गरीब बेटियों को आत्मनिर्भर बना रही तारा, सिलाई-कढ़ाई बना सहारा
तारा ने पहले गांव की महिलाओं के कपड़े सिले। उसके बाद लड़कियां उनके वहां आकर सीखने लगी। अब वह लड़कियां भी आत्मनिर्भर हो गई हैं।
गोरखपुर, जेएनएन। बालिकाओं को सबल बनाने की कवायद के तहत भले ही शासन द्वारा योजनाओं का संचालन किया जा रहा है, लेकिन वास्तविकता यह है कि योजनाएं कागजों में ही फल फूल रही हैं। ऐसे में निश्शुल्क शिक्षा व सिलाई, कढ़ाई एवं पेंटिंग का प्रशिक्षण के माध्यम से बेटियों को आत्मनिर्भर बनाने की दिशा में महराजगंज जिले के लक्ष्मीपुर कस्बे की तारा मोदनवाल द्वारा किए जा रहे प्रयास को अनदेखी नहीं की जा सकती। वह क्षेत्र की महिलाओं को भी आत्मनिर्भर बनाकर सबल बनाने के प्रयासों में जुटी हुई हैं। अब तक उन्होंने पांच सौ से अधिक युवतियों और महिलाओं को ब्यूटीशियन, सिलाई-कढ़ाई, पें¨टग समेत विभिन्न कोर्स में पारंगत करके आत्म निर्भर बनाया है।
तारा कहती हैं कि घर बैठी बेटी के रूप में मैं मां-बाप पर बोझ नहीं बनना चाहती थी, इसलिए आत्मनिर्भर बनने की ठान ली। वर्ष 2003 में शादी हुई तो लगा कि अब सारे सपने एक चौकठ के अंदर ही सिमट कर रह जाएंगे। लेकिन पति व सास-ससुर के सामने जब अपना प्रस्ताव रखा तो काफी प्रयास के बाद सभी का समर्थन मिला और प्रशिक्षण केंद्र खुला। तारा ने घर पर ही लोगों के कपड़े सिलने का काम शुरू कर दिया। यहां गांव से भी कई युवतियां उनके पास प्रशिक्षण प्राप्त करने आती हैं। प्रशिक्षण प्राप्त करने के बाद सौ से अधिक महिलाओं ने विभिन्न स्थानों पर अपनी दुकान खोलकर सिलाई, कढ़ाई और पें¨टग का काम शुरू कर दिया है और घर का खर्च चला रही हैं। तारा ने बताया कि मेरी पांच बहनें हैं, पिता मुरली प्रसाद ने सभी को पढ़ा-लिखाकर अपने पैरों पर खड़ा होने लायक बना लिया।
इन लड़कियों ने प्रशिक्षण लेकर खुद को स्वावलंबी बनाया
लक्ष्मीपुर कस्बे में जब तारा ने प्रशिक्षण केंद्र खोला तो उन्हें तमाम दुश्वारियों का सामना करना पड़ा। इसी बीच ग्रामीण क्षेत्र की कुछ युवतियों ने प्रशिक्षण लेने के लिए संपर्क किया। तारा बताती हैं कि कैसर जहां, ¨पकी, सरोज, अनिता, क्षमा पाठक, अनिता, साहनी, हसीना, शबाना, रेशमा, कमला, गुंजा, गुड़िया, पूजा आदि लड़कियों ने सिलाई, कढ़ाई एवं पें¨टग का प्रशिक्षण लेकर आत्मनिर्भर बन चुकी हैं।
अब दूसरों को दे रही प्रशिक्षण
प्रशिक्षण प्राप्त करने के बाद कैसर जहां, ¨पकी, सरोज, अनिता भी दूसरों को प्रशिक्षण देने का काम कर रही हैं। इनका कहना है कि गरीब घरों की लड़कियों से मामूली शुल्क लेकर उन्हें आत्मनिर्भर बनाया जा रहा है। अपने-अपने गांवों की लड़कियों और विवाहित महिलाओं को भी उक्त लोगों ने प्रशिक्षण देना शुरू कर दिया है।