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Ramlila 2022: गोरखपुर में 165 साल से चली आ रही है रामलीला की खास परंपरा, प्रसिद्ध है राघव शक्ति मिलन

Ramlila 2022 गोरखपुर में रामलीला का इतिहास काफी पुराना है। शहर में कई जगहों पर रामलीला का मंचन होता है। कुछ स्थानों पर रामलीला की शुरुआत हो चुकी है। बर्डघाट के रामलीला का मंचन अयोध्या के कलाकारों द्वारा किया जाता है।

By Rakesh RaiEdited By: Pragati ChandPublished: Sat, 24 Sep 2022 05:20 PM (IST)Updated: Sat, 24 Sep 2022 05:20 PM (IST)
Ramlila 2022: गोरखपुर में 165 साल से चली आ रही है रामलीला की खास परंपरा, प्रसिद्ध है राघव शक्ति मिलन
रामलीला का मंचन करते कलाकार। (फाइल फोटो)

गोरखपुर, डॉ. राकेश राय। नवरात्र से पहले ही भगवान श्रीराम की लीला दिखाने के लिए समितियों ने अपना कार्यक्रम जारी कर दिया है। कुछ स्थानों में रामलीला का मंचन भी शुरू हो गया है। इसके चलते शहर से लेकर गांव तक माहौल उत्सवी दिखने लगा है। रामलीला के जरिये माहौल को उत्सवी का बनाने का सिलसिला कब शुरू हुआ, इसपर चर्चा का यह उपयुक्त समय है। कोई ऐतिहासिक साक्ष्य तो नहीं लेकिन मान्यता है कि भगवान राम के वनवास के 14 वर्ष अयोध्यावासियों ने उनकी बाल लीलाओं को खेलकर बिताया था। बाद में इसी बाल लीला ने रामलीला का रूप ले लिया। कुछ लोग रामलीला की अभिनय परंपरा की शुरुआत का श्रेय गोस्वामी तुलसीदास को देते हैं। ऐसा मानने वाले लोग इसकी शुरुआत का स्थान अयोध्या और काशी बताते हैं। खैर, शुरुआत चाहे जहां से और जैसे भी हुई, साल-दर साल बदलाव के दौर से गुजरकर आज यह समृद्ध हो गई है। गोरखपुर सहित समूचा पूर्वांचल भी रामलीला के मंचन में पीछे नहीं है। समय के साथ कदम ताल करते हुए यहां की रामलीलाओं का मंच खूब चमकता है।

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बर्डघाट रामलीला समिति को जाता है रामलीला की शुरुआत का श्रेय

गोरक्ष नगरी में रामलीला की शुरुआत का काल तय करना तो मुश्किल है लेकिन संगठित रूप से इसकी 1858 से शुरुआत के लिखित साक्ष्य मिलते हैं। रामलीला को लेकर जिले की यह ऐतिहासिक समृद्धि यहां के लोगों के रामलीला प्रेम और भगवान राम के प्रति गहरी आस्था की पुष्टि है। जिले में रामलीला की औपचारिक शुरुआत करने का श्रेय बर्डघाट रामलीला समिति को जाता है क्योंकि इसी समिति को सबसे पुराने होने की मान्यता प्राप्त है। 1914 में आर्यनगर की रामलीला शुरू हुई और उसके महज चार वर्ष के बाद यानी 1918 में धर्मशाला बाजार की रामलीला की शुभारंभ भीहो गया। विष्णु मंदिर असुरन चौक की ओर से 1972 से रामलीला का मंचन किया जा रहा है। स्थापना से लेकर अबतक इन समितियों की ओर से प्रतिवर्ष पूरे उत्साह के साथ रामलीला का मंचन किया जाता है। पूरे जिले की बात करें तो इस वर्ष शहर व गांव मिलाकर अलग-अलग 65 स्थानों पर रामलीला का मंच सज रहा है। कुछ स्थानों पर मंचन भी शुरू हो गया है।

राघव-शक्ति मिलन कार्यक्रम में बर्डघाट रामलीला की है भागीदारी

बर्डघाट की रामलीला समिति की ओर से रामलीला की शुरुआत नवरात्र के दो या तीन दिन पहले होती है। आमतौर पर इसे अयोध्या के कलाकारों द्वारा मंचित किया जाता है। इस बार भी अयोध्या की टीम आमंत्रित है। यहां प्रतिदिन रामलीला देखने के लिए हजार से ज्यादा लोगों की भीड़ लगती है। राम बारात व वन यात्रा का जुलूस निकाला जाता है, जिसमें बड़ी संख्या में लोग शामिल होते हैं। दशहरा के दिन आयोजित होने वाले राघव-शक्ति मिलन के विशिष्ट कार्यक्रम में इसी रामलीला की भागीदारी होती है। बसंतपुर चौराहे पर बर्डघाट रामलीला के भगवान राम व दुर्गाबाड़ी की आदिशक्ति का मिलन होता है। इस आयोजन के बाद ही रामलीला मैदान जाकर रावण वध करते हैं। इस रामलीला की शुरुआत का श्रेय पुरुषोत्तम दास, गुलाब चंद, लखन चंद और बाबू जगन्नाथ अग्रवाल को जाता है। राघव-शक्ति मिलन परंपरा की शुरुआत 1948 में मोहन लाल यादव, रामचंद्र सैनी, मेवालाल, रघुवीर मास्टर आदि ने की।

