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दीवानगी की बानगी है शातनु का फिल्मी सफर

डॉ. राकेश राय, गोरखपुर : बी. शातनु नाम के एक कलाकार इन दिनों रुपहले पर्दे से लेकर छोट

By JagranEdited By: Published: Fri, 23 Mar 2018 02:03 PM (IST)Updated: Fri, 23 Mar 2018 02:03 PM (IST)
दीवानगी की बानगी है शातनु का फिल्मी सफर
दीवानगी की बानगी है शातनु का फिल्मी सफर

डॉ. राकेश राय, गोरखपुर : बी. शातनु नाम के एक कलाकार इन दिनों रुपहले पर्दे से लेकर छोटे पर्दे पर खूब दिख रहे हैं। 'रईस' में आला पुलिस अफसर और 'मॉम' में सीबीआइ अफसर की भूमिका से उन्होंने बीते दिनों दर्शकों के दिल पर अपने अभिनय की अमिट छाप छोड़ी है। फिल्म 'बाबा ब्लैकशिप' रिलीज होने को तैयार है, जिसमें वह नकारात्मक भूमिका में नजर आएंगे। शांतनु मुंबई की नहीं बल्कि अपने शहर गोरखपुर की अमानत है, यह शायद कम ही लोगों को पता है। हो भी कैसे, अपने भीतर के कलाकार को निखार कर लोगों के दिल में जगह बनाने के लिए 90 के दशक में ही उन्होंने गोरखपुर छोड़ जो दिया। ऐसा नहीं कि गोरखपुर से मुंबई के सफर की राह उनके लिए बहुत आसान थी। तमाम दुश्वारियां आई, वक्त ने समय-समय पर कड़ा इम्तिहान लिया, लेकिन शांतनु की अभिनय के प्रति दीवानगी उनपर सब पर भारी पड़ी, जिसके बल पर वह आज मुंबई के फिल्म जगत में स्थापित हो चुके हैं।

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मुंबई के सफर की दुश्वारियों की शुरुआत उनके घर से ही हुई। परिवार का शहर के बक्शीपुर में पुस्तक का व्यवसाय था। व्यवसायी होने के नाते परिवार का अभिनय आदि से दूर-दूर तक नाता नहीं था, सो पहला विरोध घर से ही हुआ। इसके बावजूद वह गोरखपुर के रंगमंच पर अपनी अभिनय प्रतिभा का प्रदर्शन करने लगे। जब गोरखपुर के रंगमंच से उनको संतुष्टि नहीं मिली तो लखनऊ का रास्ता पकड़ लिया और भारतेंदु नाट्य अकादमी में दाखिल हो गए। लखनऊ से अभिनय में ट्रेंड होने के बाद उन्होंने दिल्ली की राह पकड़ी और रंगमंच के पुरोधा इब्राहिम अल्काजी और राज विसारिया के शरण में रहकर अभिनय की बारीकियां सीखीं। दिल्ली के रंगमंच पर अभिनय के दौरान उन्हें दोस्तों ने मुंबई जाने की सलाह दी। फिर कुछ दोस्तों से सलाह-मशविरा किया और उन्हीं के भरोसे मुंबई पहुंच गए। शुरुआती दौर में मुंबई रंगमंच ने उन्हें नहीं स्वीकारा, जिससे संघर्ष की लकीर बढ़ती नजर आई, लेकिन इसी बीच वह मशहूर अभिनेता आलोकनाथ, अन्नू कपूर, आलोपी वर्मा के संपर्क में आ गए तो संघर्ष थमा और उनके साथ कई नाटकों में शांतनु को अभिनय का अवसर मिल गया। अनुपम खेर और ओमपुरी का साथ मिला तो बात और जम गई। इस सफलता से उत्साहित शांतनु ने 'नेपथ्य' नाट्य संस्था की स्थापना कर डाली, जिसके बैनर तले दर्जनों नाटकों का सफलतापूर्वक मंचन किया।

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जीविका के लिए टीवी व सिनेमा की ओर किया रुख

रंगमंच के सहारे जब जीविका नहीं चल सकी तो बी. शांतनु ने टीवी और सिनेमा की ओर रुख किया। राहत, दीवार, काला सोना, अपनापन, जिंदगी कैसी है पहेली, सौभाग्यवती भव, शपथ आदि टीवी सीरियल ने उनके आर्थिक संकट को तो दूर किया ही, राष्ट्रीय पहचान भी दी। सीरियल मिले तो विज्ञापन व फिल्मों में अवसर भी मिलने लगा। इसी क्रम में जब बीते दो सालों में 'रईस' और 'मॉम' जैसी फिल्मों में काम मिला तो वह पूरी तरह से टीवी व सिनेमा के हो गए हैं। 'बाबा ब्लैकशिप' नाम की उनकी एक और फिल्म रिलीज होने वाली है तो कई और फिल्में इस लाइन में हैं। शांतनु के भाई शिव कुमार छापड़िया आज भी मोहद्दीपुर में रहते हैं। वह पेशे से वकील हैं।


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