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बच्चों के पोषण में पूर्वांचल व बुंदेलखंड फिसड्डी, पश्चिमी उत्तर प्रदेश आगे

पश्चिमी उत्तर प्रदेश के जिलों में बेहतर स्थिति के पीछे वहां की जागरूकता बड़ा कारण है। पूर्वांचल में उचित खानपान एवं साफ-सफाई को लेकर जागरूक न होने के कारण स्थिति खराब है। बुंदेलखंड में पोषणयुक्त खानपान का अभाव सुपोषण के मार्ग में बाधा है।

By Navneet Prakash TripathiEdited By: Published: Sat, 29 Jan 2022 02:30 PM (IST)Updated: Sat, 29 Jan 2022 05:39 PM (IST)
बच्चों के पोषण में पूर्वांचल व बुंदेलखंड फिसड्डी, पश्चिमी उत्तर प्रदेश आगे
बच्चों के पोषण में पूर्वांचल व बुंदेलखंड फिसड्डी, पश्चिमी उत्तर प्रदेश आगे। प्रतीकात्‍मक फोटो

गोरखपुर, उमेश पाठक। बच्चों में कुपोषण के मामले शून्य करने को लेकर शासन की ओर से अभियान चलाए जा रहे हैं लेकिन जागरूकता की कमी एवं खान-पान की उचित व्यवस्था न होने के कारण स्थिति अभी भी चिंताजनक बनी हुई है। नेशनल फेमिली हेल्थ सर्वे (एनएफएचएस) पांच के आंकड़ों से बनने वाली तस्वीर दावों की हकीकत बयां करती है। छह माह तक बच्चों को दूध पिलाने के मामले में पश्चिम के जिलों की महिलाएं भले ही थोड़ा पीछे हों लेकिन पांच साल तक के बच्चों के सुपोषण के मामले में यहां के जिले पूर्वांचल व बुंदलेखंड के जिलों से काफी आगे हैं। अवध की स्थिति में भी सुधार नजर आता है।

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एनएफएचएस ने पांच साल के बच्‍चों पर हुए अध्‍ययन की जारी की रिपोर्ट

एनएफएचएस पांच में पांच साल तक के बच्चों के कुपोषण पर भी अध्ययन किया गया। इस उम्र तक के कितने प्रतिशत बच्चे कम वजन के हैं, इसको लेकर आंकड़े जारी किए गए हैं। इन आंकड़ों में गोरखपुर सहित पूर्वांचल के अन्य जिलों की स्थिति अच्छी नहीं है। यहां अभी भी 30 प्रतिशत से अधिक बच्चे कम वजन के हैं। सबसे खराब स्थिति पूर्वांचल के आकांक्षी जिलों एवं बुंदेलखंड के जिलों की है। पश्चिम के अधिकतर जिलों में 30 प्रतिशत से कम बच्चे कम वजन के हैं।

गोरखपुर के आंकड़ों में हुआ सुधार

गोरखपुर में एनएफएचएस चार के आंकड़ों के मुताबिक स्थितियों में कुछ सुधार हुआ है और कम वजन वाले बच्चों की संख्या में अपेक्षाकृत कमी आयी है। इसके विपरीत बांदा में यह संख्या बढ़ी है। महराजगंज जिले में भी मामूली बढ़ोत्तरी दर्ज की गई है। बलिया, बस्ती, देवरिया, गाजीपुर, कन्नौज, कांशीरामनगर, कुशीनगर में कम वजन के बच्चों की संख्या में बढ़ोत्तरी देखने को मिली है। कुपोषण के मामले में खराब जिला माने जाने वाले ललितपुर में सुधार देखने को मिला है। पिछले करीब पांच वर्षों में चलाए गए सुधार कार्यक्रमों के कारण यहां कम वजन वाले बच्चों की संख्या में 14 प्रतिशत की कमी आयी है। बीआरडी मेडिकल कालेज के बाल रोग विभाग के प्रोफेसर डा. भूपेंद्र शर्मा ने बताया कि हमारे विभाग के डाक्टरों की टीम ने यूनिसेफ के जरिए यहां अभियान चलाया, जिसका परिणाम नजर आ रहा है।

पोषणयुक्त भोजन से पड़ता है असर

पश्चिमी उत्तर प्रदेश के जिलों में बेहतर स्थिति के पीछे वहां की जागरूकता बड़ा कारण है। पूर्वांचल में उचित खानपान एवं साफ-सफाई को लेकर जागरूक न होने के कारण स्थिति खराब है। बुंदेलखंड में पोषणयुक्त खानपान का अभाव सुपोषण के मार्ग में बाधा है। हालांकि सरकार की ओर से किए जा रहे प्रयासों से अपेक्षाकृत स्थिति सुधर रही है। गोरखपुर के जिला कार्यक्रम अधिकारी हेमंत कुमार सिंह का कहना है कि बच्चों के सुपोषण के लिए अभियान चलाया जा रहा है। जिले में सुधार भी नजर आया है।

जिले के सभी बच्‍चों को सुपोषित करने का लक्ष्‍य

जिलाधिकारी विजय किरन आनंद ने बताया कि जिले में सभी बच्चों को सुपोषित करने का लक्ष्य रखा गया है। निरंतर इसमें सुधार आ रहा है। 10 हस्तक्षेप के माध्यम से आंगनबाड़ी कार्यकर्ता एवं अधिकारी सुपोषण को लेकर अभियान चला रहे हैं। निरंतर निगरानी से परिणाम अच्छे आ रहे हैं। आने वाले समय में जिला कुपोषण मुक्त हो जाएगा।


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