आप मौर्यकालीन फर्जी हैं...यहां पढ़ें गोरखपुर में परदे के पीछे तैर रहीं खबरें
Shaharnama Dainik Jagran Weekly Column Gorakhpur दैनिक जागरण गोरखपुर के साप्ताहिक कालम शहरनामा में पढ़ें गोरखपुर शहर की हर वह खबर जो अभी तक पर्दे के पीछे हैं। हर वह खबर जो जानना आपके लिए जरूरी है पढ़ें- एक अलग अंदाज में।
गोरखपुर, रजनीश त्रिपाठी। मुगलकालीन शिक्षा का छोटा मंदिर इन दिनों फर्जी शिक्षकों के कारण चर्चा में है। दो दिन पहले रंगदारी के मामले में एक गुरुजी पुलिस के हत्थे चढ़ गए। जेल जाते ही निलंबित हो गए। पता चला कि वह नौकरी की करने की बजाय ब्लैकमेल कर पैसा बनाते थे। पुलिस को उसके पास से दो पन्ने की सूची मिली है। सूची मिलने से और कोई परेशान हो या न हो लेकिन वे गुरुजी अधिक परेशान हैं जो अभी भी फर्जी दस्तावेज पर नौकरी कर रहे हैं। इसमें कुछ मौर्य काल के हैं तो कुछ मुगलकाल के। खास बात यह है कि दोनों प्राचीन काल के फर्जी शिक्षक एक दूसरे के बारे में जानते तो सब हैं, लेकिन बताते कुछ नहीं। अब जब जांच की आंच सभी पर आने वाली है तो सभी एक दूसरे से टोह लेने में जुटे हैं कि आपका उद्धार मौर्य काल में हुआ था या मुगल काल में। सभी को इस बात का डर सताने लगा है कि कहीं भेद न खुल जाएं। क्योंकि उनको यह पता है कि एक बार मामले से पर्दा हटने के बाद नौकरी जानी तय है। वसूली होगी सो अलग।
जोड़-घटाना का गुणा भाग
शहर की संसद में पहुंचने के लिए चुनावी समर में उतरने का मौका जैसे-जैसे नजदीक आ रहा है, दावेदारों का प्रयास भी धरातल पर नजर आने लगा है। वर्तमान संसद के माननीय जहां दोबारा अपनी जगह कायम रखने की जुगत में लग गए हैं, वहीं नए दावेदार भी कोई हथकंडा छोड़ने के मूड में नहीं हैं। वोटर लिस्ट को जीत का सबसे हिट फार्मूला मानने वाले दावेदारों ने मतदाता सूची में जहां अपने लोगों का नाम जुड़वाने के लिए कमर कस ली है वहीं ऐसे नामों को छांटना भी शुरू कर दिया है, जिन्हें न तो वह जानते हैं और न ही वार्ड के नागरिक। मतदाता सूची में नाम जोड़ने-घटाने का गुणा-भाग देखकर अगर कोई सर्वाधिक सहमा है तो वह कर्मचारी हैं, जिनके कंधे पर यह जिम्मेदारी पड़ने वाली है। जो भी मिल रहा है विरोधी को फर्जी ही बता रहा है, चलते-चलते धमका भी रहा है कि अगर गड़बड़ी हुई तो खामियाजा भी आपको भी उठाना पड़ेगा।
साहब के ट्विटर हैंडल पर एकतरफा संवाद
जिले के बड़े साहब का ट्विटर हैंडल पूरी तरह शांत पड़ा है। कुछ समय पहले तक लोगों ने समस्याओं के निराकरण की आस में ट्वीट करना जारी रखा था लेकिन साहब के ट्विटर हैंडल से कोई हरकत होती न देख, सभी ने उम्मीद छोड़ दी। तीन महीने से कोई गतिविधि नजर नहीं आती। एक ओर जहां पूरी सरकार इंटरनेट मीडिया के इस प्लेटफार्म पर सक्रिय नजर आती है, वहीं जिले का आधिकारिक एकाउंट ठंडा पड़ा है। सभी आला अधिकारी इसी प्लेटफार्म के जरिए नवाचार की जानकारी देते हैं। शिकायतें आती हैं तो उसका निस्तारण किया जाता है लेकिन जिले में इस विकल्प को पूरी तरह से बंद कर दिया गया है। इंटरनेट मीडिया पर सक्रिय रहने वाले युवाओं को साहब के ट्विटर हैंडल पर जब एकतरफा संवाद ही करना पड़ा तो उन्होंने उम्मीद छोड़ दी। उनका कहना है कि इससे अच्छा है साहब अपना ट्विटर हैंडल ही बंद कर दें।
भाड़ में जाए तुम्हारी नेतागिरी
पांच साल से घर-घर घूमकर आंटी, भाभी, दीदी, अंकल, दादा जी की पहली पसंद बनने वाले नेताजी को पहली चुनौती अपने घर में ही मिल गई। चुनाव में उनका वार्ड महिला के लिए आरक्षित हाेने का किसी ने सिगूफा क्या छोड़ दिया, नेता टेंशन में आ गए। समर्थकों ने सलाह दी कि तनाव क्यों लेते हैं, चेहरा आपका होगा नाम चाची का। जैसा सारे करते हैं। नेताजी ने घर पहुंचकर जैसे ही मम्मी के सामने प्रस्ताव रखा उन्होंने घुटनों में दर्द का हवाला देकर एक कदम चलने में भी असमर्थता जता दी। पापा भी चार गालियां सुनाते हुए बोले-बुढ़ापे में चलने का सहारा नहीं दे सकते तो कम से कम गिराने का तो इंतजाम न करो। निराश नेताजी बड़ी उम्मीद के साथ पत्नी के सामने पहुंचे ही थे कि बिना कुछ सुने ही वह भी फट पड़ीं। बोलीं भाड़ में जाए तुम्हारी नेतागीरी, मुझसे कहना तो दूर सोचना भी मत। मुझे मायके पहुंचा दो फिर चुनाव लड़ो या लड़ाओ