डेंगू की रोकथाम के लिए उठाए जाएं एहतियाती कदम Gorakhpur News
प्लेटलेट का कम होना का मतलब यह नहीं होता कि संबंधित व्यक्ति को डेंगू ही हुआ है। समय से अस्पताल आने पर डेंगू का सस्ता इलाज संभव है। समय से चिकित्सालय पहुंचने पर डेंगू जानलेवा रूप नहीं धारण करता।
गोरखपुर, जेएनएन। संचारी रोगों का व्यवहार परिवर्तन से गहरा संबंध है। डेंगू भी इसी प्रकार की बीमारी है। अगर समुदाय अपना व्यवहार बदले तो इस बीमारी पर अंकुश लगाया जा सकता है। डेंगू की रोकथाम के लिए एहतियाती कदम उठाने होंगे। साफ पानी का जमाव रोकना होगा। जल जमाव वाले क्षेत्रों में जाकर म'छरों के लार्वा नष्ट करने होंगे।
नवंबर तक बना रहता है खतरा
यह बातें मुख्य चिकित्साधिकारी डॉ. श्रीकांत तिवारी ने कही। वह प्रेरणाश्री सभागार में डेंगू की रोकथाम पर आयोजित कार्यशाला को संबोधित कर रहे थे। उन्होंने कहा कि नवंबर तक संचारी रोगों जैसे डेंगू, चिकनगुनिया, मलेरिया आदि का शहरी क्षेत्र में खतरा बना रहता है। इस समय बारिश भी शुरू हो गई है। इस लिहाज से समुदाय को इन बीमारियों के प्रति जागरूक करना बेहद आवश्यक है। डेंगू की रोकथाम के लिए कुल 441 चिकित्सक, 2122 आशा व एएनएम, 240 आंगनबाड़ी कार्यकर्ता और 389 फार्मासिस्ट प्रशिक्षित किए गए हैं। शहरी क्षेत्र के पचास फीसद घरों में डेंगू के वाहक म'छरों के लार्वा वाले स्थान पाए जा चुके हैं, जिन्हें नष्ट कराया गया है।इस अवसर पर अपर मुख्य चिकित्साधिकारी डॉ. नंद कुमार, डॉ. एके चौधरी, राजेश ङ्क्षसह, करिश्मा श्रीवास्तव सहित शहरी क्षेत्र के प्रभारी चिकित्साधिकारी मौजूद थे।
सावधानी जरूरी
प्लेटलेट का कम होना का मतलब यह नहीं होता कि संबंधित व्यक्ति को डेंगू ही हुआ है। समय से अस्पताल आने पर डेंगू का सस्ता इलाज संभव है। समय से चिकित्सालय पहुंचने पर डेंगू जानलेवा रूप नहीं धारण करता। चिकनगुनिया और डेंगू के लक्षण एक तरह के होते हैं। चिकित्सकीय जांच के बाद ही पता चल सकता है कि मरीज को कौन सा मर्ज है। चिकनगुनिया के खतरनाक अवस्था में शरीर झुक जाता है और वह कभी ठीक नहीं होता। डेंगू और चिकगुनिया एक ही प्रजाति के मच्छर के काटने से होता है और दोनों बीमारियों के मच्छर दिन में काटते हैं। मच्छरों से बचाव कर हम चिकनगुनिया और डेंगू समेत सभी मच्छरजनित रोगों पर अंकुश पा सकते हैं।