बारिश ने धुल दिया आतिशबाजी का दाग, प्रदूषण पर कर लिया नियंत्रण Gorakhpur News
दीवाली की रात में इतनी आतिशबाजी हुई कि यह एक्यूआइ का स्तर 15 नवंबर को बढ़कर 192 माइक्रोग्राम घन प्रति तक पहुंच गया। सुखद बात यह रही कि अगले ही दिन यानी 16 को हुई बारिश ने प्रदूषण के चढ़ते के आंकड़े पर लगाम लगा दिया।
गोरखपुर, जेएनएन। एक बार फिर दीवाली में आतिशबाजी को लेकर लोगों का उत्साह शहर के पर्यावरण के लिए भारी पड़ा। इस उत्साह ने शहर की आबोहवा को इस कदर दूषित कर दिया कि महज 24 घंटे में एक्यूआइ (एयर क्वालिटी इंडेक्स) का स्तर 40 माइक्रोग्राम प्रति घनमीटर यानी बीते दिन के मुकाबले 27 फीसद बढ़ गया। वह तो भला हो बारिश का, जिसने आबोहवा पर प्रदूषण के रूप से लगे आतिशबाजी के दाग को अगले 24 घंटे में ही धो दिया।
सांस के रोगियों को बढ़ाने वाला था प्रदूषण
आंकड़ों की बात करें तो दीवाली से ठीक पहले यानी 13 नवंबर को शहर का एक्यूआइ 152 मिलीग्राम प्रति घनमीटर था। यहां तक कि दीवाली की शाम तक भी यह आंकड़ा 153 रिकार्ड किया गया। लेकिन दीवाली की रात में इतनी आतिशबाजी हुई कि यह एक्यूआइ का स्तर 15 नवंबर को बढ़कर 192 माइक्रोग्राम घन प्रति तक पहुंच गया। एक्यूआइ का यह आंकड़ा सांस के रोगियों की मुसीबत बढ़ाने वाला था। सुखद बात यह रही कि अगले ही दिन यानी 16 को हुई बारिश ने प्रदूषण के चढ़ते के आंकड़े पर लगाम लगा दिया और एक्यूआइ एक बार फिर 154 पर आकर सिमट गया।
ऐसे में पर्यावरणविदों के मुताबिक यह बारिश शहरवासियों के लिए राहत की बारिश साबित हुई। मौसम विशेषज्ञ व पर्यावरणविद् कैलाश पांडेय ने बताया कि सेटेलाइट से प्राप्त दीवाली के दिन के एक्यूआइ के आंकड़े चेतावनी देने वाले हैं। इस तरह जोश में होश खोकर व्यक्ति अपने ही नुकसान की नींव तैयार कर ले रहा है। उन्होंने बताया कि एक्यूआइ का आकलन वातावरण में पीएम-10 व पीएम-2.5 (घूल के अति छोटे कण) के अलावा सल्फर डाई आक्साइड, नाइट्रोजन आक्साइड और कार्बन मोनो आक्साइड जैसी हानिकारक गैसों की मौजूदगी के आधार किया जाता है। इससे साफ है कि दीवाली के दिन हुई आतिशबाजी से वातावरण में हानिकारक गैसों की मात्रा में अचानक काफी बढ़ोत्तरी हो गई।
दीवाली में चढ़कर ऐसे गिरा शहर का एक्यूआइ
तिथि एक्यूआइ
12 नवंबर 147
13 नवंबर 152
14 नवंबर 153
15 नवंबर 192
16 नवंबर 154
हानिकारक गैसें बिगाड़ती है पर्यावरण का संतुलन
मदन मोहन मालवीय प्रौद्योगिकी विभाग के आचार्य और पर्यावरणविद् प्रो. गोङ्क्षवद पांडेय के अनुसार आतिशबाजी के दौरान पटाखों से निकलने वाली गैसें वायुमंडल में पर्यावरण का संतुलन बिगाड़ देती हैं। इन गैसों से आक्सीजन की मात्रा कम हो जाती है, जिससे सांस लेने में दिक्कत होती है। यह गैसें शरीर के अंदर पहुंचकर फेफड़ों को प्रभावित करती हैं, जिससे टीबी जैसे रोगों को पनपने का मौका मिल जाता है।