सिस्टम पर सवाल : गोरखपुर में बिना रूट और परमिट के चल रहे चार हजार ई रिक्शा
पिछले माह संभागीय परिवहन प्राधिकरण (आरटीए) की बैठक में महानगर को जाम और प्रदूषण से मुक्त करने के लिए डग्गामार बसों को शहर में प्रवेश से रोक तथा ई रिक्शा के लिए रूट निर्धारण पर सहमति बनी। लेकिन आज तक समुचित कार्यवाही नहीं हो पाई।
गोरखपुर, जागरण संवाददाता। महानगर में जाम से निपटने की योजना परवान चढ़ने से पहले ही धराशायी हो गई है। न ई रिक्शा के लिए रूट और परमिट निर्धारित हो पाया और न डग्गामार बसों पर पूरी तरह अंकुश लग सका। लगभग चार हजार ई रिक्शा बिना रूट और परमिट के महानगर की सड़कों पर धड़ल्ले से दौड़ रहे हैं। वहीं, विश्वविद्यालय चौराहा-रेल म्यूजियम से हटने के बाद देवरिया, कुशीनगर और बिहार जाने वाली डग्गामार बसें सिविल लाइंस की सड़कों पर खड़ी होने लगी हैं। डग्गामारी जारी है।
डग्गामार बसों के शहर में प्रवेश पर रोक लगाने का हुआ था फैसला
पिछले माह संभागीय परिवहन प्राधिकरण (आरटीए) की बैठक में महानगर को जाम और प्रदूषण से मुक्त करने के लिए डग्गामार बसों को शहर में प्रवेश से रोक तथा ई रिक्शा के लिए रूट निर्धारण पर सहमति बनी। लेकिन आज तक समुचित कार्यवाही नहीं हो पाई। परिवहन विभाग ने ई रिक्शा के लिए 19 रूट तो निर्धारित कर दिया लेकिन रूटों पर चलने के लिए परमिट जारी नहीं कर सका। ई रिक्शा चालकों के विरोध के बाद विभाग को बैकफुट पर आना पड़ा है। जानकारों का कहना है कि बिना विचार-विमर्श के परिवहन विभाग ने रूट निर्धारित कर दिया है। अब मामला फिर आरटीओ के पाले में चला गया है।
सिविल लाइंस से चलने लगी हैं डग्गामार बसें
यही दशा डग्गामार बसों को लेकर है। परिवहन विभाग ने लगातार दबाव के बाद किसी तरह डग्गामार बसों को विश्वविद्यालय चौराहा - रेल म्यूजियम मार्ग से तो हटा दिया है लेकिन यह बसें अब सिविल लाइंस की प्रमुख सड़कों (आरटीओ का पुराना कार्यालय) पर खड़ी होने लगी है। अब यह सड़कें जाम का केंद्र बनती जा रही हैं। यह तब है जब संबंधित अधिकारी इन मार्गों से लगातार आवागमन करते रहते हैं।
आरटीओ से जारी नहीं होता परमिट, बन रहे जाम के कारण
ई रिक्शा का परमिट परिवहन विभाग (आरटीओ) से जारी नहीं होता। निगरानी और कार्रवाई नहीं होने से चालक ई रिक्शा लेकर मनमाने ढंग से चलने लगे हैं। इनके चलने से प्रदूषण पर तो अंकुश लगा है लेकिन ई रिक्शा की संख्या में तेजी के साथ बढोत्तरी के चलते जाम के कारण बनते जा रहे हैं।