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बकरी पालन से आत्मनिर्भरता की इबारत लिख रहीं ग्रामीण महिलाएं

कभी एक-एक रुपये के लिए मोहताज महिलाएं अब बकरी पालन व्यवसाय से आत्मनिर्भरता की इबारत लिख रही हैं। इन महिलाओं को आत्म निर्भर बनने में सहयोगी बना राष्ट्रीय आजीविका मिशन। जिसके सहयोग से स्वयं सहायता समूह का गठन कर महिलाएं आगे बढ़ रही हैं।

By Navneet Prakash TripathiEdited By: Published: Wed, 27 Oct 2021 06:41 PM (IST)Updated: Wed, 27 Oct 2021 06:53 PM (IST)
बकरी पालन से आत्मनिर्भरता की इबारत लिख रहीं ग्रामीण महिलाएं
बकरी पालन से आत्मनिर्भरता की इबारत लिख रहीं ग्रामीण महिलाएं। प्रतीकात्‍मक फोटो

गोरखपुर, जागरण संवाददाता। कभी एक-एक रुपये के लिए मोहताज देवरिया जिले की तमाम महिलाएं अब बकरी पालन व्यवसाय से आत्मनिर्भरता की इबारत लिख रही हैं। इन महिलाओं को आत्म निर्भर बनने में सहयोगी बना राष्ट्रीय आजीविका मिशन। जिसके सहयोग से स्वयं सहायता समूह का गठन कर महिलाएं आगे बढ़ रही हैं।

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125 महिलाएं कर रही बकरी पालन

जिले मे स्वयं सहायता समूह से जुड़ी 125 महिलाएं बकरी पालन कर परिवार की जिंदगी संवार रही है। एक बकरी के पालन में हर माह दो हजार रुपये लागत आती है। हर महीने सात से आठ हजार रुपये मुनाफा हो रहा है। जिससे उत्साहित महिलाएं बकरी पालन को लगातार बढ़ा रही हैं। बकरी पालन से परिवार की आर्थिक स्थिति मजबूत हो रही है। आर्थिक समृद्धि से घर का माहौल बदल रहा है।

दो से बढ़ी 24 बकरियां

गौरीबाजार क्षेत्र के इंदूपुर की रहने वाली दुर्गावती ने कहा कि पहले बकरी पालन करना अटपटा लग रहा था। लेकिन आजीविका मिशन के अधिकारियों की सलाह पर दिसंबर 2019 में दो बकरी खरीद कर पालन शुरू किया। करीब चार माह बाद दोनों बकरियों से आय बढ़ने लगी। अब उत्साह बढ़ा। उसके बाद स्वयं सहायता समूह की मदद से बकरियों की संख्या में इजाफा किया। इस वक्त 24 बकरियां हैं। जिसमें बकरियों के बच्चे भी शामिल हैं। हालांकि दुर्गावती अभी किसी संस्था से सम्मानित नहीं हुई है। जिलाधिकारी की तरफ से उन्हें सम्मानित करने की तैयारी की है।

सर्वाधिक गौरीबाजार में महिलाएं कर रही बकरी पालन

बकरी पालन में स्वयं सहायता से जुड़ी सर्वाधिक गौरीबाजार की महिलाएं आगे आई हैं। इस ब्लाक की 31 महिलाएं बकरी पालन कर रही हैं। दूसरे नंबर पर बनकटा विकास खंड की महिलाएं हैं। तीसरे नंबर पर बरहज, लार, भागलपुर व अन्य ब्लाक शामिल हैं।

कई बीमारियों को दूर करने में काम आ रहा बकरी का दूध

सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र सलेमपुर में तैनात एमडी डा.राजेश कुमार का कहना है कि बकरी के दूध में कैल्शियम, प्रोटीन, पोटैशियम और विटामिन डी भी पाया जाता है, जो शरीर के लिए बहुत ही फायदा बंद है। यह दूध आयरन और कापर से भी समृद्ध है। हड़डियां व दातों को मजबूत भी बकरी का दूध बनाता है। इसका दूध पीने से आस्टियोपोरोसिस होने की संभावना कम कम रहती है। पेट में सूजन भी कम होता है। सबसे अधिक लाभकारी डेंगू रोग में बकरी का दूध है।

2549 बकरियां स्वयं सहायता समूह के महिलाओं के पास

ऐसे तो एक-दो बकरियां महिलाएं पहले से ही पालती आई है। लेकिन दिसंबर 2019 में स्वयं सहायता समूह से जुड़ी महिलाओं को इसके प्रति जागरूक किया गया। जिसके बाद स्वयं सहायता से जुड़ी महिलाएं बकरी पालने में ज्यादा बल देने लगी। एनआरएलएम के पास मौजूद आंकड़ों में 2549 बकरियां स्वयं सहायता समूह की महिलाओं के पास है।

दो-दो सौ रुपये लीटर बिक रहा बकरी का दूध

बकरी पालन कर रही दुर्गावती का कहना है कि इन दिनों बकरी पालन करने से कई तरह के फायदे हो रहे हैं। डेंगू का जब से असर शुरू हुआ है, तब से बकरी के दूध की मांग बढ़ गई है। इन दिनों पौने दो से दो सौ रुपये में एक लीटर लोग बकरी का दूध ले रहे हैं। हमारे यहां का दूध गांव व आसपास में ही खपत हो रही है।

5160 महिलाएं कर रहीं रोजगारपरक कार्य

एनआरएलएम के आयुक्‍त विजय शंकर राय ने बताया कि स्वयं सहायता समूह से जुड़ी 5160 महिलाएं रोजगारपरक कार्य कर रहीं हैं। कुछ महिलाएं बकरी पालन कर अपनी जिंदगी संवार रही हैं। उन्हें विभाग की तरफ से प्रोत्साहन भी दिया जा रहा है।


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