फाइब्रोसिस: आईसीयू की लंबी अवधि ने दे दिया गहरा घाव, इन लोगों को आज भी देना पड़ता है आक्सीजन
कोरोना के संक्रमण से मुक्त लोग फाइब्रोसिस का शिकार हुए ज्यादातर लोग तो ठीक हो गए लेकिन 4.5 प्रतिशत लोगों को आज भी आक्सीजन देना पड़ता है। पहले की अपेक्षा अब सुधार है लेकिन दवाएं नियमित खानी पड़ रही हैं।
गोरखपुर, जागरण टीम। कोरोना से उबरने के बाद फाइब्रोसिस (फेफड़ों में सिकुड़न) के शिकार हुए ज्यादातर लोग ठीक हो गए। अधिकतर ने दवाओं से इस बीमारी को मात दे दी है। लेकिन जो रोगी एक माह से अधिक समय तक आइसीयू में भर्ती रहे, वे पूरी तरह ठीक नहीं हो पाए। दवाओं से सुधार है। शुरुआत में प्रति घंटे जहां उन्हें चार लीटर आक्सीजन दिया जाता था, अब वह घटकर एक लीटर पर आ गया है। पहले 24 घंटे में 18 घंटे उन्हें आक्सीजन पर रखना होता था, अब सप्ताह में एक-दो दिन चार से छह घंटे रखना पड़ता है। लेकिन दवाएं उन्हें नियमित खानी पड़ रही हैं।
कोरोना ने फेफड़ों को सबसे ज्यादा नुकसान पहुंचाया है। जो लोग गंभीर रूप से बीमार पड़े, उनमें से अधिकतर को फाइब्रोसिस हो गई। संक्रमण मुक्त होने के कुछ दिन बाद जब उनकी सांस फूलने लगी तो वे अस्पताल आए। जांच में पता चला कि उनके फेफड़े सिकुड़कर छोटे हो गए हैं। पहली व दूसरी लहर में ऐसे रोगी सामने आए। 110 पीड़ित बीआरडी मेडिकल कालेज के टीबी एवं चेस्ट रोग विभाग में पहुंचे। उनमें से 50 प्रतिशत लोग एक सप्ताह की दवा में ही ठीक हो गए। 45.5 प्रतिशत लोग दो से तीन माह दवा खाने के बाद पूरी तरह ठीक हो गए। 4.5 प्रतिशत में यह बीमारी स्थायी हो गई है।
बीआरडी मेडिकल कालेज के टीबी एवं चेस्ट रोग विभाग के अध्यक्ष डा. अश्वनी मिश्रा ने बताया कि 110 रोगी फाइब्रोसिस के आए थे। अभी पांच का उपचार चल रहा है। दवा के साथ ही उन्हें सप्ताह में एक- दो दिन आक्सीजन देना पड़ता है। ये वे रोगी हैं जिन्हें आइसीयू में एक माह से अधिक समय तक रहना पड़ा था। शेष ठीक हो गए हैं। ज्यादातर तो एक सप्ताह की दवा के बाद ही ठीक हो गए।
सीना रोग विशेषज्ञ डा. वीएन अग्रवाल ने बताया कि कोरोना की वजह से जिन्हें फाइब्रोसिस हुआ था, उनमें से ज्यादातर लोग ठीक हो गए हैं। जिन लोगों को संक्रमण मुक्त होने के छह-सात माह बाद यह दिक्कत हुई और उसके बाद भी उन्होंने इसे नजरअंदाज किया, उनकी समस्या बढ़ गई है। ऐसे एक-दो रोगी रोज ओपीडी में आ रहे हैं।