प्रणब मुखर्जी को बुलाकर संघ ने साहसिक कदम उठाया
जागरण संवाददाता, गोरखपुर: संघ देश और दुनिया में सकारात्मक कार्य करता है। यह दुनिया का सब
जागरण संवाददाता, गोरखपुर: संघ देश और दुनिया में सकारात्मक कार्य करता है। यह दुनिया का सबसे बड़ा समूह है। 114 देशों में संघ की शाखाएं हैं। देश के 20 प्रदेशों में संघ की विचारधारा मानने वाली सरकार है। यह संघ ही कर सकता है कि कांग्रेस की परंपरा के प्रणब दा को अपने व्याख्यान में आमंत्रित किया। पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी को शिक्षा संवर्ग में बुलाकर संघ ने साहसिक कदम उठाया है। ऐसा व्यक्ति जब संघ के मंच पर जाता है तो हलचल तो होती ही है।
यह कहना है दीनदयाल उपाध्याय गोरखपुर विश्वविद्यालय में राजनीतिशास्त्र विभाग के पूर्व अध्यक्ष प्रो. श्रीप्रकाश मणि त्रिपाठी का। वह दैनिक जागरण के जागरण विमर्श कार्यक्रम में 'प्रणब मुखर्जी के नागपुर जाने का मतलब' विषय पर अपना विचार व्यक्त कर रहे थे। उन्होंने कहा कि प्रणब दा का संघ कार्यालय जाना इस महीने और आने वाले समय में प्रभाव डालने वाली महत्वपूर्ण घटना है। सभी घटनाओं के राजनीतिक निहितार्थ निकाले जाते हैं। किसी भी देश की जो विभूतियां होती हैं वह पूरे राष्ट्र के लिए होती है। आज देश में यदि किसी राजनीतिक विभूति की बात करें तो वह प्रणब दा से बढ़कर कोई नहीं है। चाहे वह कांग्रेस में रहें या न रहें।
राष्ट्रपति के रूप प्रणब दा दूसरी विभूति हैं जो पद से हटने के बाद समाज को जोड़ने का काम कर रहे हैं। इससे पहले एपीजे अब्दुल कलाम ने राष्ट्रपति पद से हटने के बाद समाज को जोड़ने का काम किया था और विजय 2020 का लक्ष्य दिया था। प्रो. मणि ने कहा कि प्रणब दा शिक्षक के रूप में संघ कार्यालय गए। संघ ने व्यापक संदर्भो में संदेश देने के लिए उन्हें बुलाया था। दो करोड़ लोगों से संघ रोजाना शाखा कार्यालयों के माध्यम से संपर्क साधता है। इसके अलावा संचार माध्यमों और करोड़ों लोग संघ से जुड़े हुए हैं। ऐसे में वह व्यक्ति जो देश की राजनीति का पुरोधा है और वह यदि अपनी बात रखता है तो संदेश दूर तक जाएगा। संघ को लेकर भ्रामक धारणा है
प्रो. श्रीप्रकाश मणि त्रिपाठी ने कहा कि संघ को लेकर भ्रामक धारणा है। संघ की परंपरा सकारात्मक कार्य करने की है। लोकतंत्र में संवाद, बहस, मतभेद चलते रहते हैं लेकिन विचार बैर में नहीं बदलने चाहिए। कहा कि राजतंत्र और लोकतंत्र का समन्वय पहले से चला आ रहा है। संघ का ध्येय है कि इसके विस्तार, व्यवहार और अस्तित्व का आधार बने।
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चार बातों पर रखे विचार
प्रो. श्रीप्रकाश मणि त्रिपाठी ने कहा कि प्रणब दा ने संघ के शिक्षा संवर्ग में परंपरा, राष्ट्र, लोकतंत्र और ¨हदुत्व पर अपने विचार रखे। इसी पर संघ का भी ज्यादा फोकस रहता है। प्रणब दा ने भारत को सबसे प्राचीन राष्ट्रों में से एक बताया। इस पर विश्व के अन्य देशों में बहस भी शुरू हो गई है। दा ने अपनी बात की पुष्टि के लिए उदाहरण भी दिए हैं। यह संयोग ही है कि प्रणब दा के पहले सर संघचालक मोहन भागवत ने भी इन्हीं बातों को बताया था। यानी दा और भागवत की बातें एक-दूसरे की पूरक रहीं। यह देखने वाली बात होगी कि आने वाले दिनों में इस विमर्श के क्या निहितार्थ निकाले जाएंगे।