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गोरक्षनाथ की लोक कथाओं को लोगों तक पहुंचाएगी शोधपीठ, तेजी से चल रहा काम Gorakhpur News

शोधपीठ उनका संकलन कर पठनीय रूप में अकादमिक जगत तथा जनसाधारण के मध्य प्रस्तुत करने में अति महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगी। इसके लिए तेजी के साथ काम चल रहा है।

By Satish ShuklaEdited By: Published: Mon, 21 Oct 2019 07:02 PM (IST)Updated: Tue, 22 Oct 2019 08:19 AM (IST)
गोरक्षनाथ की लोक कथाओं को लोगों तक पहुंचाएगी शोधपीठ, तेजी से चल रहा काम  Gorakhpur News
गोरक्षनाथ की लोक कथाओं को लोगों तक पहुंचाएगी शोधपीठ, तेजी से चल रहा काम Gorakhpur News

गोरखपुर, जेएनएन। काशी हिंदू विश्वविद्यालय के भूगोल विभाग के पूर्व अध्यक्ष प्रो.राणा प्रताप बहादुर सिंह ने कहा कि महागुरु गोरक्षनाथ शोधपीठ देश के कोने-कोने एवं विदेशों में गोरक्षनाथ व उनसे संबंधित लोक कथाएं इतिहास वर्णित हैं। शोधपीठ उनका संकलन कर पठनीय रूप में अकादमिक जगत तथा जनसाधारण के मध्य प्रस्तुत करने में अति महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगी। इसके लिए तेजी के साथ काम चल रहा है।

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प्रो.राणा प्रताप बहादुर सिंह दीनदयाल उपाध्याय विश्वविद्यालय के महागुरु गोरक्षनाथ शोधपीठ द्वारा आयोजित विशिष्ट व्याख्यान को संबोधित कर रहे थे। उन्‍होंने कहा कि ग्रामीण इलाकों में आज भी देखने को मिलता है कि गेरुआ वस्‍त्र धारी व्‍यक्ति गांवों में घूमता है और लोकगीतों के माध्‍यम से गोरखनाथ की महिमा और उनके दर्शन से लोगों को परिचित कराता है। लोकगीतों में दर्शन है, महत्‍व है और उस समय की काल और परिस्थितियों का वर्णन है। हमें उनकी लोक कथाओं को लोगों तक पहुंचाने का काम करना है।

दक्षिण कोरिया के प्रो. ने भी माना आदि काल से प्रकृति का पूजना

कार्यक्रम में बतौर विशिष्ट अतिथि सिओल विवि दक्षिण कोरिया के प्रो.किम ने पर्यावरण की महत्ता पर प्रकाश डालते हुए कहा कि हम पूरब की सभ्यता वाले लोग आदि काल से ही प्रकृति का पूजन एवं संरक्षण करते आ रहे हैं। गोरखनाथ की कथाओं में प्रकृति संरक्षण का भी महत्‍व है।

योग सिद्धांत संबंधी सूत्रों को व्यवहारिक रूप प्रदान किया गोरखनाथ ने

कार्यक्रम के संयोजक तथा महागुरु गोरक्षनाथ शोधपीठ के मुख्य कार्यकारी अधिकारी प्रो.रविशंकर सिंह ने अतिथियों का स्वागत एवं शोधपीठ से परिचय करते हुए कहा कि गोरक्षनाथजी ने महर्षि पतंजलि के योग सिद्धांत संबंधी सूत्रों को व्यवहारिक रूप प्रदान किया। हमें उसी व्‍यवहारिक रूप से लोगों तक ले जाना है। ताकि लोगों को योग के बारे में अच्‍छी जानकारी मिल सके। योग को सर्व प्रथम गोरखनाथ ने ही व्‍यवहारिक रूप प्रदान किया। गांवों में सारंगी लिए गेरुआ वस्‍त्रधारी को देखते ही लोग उसे जोगी कहकर संबोधित करते हैं। जोगी कहने की यह परंपरा आज से नहीं है, आदिकाल से चली आ रही है। संगोष्ठी में प्रति कुलपति प्रो हरिशरण, प्रो.राजवंत राव, प्रो.विनोद सिंह, प्रो.मानवेद्र प्रताप सिंह, डा.अमित उपाध्याय आदि मौजूद रहे। 


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