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स्‍मृति शेष : गोरखपुर की इस कॉलोनी में शीला दीक्षित ने बिताए थे तीन साल Gorakhpur News

कांग्रेस की वरिष्ठ नेता व दिल्ली की पूर्व मुख्यमंत्री शीला दीक्षित का गोरखपुर से गहरा नाता था। वर्ष 1977 में वह परिवार समेत गोरखपुर आई थीं।

By Pradeep SrivastavaEdited By: Published: Sun, 21 Jul 2019 11:35 AM (IST)Updated: Mon, 22 Jul 2019 10:25 AM (IST)
स्‍मृति शेष : गोरखपुर की इस कॉलोनी में शीला दीक्षित ने बिताए थे तीन साल Gorakhpur News
स्‍मृति शेष : गोरखपुर की इस कॉलोनी में शीला दीक्षित ने बिताए थे तीन साल Gorakhpur News

गोरखपुर, जेएनएन। कांग्रेस की वरिष्ठ नेता व दिल्ली की पूर्व मुख्यमंत्री शीला दीक्षित का गोरखपुर से गहरा नाता था। वर्ष 1977 में वह परिवार समेत गोरखपुर आई थीं। उनके पति आइएएस विनोद दीक्षित उन दिनों गंडक परियोजना में निदेशक थे और उनकी तैनाती गोरखपुर में थी। परिवार के साथ शीला दीक्षित गोरखपुर विश्वविद्यालय की प्रोफेसर कॉलोनी में रहती थीं। उस दौरान यहां के कई लोगों से उनके अच्छे रिश्ते बन गए थे। वह करीब तीन वर्ष यहां रहीं। इस दौरान कांग्रेस पार्टी के कार्यक्रम में नियमित तौर पर शामिल होती थीं।

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प्रदेश कांग्रेस के पूर्व महामंत्री सैयद जमाल कहते हैं कि 1978 में पहली बार उनसे गोरखपुर में मुलाकात हुई। तब वह एनएसयूआइ के जिलाध्यक्ष हुआ करते थे। शीला दीक्षित में संगठन को मजबूत करने की अद्भुत क्षमता थी। जो भी कार्यकर्ता उनसे एक बार मिलता, वह मुरीद हो जाता था। 2017 के विधानसभा चुनाव में उन्होंने टाउनहाल में जनसभा को संबोधित किया था। वह गोरखपुर की उनकी आखिरी यात्रा थी।

वरिष्ठ कांग्रेस नेता पवन बथवाल के मुताबिक 2012 विधानसभा चुनाव के दौरान उन्होंने तीन दिन तक गोरखपुर में रहकर प्रत्याशियों के समर्थन में प्रचार किया था। उस दौरान उन्हें नजदीक से जानने का मौका मिला। वह बहुत ही आहिस्ता और मीठा बोलती थीं। वह कहा करती थीं कि गोरखपुर से उनका दिली जुड़ाव है और यहां की हर चीज उन्हें अपनापन का एहसास दिलाती है।

पूर्व सांसद हरिकेश बहादुर ने शीला दीक्षित से जुड़े संस्मरणों को साझा करते हुए बताया कि उनका सहृदयी स्वभाव कार्यकर्ताओं को बहुत भाता था। इसलिए वह सीधे हर कार्यकर्ता से जुड़ी रहती थीं।  एआइसीसी सदस्य शरदेंदु पांडेय बताते हैं कि 1980 में उनसे पहली बार मुलाकात हुई थी। उसके बाद से पार्टी के कार्यक्रमों में निरंतर मुलाकातें होती रहती थीं। वो मुझे बेटा कहकर पुकारती थीं। पिछले वर्ष आखिरी बार दिल्ली में उनसे मुलाकात हुई, तो उन्होंने गोरखपुर से जुड़े कई किस्से सुनाए थे।


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