पुरी के शंकराचार्य स्वामी निश्चलानंद सरस्वती बोले साढ़े तीन साल में हिंदू राष्ट्र बन जाएगा भारत
गोवर्धन पीठ पुरी के शंकराचार्य स्वामी निश्चलानंद सरस्वती ने कहा कि विभाजन के बाद मानवाधिकार की सीमा में भारत को हिंदू राष्ट्र के रूप में घोषित किया जाना चाहिए था। इसे हिंदू राष्ट्र घोषित न करना भारत का प्रमाद है शासन तंत्र व राजनीतिक दलों की दिशाहीनता है।
गोरखपुर, जागरण संवाददाता। गोवर्धन पीठ, पुरी के शंकराचार्य स्वामी निश्चलानंद सरस्वती ने कहा कि विभाजन के बाद मानवाधिकार की सीमा में भारत को हिंदू राष्ट्र के रूप में घोषित किया जाना चाहिए था। इसे हिंदू राष्ट्र घोषित न करना भारत का प्रमाद है, शासन तंत्र व राजनीतिक दलों की दिशाहीनता है। मैं बहुत सोच-समझकर कह रहा हूं कि भारत साढ़े तीन साल में हिंदू राष्ट्र बन जाएगा। इसकी व्यूह रचना भी हमारे पास है। इसमें बस आप सब का सहयोग चाहिए।
कश्मीर से कन्याकुमारी तक हिंदुस्तान है
दो दिवसीय प्रवास पर गोरखपुर पहुंचे शंकराचार्य ने 29 अक्टूबर को पत्रकारों से बातचीत करते हुए कहा कि हिंद महासागर व हिंदुकूट, दो प्राचीन शब्द हैं। हिंदु में दो अक्षर हैं- हि का अर्थ हिमालय व इंदु का अर्थ है सरोवर। इसका अर्थ हुआ कश्मीर से कन्या कुमारी तक हिंदुस्थान है।
राजनीति की परिभाषा से परिचित नहीं हैं राजनेता
राजनेताओं को राजनीति की सही परिभाषा जाननी चाहिए। राजनेताओं की कमी नहीं है लेकिन वे राजनीति की परिभाषा से भी परिचित नहीं हैं। सुसंस्कृत, सुव्यवस्थित, सुरक्षित, समृद्ध व्यक्ति व समाज की रचना, राजनीति की परिभाषा है। राजनीति उन्माद व सत्ता लोलुपता का नाम नहीं है।
जो नीतियों में सर्वोत्कृष्ट है वही राजनीति है
नीतियों में जो सर्वोत्कृष्ट है, वह राजनीति है। एक सवाल के जवाब में उन्होंने कहा कि दायित्व से विमुख होने और पद का उपभोक्ता होने पर व्यक्ति का पतन सुनिश्चित है, इससे प्रत्येक व्यक्ति को बचना चाहिए। किसी भी जाति-धर्म के लोग मंदिरों में देव मूर्तियाें का दर्शन मर्यादा के साथ कर सकते हैं। सभी के लिए कुछ विधि निषेध होते हैं, सबसे ज्यादा निषेध तो शंकराचार्यों के लिए हैं। हम उनका पालन करते हैं।
आम आदमी को करना चाहिए विधि निषेध का पालन
आम आदमी को भी विधि निषेधों का पालन करना चाहिए। मर्यादा के साथ यदि देव मूर्तियाें का दर्शन न किया जाए तो मूर्तियों का तेज नष्ट हो जाता है। प्रत्येक व्यक्ति को प्रत्येक कार्य लोक कल्याण की भावना से करना चाहिए। लोक कल्याण में ही आत्म कल्याण छिपा होता है।