीं। वास्तव में कुछ करना चाहते हैं, तो खेल से यूं 'खेलना बंद कर मजबूत इच्छाशक्ति दिखानी होगी।