सीआइएफ के आधार पर स्वास्थ्य विभाग का दावा उथले हैंडपंप, सुअरबाड़े व जानवर फैला रहे इंसेफ्लाइटिस
स्वास्थ्य विभाग प्रत्येक इंसेफ्लाइटिस मरीज का केस इंवेस्टीगेशन फार्म (सीआइएफ) भरवाता है । इस फार्म के विश्लेषण में यह बात सामने आई है कि इंसेफ्लाइटिस के सबसे बड़े कारक उथले हैंडपंप सुअरबाड़े तथा चूहे और छछूंदर जैसे जानवर हैं ।
गोरखपुर, जागरण संवाददाता। स्वास्थ्य विभाग प्रत्येक इंसेफ्लाइटिस मरीज का केस इंवेस्टीगेशन फार्म (सीआइएफ) भरवाता है । इस फार्म के विश्लेषण में यह बात सामने आई है कि इंसेफ्लाइटिस के सबसे बड़े कारक उथले हैंडपंप, सुअरबाड़े तथा चूहे और छछूंदर जैसे जानवर हैं । यह पाया गया है कि 84 प्रतिशत दिमागी बुखार यानी इंसेफ्लाइटिस के मरीज उथले हैंडपंप और जलस्रोतों का इस्तेमाल कर रहे थे। स्वास्थ्य विभाग ने चिकित्सकों और स्टाफ नर्स को इस बारे में भी प्रशिक्षित किया है।
दूषित पानी के सेवन से बढता है दिमागी बुखार
मुख्य चिकित्सा अधिकारी डा. सुधाकर पांडेय का कहना है कि चूहा, मच्छर, छछूंदर के साथ ही दूषित पानी का सेवन दिमागी बुखार का सबसे बड़ा कारण है । जो भी मरीज आते हैं उनका सीआइएफ भरवाया जाता है । उसके आधार पर राज्य स्तर पर जो निष्कर्ष सामने आए हैं उनके मुताबिक दिमागी बुखार के 55 प्रतिशत मरीज कृषि कार्यों में संलग्न मजदूरों के परिवारों से आते हैं ।
गरीबी रेखा के नीचे जीवन यापन करने वाले सर्वाधिक पीडित
63 प्रतिशत मरीज ऐसे मिले हैं जो गरीबी रेखा के नीचे जीवन यापन करने वाले परिवारों से जुड़े हैं । 31 प्रतिशत के पिता और 64 प्रतिशत की माताओं को प्राथमिक शिक्षा मिली हुई है । कुल 84 प्रतिशत मरीजों के घरों के 100 मीटर के दायरे में जानवर और 10 प्रतिशत मरीजों के आसपास सुअरबाड़े पाए गए। 50 प्रतिशत मरीज पक्के मकानों में, 32 प्रतिशत आधे कच्चे और 17 प्रतिशत मरीज कच्चे मकानों में पाए गए।
प्रभावित लोगों के पास हैंडवास का साधन नहीं
सीएमओ का कहना है कि सीआइएफ के मुताबिक मरीजों के परिवारों में हैंडवाश का साधन भी अच्छा नहीं पाया गया है । 53 प्रतिशत मरीजों के परिवार में हाथ धोने के लिए मिट्टी और 13 प्रतिशत मरीजों के परिवार में राख का इस्तेमाल किया जाता है।
यह है दिमागी बुखार का लक्षण
-अचानक तेज बुखार आना
-झटके आना
-बेहोश हो जाना
-उल्टी होना
ऐसे करें रोकथाम
-घर के आसपास के वातावरण को चूहे, मच्छर और छछूंदर से मुक्त करें।
-इंडिया मार्का टू हैंडपंप का पानी पीएं।
-साबुन-पानी से ठीक से हाथ धुलें।
-कुपोषित ब'चों को चिकित्सक को दिखाएं।
-सुअरबाड़े दूर हटवाएं।
-खुले में शौच न करें, रोजाना स्नान करें और विद्यार्थियों की साफ-सफाई का शिक्षक ध्यान रखें।
-नियमित टीकाकरण सत्र में दो साल तक के ब'चों को जापानी इंसेफ्लाइटिस का टीका लगवाएं।
-आसपास जलजमाव न होने दें।
-लक्षण दिखते ही आशा कार्यकर्ता की मदद लेकर अस्पताल जाएं ।