आप भी जानें-किसे कहते हैं रक्षा बंधन और कैसे मनाया जाता है यह पर्व
रक्षा बंधन पर्व की शुरुआत वैदिक काल से है। यह हिदुओं और जैनियों का त्योहार है। इसे प्रतिवर्ष श्रावण मास की पूर्णिमा को मनाया जाता है।
गोरखपुर, जेएनएन। रक्षा बंधन हिदुओं और जैनियों का त्योहार है जो प्रतिवर्ष श्रावण मास की पूर्णिमा के दिन मनाया जाता है। श्रावण (सावन) में मनाए जाने के कारण इसे श्रावणी (सावनी) या सलूनो भी कहते हैं।
रक्षाबंधन में राखी या रक्षासूत्र का सबसे अधिक महत्व है। राखी कच्चे सूत जैसे सस्ती वस्तु से लेकर रंगीन कलावे, रेशमी धागे, तथा सोने या चाँदी जैसी मँहगी वस्तु तक की हो सकती है। रक्षाबंधन भाई बहन के रिश्ते का प्रसिद्ध त्योहार है। रक्षा का मतलब सुरक्षा और बंधन का मतलब बाध्य है। रक्षाबंधन के दिन बहने भगवान से अपने भाईयों की तरक्की के लिए भगवान से प्रार्थना करती है।
भाई-बहनों के साथ इनका भी त्योहार
राखी सामान्यत: बहनें भाई को ही बाँधती हैं परन्तु ब्राह्मणों, गुरुओं और परिवार में छोटी लड़कियों द्वारा सम्मानित संबंधियों (जैसे पुत्री द्वारा पिता को) भी बाँधी जाती है। कभी-कभी सार्वजनिक रूप से किसी नेता या प्रतिष्ठित व्यक्ति को भी राखी बाँधी जाती है। रक्षाबंधन के दिन बाजार मे कई सारे उपहार बिकते है। उपहार और नए कपड़े खरीदने के लिए बाजार में लोगों की सुबह से शाम तक भीड़ होती है। घर मे मेहमानों का आना जाना रहता है। रक्षाबंधन के दिन भाई अपने बहन को राखी के बदले कुछ उपहार देते है। रक्षाबंधन एक ऐसा त्योहार है जो भाई बहन के प्यार को और मजबूत बनाता है, इस त्योहार के दिन सभी परिवार एक हो जाते है और राखी, उपहार और मिठाई देकर अपना प्यार साझा करते है।
यहां भी राखी बांधने की परंपरा
अब तो प्रकृति संरक्षण हेतु वृक्षों को राखी बाँधने की परंपरा भी प्रारंभ हो गयी है। भारत में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के पुरुष सदस्य परस्पर भाईचारे के लिए एक दूसरे को भगवा रंग की राखी बाँधते हैं।
धार्मिक अनुष्ठानों में रक्षा सूत्र
हिंदू धर्म के सभी धार्मिक अनुष्ठानों में रक्षासूत्र बाँधते समय कर्मकांडी पंडित या आचार्य संस्कृत में एक श्लोक का उच्चारण करते हैं, जिसमें रक्षाबंधन का संबंध राजा बलि से स्पष्ट रूप से दृष्टिगोचर होता है। भविष्यपुराण के अनुसार इन्द्राणी द्वारा निर्मित रक्षासूत्र को देवगुरु बृहस्पति ने इंद्र के हाथों बाधते हुए-येन बद्धो बलिराजा दानवेन्द्रो महाबल: तेन त्वामपि बध्नामि रक्षे मा चल मा चल-का स्वस्तिवाचन किया। यह श्लोक रक्षाबंधन का अभीष्ट मन्त्र है।
इस श्लोक का हिदी भावार्थ यह है कि जिस रक्षासूत्र से महान शक्तिशाली दानवेंद्र राजा बलि को बाँधा गया था, उसी सूत्र से मैं तुझे बाँधता हूँ। हे रक्षे (राखी)! तुम अडिग रहना (तू अपने संकल्प से कभी भी विचलित न हो।)
ऐसे मनाते हैं रक्षा बंधन
प्रात: स्नानादि से निवृत्त होकर लड़कियाँ और महिलाएँ पूजा की थाली सजाती हैं। थाली में राखी के साथ रोली या हल्दी, चावल, दीपक, मिठाई और कुछ पैसे भी होते हैं। भाई तैयार होकर टीका लगवाने के लिए पूजा या किसी उपयुक्त स्थान पर बैठते हैं। पहले अभीष्ट देवता की पूजा की जाती है। इसके बाद रोली या हल्दी से भाई का टीका करके चावल को टीके पर लगाया जाता है और सिर पर छिड़का जाता है। उसकी आरती उतारी जाती है। दाहिनी कलाई पर राखी बाँधी जाती है और पैसों से न्यौछावर करके उन्हें गरीबों में बाँट दिया जाता है। भारत के अनेक प्रांतों में भाई के कान के ऊपर भोजली या भुजरियाँ लगाने की प्रथा भी है। भाई बहन को उपहार या धन देता है। इस प्रकार रक्षाबंधन के अनुष्ठान को पूरा करने के बाद ही भोजन किया जाता है। प्रत्येक पर्व की तरह उपहारों और खाने-पीने के विशेष पकवानों का महत्व रक्षाबंधन में भी होता है। आमतौर पर दोपहर का भोजन महत्वपूर्ण होता है और रक्षाबंधन का अनुष्ठान पूरा होने तक बहनों द्वारा व्रत रखने की भी परंपरा है। पुरोहित तथा आचार्य सुबह-सुबह यजमानों के घर पहुँचकर उन्हें राखी बाँधते हैं और बदले में धन, वस्त्र और भोजन आदि प्राप्त करते हैं। यह पर्व भारतीय समाज में इतनी व्यापकता और गहराई से समाया हुआ है कि इसका सामाजिक महत्व तो है ही, धर्म, पुराण, इतिहास, साहित्य और फिल्में भी इससे अछूते नहीं हैं।
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