मैथिली के सुरीले गीतों पर बंधा समां, झूम उठा शहर
मैथिली ने कार्यक्रम की शुरुआत से ही माहौल को अपने आगोश में ले लिया। बतावा पहुना फिर कहिया ले अइबा गीत पर जब उन्होंने सुर छेड़ा तो लोग मुग्ध हो गए। पहले तालियां बजाईं और फिर थिरकने लगे।
गोरखपुर, जेएनएन। ताल का किनारा हो और सुर-संगीत की बयार हो, फिर तो महफिल का जमना तय है। मशहूर गायिका मैथिली ठाकुर को गोरखपुर महोत्सव के मुख्यमंच से यह अवसर मिला और उन्होंने समां बांध दिया। अपने सुरीले लोकगीतों से शहरवासियों को झूमने के लिए मजबूर कर दिया। सूफी गीत और भजनों की प्रस्तुति से उन्होंने माहौल में रंग लाने की रही-सही कसर भी पूरी कर दी। महोत्सव के इस भोजपुरी नाइट को देखने के लिए बड़ी संख्या में सुर-संगीत कद्रदान उमड़े और लोकगीतों पर जमकर झूमे।
पहले तालियां बजी फिर थिरकने लगे लोग
मैथिली ने कार्यक्रम की शुरुआत से ही माहौल को अपने आगोश में ले लिया। 'बतावा पहुना फिर कहिया ले अइबा गीत पर जब उन्होंने सुर छेड़ा तो लोग मुग्ध हो गए। पहले तालियां बजाईं और फिर थिरकने लगे। 'रामजी से पूछे जनकपुर क नारी सुनाकर सिलसिले को मैथिली ने बखूबी आगे बढ़ाया। उसके बाद जब वह 'लेले अइहा हो पिया सेनुरा बंगाल के गीत लेकर आईं तो मौजूद सभी लोग जोर-जोर से ताली बजाकर उनका साथ देने लगे। सूफी गीत 'छाप तिलक सब छिनी मोसे नैना मिलाय के से उन्होंने माहौल को कुछ देर के लिए शास्त्रीय रूप देने की सफल कोशिश की। मैथिली ने जब 'दमादम मस्त कलंदर पर सुर छेड़ा तो महोत्सव परिसर में मौजूद सभी लोग मुख्य मंच की ओर खिंचे चले आए।
वो आखों से एक पल न ओझल हुए
'अरे जौन सुखवा ससुरारी में ऊ अउरो कहीं ना, 'मेरे रस्के कमर, तूने पहली नजर और 'आजा सजना तैनू अखियां उडीक दियां जैसे गीतों से मैथिली कार्यक्रम के समापन की ओर बढ़ीं। 'वो आखों से एक पल न ओझल हुए लापता हो गए देखते-देखते सुनाकर अपनी वाणी को विराम दिया और शहरवासियों के दिल में अपनी प्रतिभा की अमिट छाप छोड़ गईं। एक घंटे का कार्यक्रम कब बीत गया श्रोताओं को पता ही नहीं चला।