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मोरारी बापू ने उदाहरण देकर समझाया-बिना भोग के योग खंडित और अधूरा है वैराग्य Gorakhpur News

मोरारी बापू ने कहा कि बिना भोग के योग अखंड नहीं हो सकता बिना विलास के वैराग्य अधूरा है। लेकिन योगी के लिए भोग-विलास साधन मात्र है साध्य नहीं।

By Satish ShuklaEdited By: Published: Wed, 09 Oct 2019 07:16 PM (IST)Updated: Thu, 10 Oct 2019 07:00 AM (IST)
मोरारी बापू ने उदाहरण देकर समझाया-बिना भोग के योग खंडित और अधूरा है वैराग्य Gorakhpur News
मोरारी बापू ने उदाहरण देकर समझाया-बिना भोग के योग खंडित और अधूरा है वैराग्य Gorakhpur News

गोरखपुर, जेएनएन। गोरखनाथ की नगरी गोरखपुर में एक बार फिर योग की अलख जगने लगी है। प्रख्यात संत मोरारी बापू की रामकथा की अमृतधारा प्रवाहित हो रही है। उन्होंने कथा का केंद्रीय विषय भी रखा है- 'मानस जोगी। मानस के साथ ही नाथ परंपरा के आंगन में खिले पुष्पों को चुन-चुनकर वह योग की महिमा श्रद्धालुओं में लुटा रहे हैं। उनका पूरा फोकस नाथ परंपरा, योग व योग की महिमा पर है। पूरा गोरखपुर योगमय व मानसमय हो गया है। उन्‍होंने कहा बिना भोग के योग खंडित और वैराग्य अधूरा है।

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ब्रह्मलीन महंत अवेद्यनाथ की स्मृति में गोरखनाथ मंदिर व श्रीराम कथा प्रेम यज्ञ समिति के तत्वावधान में चंपा देवी पार्क में आयोजित श्रीराम कथा की शुरुआत ही होती है श्रीरामचरितमानस में पार्वती के इस वाक्य से- 'हमरे जान सदाशिव जोगी। कथा शुरू हुई शिव से और खत्म हुई गोरखनाथ पर। पूरी कथा के दौरान योग की महिमा ही मोरारी बापू के मुखारबिंद से झरती रही। बीच-बीच में कीर्तन कराकर वह श्रद्धालुओं के बीच भक्ति की मंदाकिनी प्रवाहित करते रहे।

कीर्तन के दौरान पूरा माहौल नृत्यमय हो गया था। मोरारी बापू कहते हैं कि बिना भोग के योग खंडित है। हनुमानजी की सलाह पर योग को अखंड करने के लिए अयोनिज मत्स्येंद्रनाथ को त्रियाराज कामरूप में जाना पड़ा। उन्होंने वहां महारानी के साथ 12 साल भोग किया। एक संतान भी हुई जिसका नाम रखा- मीन नाथ। फिर चेला गोरखनाथ ने पहुंचकर उन्हें जगाया- जाग मछंदर गोरख आया और उन्हें अपने साथ लाए। उन्होंने गुुरु मत्स्येंद्रनाथ व गोरखनाथ की इस कथा पर विस्तार से प्रकाश डाला। उन्होंने कहा कि यह घटना इसीलिए घटी कि बिना भोग के योग अखंड नहीं हो सकता, बिना विलास के वैराग्य अधूरा है। लेकिन योगी के लिए भोग-विलास साधन मात्र है, साध्य नहीं।

योगी के नौ लक्षण

मोरारी बापू ने योगी के लक्षण भी बताया। कहा कि योगी के नौ लक्षण होते हैं। इसमें जो मूलत: भोगी नहीं है।-जो वियोगी नहीं है।-जो कुयोगी नहीं है। जो रोगी नहीं है। जो कभी ढोंगी नहीं होता। जो सोगी (शोक करने वाला) नहीं है। जो जगत के लिए अनुपयोगी नहीं है। गलत के साथ जो सहयोगी नहीं है और जो किसी का प्रतियोगी नहीं है। यही नौ लक्ष्‍ाण योगी के हैं।


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