कबाड़ में हर साल रेलवे को 50 लाख का नुकसान Gorakhpur News
लोहे की पटरियों पर चलते-चलते ट्रेनों के पहिये न केवल घिस जाते हैं बल्कि आकार भी बिगड़ जाता है। ठीक करने के दौरान बड़ी मात्रा में तार और टुकड़ों के रूप में लोहे के कबाड़़ निकलते हैैैं
गोरखपुर, जेएनएन। पहियों की मरम्मत या यूं कहें उसकी धार-कोर बनाने में निकलने वाले स्क्रैप (कबाड़) को नजरअंदाज करना रेलवे को महंगा पड़ रहा है। तकनीकी बोलचाल में 'टर्निंग बोरिंग कही जाने वाली इस प्रक्रिया में जो कबाड़ निकल रहा है, उसके संरक्षण, निस्तारण और ढुलाई में लापरवाही के चलते रेलवे को हर साल 50 से 60 लाख रुपये की चपत लग रही है।
दो साल बाद भी कोई ठोस पहल नहीं
लेखा विभाग ने अपनी रिपोर्ट में अफसरों का ध्यान इस ओर दिलाया तो इसके लिए तीन सदस्यीय टीम गठित कर दी गई, लेकिन दो साल बाद भी इसे बचाने की दिशा में कोई ठोस पहल नहीं हो सकी।
ऐसे निकलते हैं कबाड़
लोहे की पटरियों पर चलते-चलते ट्रेनों के पहिये न केवल घिस जाते हैं बल्कि आकार भी बिगड़ जाता है। इसको ठीक करने के दौरान बड़ी मात्रा में तार और छोटे-छोटे टुकड़ों के रूप में लोहे के कबाड़ निकलते हैं। इस स्क्रैप को कौवाबाग क्रासिंग के समीप टर्निंग बोङ्क्षरग शॉप व स्टोर डिपो के पास खुले में ही छोड़ दिया जाता है। जंग लगने के चलते यह स्क्रैप जल्दी खराब हो जाते हैं। क्षरण होने के चलते रेलवे प्रशासन को इसे 30 से 40 फीसद कम कीमत पर बेचना पड़ता है।
दो साल पहले दिलाया था ध्यान
लेखा विभाग ने 25 मई 2018 को मुख्य कारखाना प्रबंधक और उप मुख्य सामग्री प्रबंधक को पत्र लिखकर इस ओर ध्यान दिलाया था। 26 जून 2018 को रिमाइंडर मिलने के बाद दिसंबर में रेलवे प्रशासन ने इसके लिए तीन सदस्यीय टीम गठित कर दी। टीम ने स्क्रैप के संरक्षण व बिक्री को लेकर कई सुझाव दिए, लेकिन आज तक उस पर अमल नहीं हो सका।
ढुलाई के नाम पर भी लग रहा चूना
इस मुद्दे पर एनई रेलवे मजदूर यूनियन लंबे समय से आंदोलित है। महामंत्री केएल गुप्त ने बताया कि महाप्रबंधक के स्थाई वार्ता तंत्र की बैठक में भी इसे उठाया गया है। यांत्रिक कारखाना से डिपो तक स्क्रैप की ढुलाई से दुर्घटना की आशंका बनी रहती है। ट्राली से ढुलाई के नाम पर भी रेलवे को चूना लग रहा है। बोर्ड का आदेश है कि स्क्रैप को खुले में न रखा जाए और टर्निंग बोङ्क्षरग के पास ही इसे संरक्षित किया जाए।
दिशा निर्देश के अनुसार होगा कार्य
इस बारे में पूर्वोत्तर रेलवे के सीपीआरओ पंकज कुमार सिंह का कहना है कि इस संबंध में रेलवे बोर्ड के जो दिशा-निर्देश हैं, उसे सुनिश्चित कराया जाएगा।