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सहबाला बन पहली बार गोरखपुर आए थे अटल

1940 में अपने बडे भाई की शादी में शहबाला बनकर गोरखपुर आए थे अटल।

By JagranEdited By: Published: Fri, 17 Aug 2018 10:09 AM (IST)Updated: Fri, 17 Aug 2018 03:19 PM (IST)
सहबाला बन पहली बार गोरखपुर आए थे अटल
सहबाला बन पहली बार गोरखपुर आए थे अटल

गोरखपुर : यूं तो अटल बिहारी वाजपेयी का दर्जन से अधिक बार गोरखपुर आना हुआ, लेकिन अपना पहला आगमन न तो वह अपने जीवनकाल में भूल सके न यह शहर। दरअसल खाकी रंग की हाफ पैंट और शर्ट में किशोर अटल गोरखपुर में पहली बार सहबाला बन कर आए थे अपने बड़े भाई प्रेम बिहारी वाजपेयी की शादी में। यह बात 1940 की है जब प्रेम वाजपेयी की बरात गोरखपुर के मथुरा प्रसाद दीक्षित के घर आई थी। अलीनगर के माली टोले में मौजूद 'कृष्णा सदन' इस पल का गवाह था, जो प्रेम वाजपेयी की ससुराल है। मथुरा प्रसाद की पांच पुत्रियों में से एक रामेश्वरी उर्फ बिट्टन अटल की भाभी बनी थीं।

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दीक्षित परिवार से इस खास रिश्ते की डोर ने अटल को हमेशा बांधे रखा। वह जब भी गोरखपुर आए, व्यस्त समय में से कुछ समय निकाल कर दीक्षित परिवार के बीच जरूर गए। घर के ड्राइंग रूम में टंगी युवा अटल और उनके बड़े भाई प्रेम बिहारी वाजपेयी के ससुर पंडित मथुरा प्रसाद दीक्षित की तस्वीर अटल और दीक्षित परिवार के प्रगाढ़ संबंधों की तस्दीक है। तस्वीर 1972 की है। जाहिर है कि जब संबंध इतने प्रगाढ़ थे तो दीक्षित परिवार के पास उनसे जुड़े ढेरों संस्मरण भी होंगे। दीक्षित परिवार उन संस्मरणों को परिवार की थाती मानता है। स्व. कैलाश नाथ दीक्षित के पुत्र संजीव दीक्षित बताते हैं कि बड़े भाई प्रेम वाजपेयी की शादी के बाद अटल जी का उनके यहां नियमित आना-जाना रहा। मथुरा प्रसाद के दो पुत्र कैलाश नारायण दीक्षित और सूर्य नारायण दीक्षित अटल जी से उम्र में कुछ छोटे जरूर थे लेकिन उनमें खूब छनती थी। यही वजह थी कि तमाम राजनीतिक व्यस्तताओं के बावजूद अटल जी को जब भी अवसर मिलता, वह कृष्णा सदन पहुंचने की हर संभव कोशिश करते थे। कढ़ी और खीर के शौकीन थे अटल

संजीव दीक्षित बताते हैं कि अटल जी को अपनी मां कृष्णा वाजपेयी से बहुत लगाव था। जबतक मां जीवित थी, तबतक वह जब भी उन्हें फुर्सत मिलती मां के पास ग्वालियर चले जाते थे लेकिन मां के दुनिया छोड़ने के बाद गोरखपुर की ओर झुकाव बढ़ गया। यहां बढ़े भाई की सासू मां फूलमती उनका खास ख्याल रखती थीं। निरंतर आने-जाने और भाभी रामेश्वरी से मिली जानकारी से वह अटल जी के शौक से पूरी तरह वाकिफ हो गई थीं। ऐसे में जब भी अटल जी गोरखपुर आते, उनके लिए कृष्णा सदन में पंसदीदा कढ़ी और खीर जरूर बनती थी। फादर इज जूनियर टू सन

ग्वालियर के बाद वे आगे की पढ़ाई के लिए कानपुर के डीएवी डिग्री कालेज में आ गए। यहां प्रेमनाथ सपरिवार रहते थे और घुमनी मोहाल मोहल्ले के एक स्कूल में शिक्षक थे। साथ ही ला के विद्यार्थी भी। अवकाश प्राप्त करने के बाद पिता भी यहीं कानून की पढ़ाई करने आ गए। जब वे दाखिले के लिए पहुंचे तो बड़ा मजेदार वाकया हुआ। प्राचार्य ने पूछा कि किस बच्चे के दाखिले के लिए आए हैं। जवाब था कि बच्चे तो पढ़ रहे हैं। खुद पढ़ना है। बाद में जब अटलजी के मित्रों को इस बात का पता चला तो होली के दिन अखबारों में फादर इज जूनियर टू सन के नाम से इस वाकये को छपवा दिया। हालांकि अटलजी ने ला की पढ़ाई पूरी नहीं की। उन्होंने राजनीतिशास्त्र में एमए किया। भंडारी बन मालपुआ तलने लगते थे वाजपेयी