आर्यनगर की रामलीला में दशहरे के बाद मारा जाता है रावण

आर्यनगर रामलीला बर्डघाट की रामलीला के एक दिन बाद यानी नवरात्र के एक दिन पहले पितृपक्ष की चतुर्दशी को शुरू होती है। मानसरोवर रामलीला मैदान में इसका आयोजन किया जाता है। इस रामलीला के राम बारात व वन यात्रा के जुलूस में भी हजारों लोग शामिल होते हैं। इस रामलीला की शुरुआत 1914 में बाबू गिरधर दास ने की। इस रामलीला में रावध वध दशहरे के दूसरे दिन कराया जाता है। दशहरे के दिन परंपरागत रूप से गोरक्षपीठाधीश्वर विजय जुलूस के साथ रामलीला मैदान पहुंचते हैं, भगवान श्रीराम का तिलक करते हैं। वर्तमान गोरक्षपीठाधीश्वर योगी आदित्यनाथ ने मुख्यमंत्री बनने के बाद भी इस परंपरा को बखूबी निभाया है। यहां तक कि कोरोना काल में विजय जुलूस लेकर रामलीला मैदान पहुंचे थे।

कभी घर तो कभी स्कूल में होती थी रामलीला

धर्मशाला बाजार में रामलीला की शुरुआत 1918 में अभय चंद्र और राम प्रसाद पांडेय ने की। तब रामलीला के लिए कोई निश्चित जमीन नहीं थी तो कभी किसी के घर तो कभी किसी स्कूल में रामलीला का मंचन होता था। 1946 में यहां की रामलीला समिति ने रामलीला के लिए धर्मशाला बाजार में जमीन खरीद ली। उसके बाद से यह रामलीला अपनी जमीन पर अनवरत जारी है। यहां की रामलीला की शुरुआत नवरात्र के तीसरे दिन होती है। रावण पूर्णिमा के दिन मारा जाता है।

दशहरे के पांचवें दिन शुरू होती है यहां की रामलीला

विष्णु मंदिर रामलीला समिति की ओर से रामलीला के आयोजन शुरुआत 1972 में परशुराम गुप्ता, रूपचंद्र मौर्य, सुशील कुमार श्रीवास्तव, गोरख प्रसाद व राधेश्याम श्रीवास्तव ने मिलकर की। पहले वर्ष केवल भरत-मिलाप का आयोजन किया गया। दूसरे वर्ष से पूरी रामलीला मंचित की जाने लगी। 2006 तक रामलीला के साथ कभी-कभी प्रवचन भी आयोजित होता था लेकिन उसके बाद से रामलीला के साथ प्रवचन, श्रीराम कथा व श्रीविष्णु महायज्ञ शुरू हुआ, जो प्रतिवर्ष चल रहा है। इस समिति द्वारा रामलीला की शुरुआत दशहरे के बाद पांचवें दिन वाल्मीकि जयंती से होती है। प्रतिदिन दो से तीन हजार श्रद्धालु समिति द्वारा आयोजित विविध कार्यक्रमों में भाग लेते हैं।

समितिवार इस वर्ष रामलीला आयोजन की तिथि

समिति                        शुभारंभ           रावण वध

बर्डघाट रामलीला          22 सितंबर      5 अक्टूबर

आर्यनगर रामलीला        25 सितंबर      5 अक्टूबर

धर्मशाला रामलीला        29 सितंबर      9 अक्टूबर

विष्णु मंदिर रामलीला

बर्डघाट रामलीला में जलेगा 51 फीट का रावण

रामलीला के अंतिम दिन जलाए जाने वाले रावण के पुतले को लेकर भी सभी रामलीला समितियां संजीदा रहती हैं। इस बार बर्डघाट रामलीला मैदान में 51 फीट का रावण का पुतला जलाया जाएगा। आर्यनगर रामलीला समिति की ओर से 15 फीट का पुतला तैयार कराया जा रहा है। धर्मशाला बाजार समिति ने भी 15 फीट का रावण बनवाने की योजना बनाई है।


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