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Fight Against Coronavirus: इन्हें तो रास्ते का पानी भी नसीब नहीं, मिल रही सिर्फ सूखी पूडि़यां Gorakhpur News

कभी जिला प्रशासन के तो कभी विभाग के लोग सामने सूखी चार पूडिय़ां और चटनी परोस दे रहे हैं बाहर कुछ खाने को मिलता नहीं। ढाबे पर खाने की हिम्मत नहीं हो रही है। बस ऐसे काम चल रहा है।

By Satish ShuklaEdited By: Published: Sat, 30 May 2020 09:06 PM (IST)Updated: Sat, 30 May 2020 09:06 PM (IST)
Fight Against Coronavirus: इन्हें तो रास्ते का पानी भी नसीब नहीं, मिल रही सिर्फ सूखी पूडि़यां Gorakhpur News
Fight Against Coronavirus: इन्हें तो रास्ते का पानी भी नसीब नहीं, मिल रही सिर्फ सूखी पूडि़यां Gorakhpur News

प्रेम नारायण द्विवेदी, गोरखपुर। काल बनकर सिर पर मंडरा रहा कोविड-19 नाम का यह अदृश्य शत्रु लोगों को अपनों से दूर करता जा रहा। न घर वाले चौखट लांघने दे रहे और न गांव वाले रहम कर रहे हैं। उन कोराना योद्धाओं से भी लोग परहेज करने लगे हैं जो अपनी जॉन जोखिम में डालकर रोडवेज की बसों से परदेस से लौटे प्रवासियों को उनके खेत-खलिहान तक पहुंचा रहे हैं। परिजन डर के मारे कहते हैं कि लॉकडाउन तक बाहर ही रहो। रास्ते में प्यास लग रही है तो उन्हें देखकर पानी की टोटियां भी सूख जा रहीं हैं। उनका अपना विभाग और संबंधित अधिकारी भी उनकी सुध नहीं ले रहे हैं। कभी जिला प्रशासन के तो कभी विभाग के लोग सामने सूखी चार पूडिय़ां और चटनी परोस दे रहे हैं, जो मेहनतकश बस चालकों के लिए ऊंट के मुुंह में जीरा के समान हो रहा है। बाहर कुछ खाने को मिलता नहीं। ढाबे पर खाने की हिम्मत नहीं हो रही है। घर का टिफिन कब तक चलेगा। एक बार ड्यूटी पर आ जाने के बाद पांच से छह दिन लग जा रहे हैं। इसके बाद भी रोडवेज के बस चालक दिन-रात रोडवेज की बसें चलाकर लोगों की घरों में खुशहाली ला रहे हैं। वे कहते हैं, प्रवासियों की खुशी देखकर उनका मन भी खुश हो जाता है। सारी शिकायतें और शरीर का दर्द गायब हो जाता है।

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क्‍या कहते हैं बस चालक, जानें-उन्‍हीं की जुबानी

सिकंदराबाद डिपो के चालक अरुण कुमार का कहना है कि ड्यूटी पर आने के बाद घर लौटने में एक सप्ताह लग जा रहे। एक दिन में ही घर का टिफिन समाप्त हो जाता। खाने का जो पैकेट मिलता है उसमें सिर्फ सूखी पूडिय़ां व चटनी रहती है। अभी तक मानदेय भी नहीं मिला है। गोरखपुर डिपो के बस चालक शिवशंकर मौर्य का कहना है कि झांसी और आगरा बस लेकर जाने और आने में दो दिन लग जाते हैं। प्रवासियों को लेकर रास्ते में कहीं रुकना भी नहीं होता। वापसी में प्यास लगने पर भी पानी नहीं मिलता। रोड के किनारे वाले हैंडपंप के हैंडिल निकले होते हैं। पडरौना डिपो के बस चालक रामप्रीत का कहना है कि घर से निकलने के बाद न स्नान कर पाते हैं और न कपड़े धुल पाते हैं। प्रसाधन केंद्र की कोई व्यवस्था नहीं है। मास्क भी एक ही मिला था। आखिर वह कब तक चलेगा। लंच पैकेट भी दोपहर बाद मिलता है। घर के लोग डरे रहते हैं। गोरखपुर डिपो के बस चालक मनोज कुमार का कहना है कि ड्यूटी पर आने के बाद प्रवासियों के पहुंचने का इंतजार करते हैं। अक्सर इंतजार में ही रात हो जाती है। सड़क पर सोना पड़ता है। कभी लंच पैकेट तो कभी एक केला और आधा लीटर पानी का बोतल मिल जाता है। बसें भी सैनिटाइज नहीं की जाती हैं।

अब इनकी भी सुनिए

परिवहन निगम के क्षेत्रीय प्रबंधक डीवी सिंह का कहना है कि रोडवेज की तरफ से भरपूर भोजन का पैकेट दिया जा रहा है। रात के समय चावल-दाल भी खिलाया जाता है। मास्क और सैनिटाइजर भी दिए जा रहे हैं। सभी कर्मियों का ख्याल रखा जाता है। 


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