संजीव दीक्षित बताते हैं कि कानपुर से जब अटल जी लखनऊ आए तो पांचजन्य से जुड़ गए। एपी सेन मार्ग स्थित संघ का कार्यालय उनका आशियाना बना। कैलाश दीक्षित उन दिनों सुंदरबाग में रहकर अप्रेंटिस किया करते थे। ऐसे में अटल जी अक्सर सुंदरबाग पहुंच जाते थे। अगर खाना बनता दिखता तो उनका पहला सवाल होता- घी है? जैसे ही हां में जवाब मिलता खुद भंडारी बन जाते थे और मालपुआ तलने लगते थे। मन आ गया तो वहां ठंडाई भी छान लेते थे। फिल्म का शौक था लेकिन चूजी थे

एक पीढ़ी पहले से मिली जानकारी के मुताबिक संजीव बताते हैं कि अटल जी को फिल्म देखने का भी खूब शौक था लेकिन इसे लेकर वह बेहद चूजी थी। अगर फिल्म पंसद नहीं आती तो उसे बीच में ही छोड़ हाल से बाहर निकल जाते या फिर हाल में ही नींद ले लेते। खाने के बाद दूध से कोई समझौता नहीं

मथुरा प्रसाद दीक्षित के पुत्र सूर्य नारायण दीक्षित बताते हैं कि अटल जी ने कुछ दिन दिल्ली में 'वीर अर्जुन' अखबार में काम किया था। उन दिनों उस अखबार का कार्यालय नया बाजार में था। उस समय दीक्षित भी वहां पीएचडी करने पहुंच गए। उस दौरान कुछ दिन वह अटल जी के साथ रहे और फिर ग्वायर हास्टल में रहने चले गए। उसके बाद तो अटल जी ग्वायर हास्टल नियमित आना जाना हो गया। दिल्ली में अटल से जुड़ी यादों को ताजा करते हुए सूर्यनारायण ने बताया कि खाना बनाने वाला गढ़वाली नौकर मेरे वहां पहुंचने के बाद भाग गया। मैं सुबह विश्वविद्यालय चला जाता था और अटलजी कुछ भी खा लेते। शाम को इत्मीनान से खाना बनता था। खाने के बाद दूध से कोई समझौता नहीं। रात में सोने के पहले बड़ी गिलास में दूध पीना उनको पसंद था। इसके न मिलने पर वे हास-परिहास भी करने से बाज नहीं आते। मसलन एक रिश्तेदारी में रात को जिस गिलास में दूध मिला वह छोटा था। सुबह नाश्ते में पानी भरी बड़ी गिलास को देखते ही बोल पड़े, रात में कहां थीं महारानी। उनका आशय समझकर सब लोग ठहाके मारने लगे। साफ थी रिश्तों और राजनीति के बीच की विभाजन रेखा

1955 में लखनऊ से चुनाव जीते तो वह राजनीति में और दीक्षित बंधु अपने काम में व्यस्त हो गए। सूर्य नारायण दीक्षित बताते हैं कि रिश्तों और राजनीति में उनकी विभाजन रेखा बिल्कुल साफ थी। राजनीतिक समारोहों में वे रिश्तेदारों को नहीं के बराबर तवज्जो देते, पर पारिवारिक समारोहों में वे बिल्कुल बेतक्कलुफ होते। ऐसे समारोहों में वे बिना ताम-झाम के अकेले आना पसंद करते। एक वाकया रिश्तों के प्रति संजीदगी के उनके सबूत हैं। वर्ष 1998 के लोकसभा चुनाव में उन्होंने उप्र के चुनावी अभियान की शुरुआत गोरखपुर से की। उनको सर्किट हाउस आना था। साले सूर्यनारायण और कैलाश दीक्षित उनसे मिलने सर्किट हाउस पहुंचे। काफी प्रतीक्षा के बाद पता नहीं चल सका कि वे यहां आएंगे या नहीं। लिहाजा दोनों वहां से लौटने लगे। अभी वे सर्किट हाउस वाली मुख्य सड़क पर पहुंचे तब तक वाहनों का काफिला आ पहुंचा। दोनों लोग काफिले के गुजरने की प्रतीक्षा में सड़क के किनारे खड़े हो गए। दो वाहन तेजी से गुजर गए। तीसरी गाड़ी की गति कुछ कम हुई। एक व्यक्ति ने उसमें से हाथ हिलाया। पर दीक्षित बंधुओं की बूढ़ी आंखें नहीं भाप सकी कि वे अटलजी ही थे। बाद में उसी गाड़ी में मौजूद राजनाथ सिंह ने लखनऊ में मुलाकात के दौरान सूर्यनारायण दीक्षित को वह दृष्टांत सुनाया। हम पहुंचे हुए हैं और पहुंच जाएंगे

1994 में स्व. मथुरा प्रसाद दीक्षित के भाई के ब्रह्मभोज पर उनका अलीनगर आना हुआ। आदतन बिना ताम-झाम के अकेले ही आए थे। रात में जब जाने लगे तो स्व. कैलाश दीक्षित के पुत्र संजीव दीक्षित ने कहा चलिए आपको पहुंचा देते है। तुरंत जवाब मिला हम पहुंचे हुए हैं और पहुंच जाएंगे। अटल जी यह जबाव अपने अंदर गहरा संदेश समेटे हुए था।


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