समय के साथ गुम हो गया पूर्वाचल राज्य का सपना, अब राजनीति भी नहीं होती
पूर्वाचल की राज्य की मांग काफी पुराना है। राजनीतिक दलों ने वोट के लिए पूर्वाचलवायिों को ठगा। अब लोगों ने सपना देखना भी छोड़ दिया।
By Edited By: Published: Tue, 23 Apr 2019 09:23 AM (IST)Updated: Wed, 24 Apr 2019 09:46 AM (IST)
गोरखपुर, जेएनएन। पूर्वाचल को अलग राज्य बनाने की मांग को लेकर कई बार रोटियां सेंकी गई। सपने दिखाए गए, लेकिन नतीजा नहीं निकला। खेती किसानी, शिक्षा, संस्कृति, खनिज संपदा से भरपूर और कला-संस्कृति के वैभवशाली इतिहास वाले पूर्वाचल को विकास की जो गति मिलनी चाहिए, वह नहीं मिल सकी। ¨हदू, बौद्ध व जैन धर्म की उत्पत्ति का इतिहास भी पूर्वाचल से जुड़ा है। यहां की गरीबी व पिछड़ेपन के लिए किसी एक को जिम्मेदार नहीं माना जा सकता है।
पूर्वाचल राज्य का मुद्दा महत्वपूर्ण है लेकिन चुनावों में कभी बड़ा मुद्दा नहीं बन सकी। पूर्वाचल राज्य बनाने की माग काफी पुरानी पूर्वाचल राज्य बनाने की माग काफी पुरानी है। 1953 में गाजीपुर के सासद विश्वनाथ गहमरी ने तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू के समक्ष इस मामले को उठाया। इसके बाद 90 के दशक में फिर बात शुरू हुई। चर्चाओं का दौर शुरू हुआ।
चर्चा ने संस्थागत रूप तब ले लिया जब इस राज्य के समर्थक उस दौर के कुछ नामचीन जनप्रतिनिधियों और नेताओं ने तीन नवंबर 1996 को पूर्वाचल बनाओ मंच का गठन किया। इसे लेकर वाराणसी के नगर निगम के प्रेक्षागृह में हुए सम्मेलन में पूर्व राज्यपाल मधुकर दिघे, स्वतंत्रता सेनानी व पूर्व सांसद प्रभुनारायण सिंह, श्यामधर मिश्र, रामधारी शास्त्री, प्रो.विश्वास, रामनरेश कुशवाहा, जनार्दन ओझा, डा.सुधाकर पांडेय जैसे जनप्रतिनिधियों ने हिस्सा लिया।
1998 के बाद पूर्व केंद्रीय मंत्री कल्पनाथ राय, पूर्व सांसद हरिकेवल प्रसाद व शतरुद्र प्रकाश जैसे नेता भी इस मंच से जुड़ गए। उन दिनों पूर्व प्रधानमंत्री विश्वनाथ प्रताप सिंह व एचडी देवगौड़ा भी इसके समर्थकों में शामिल हो गए। इसी बीच लखनऊ में हुई बैठक में पूर्वाचल बनाओ मंच की जगह पूर्वाचल राज्य बनाओ मंच पर सहमति बनी। 1998 में ही प्रभुनारायण सिंह अध्यक्ष, कल्पनाथ राय कार्यकारी अध्यक्ष और डा.सुधाकर पांडेय को संगठन महासचिव बनाया गया।
राजनीतिक स्वरूप 2004 में मिला राज्य निर्माण को लेकर जब संस्थागत युक्ति काम न आती दिखी तो इन जनप्रतिनिधियों ने संस्था को राजनीतिक स्वरूप दे दिया और 2004 में पूर्वाचल राज्य बनाओ दल के नाम से एक राजनीतिक दल भारत निर्वाचन आयोग में पंजीकृत कराया गया। रामधारी शास्त्री 2004 से 2010 तक दल के अध्यक्ष रहे। इसके बाद दल की कमान डा.सुधाकर पांडेय संभाल रहे हैं।
पूर्वाचल राज्य के लिए प्रस्तावित 27 जिले पूर्वाचल राज्य बनता है तो यह एक समृद्ध राज्य होगा। इसके हिस्से में बहराइच, श्रावस्ती, बलरामपुर, गोंडा, फैजाबाद, बस्ती, सिद्धार्थनगर, संतकबीरनगर, अंबेडकरनगर, सुल्तानपुर, प्रतापगढ़, गोरखपुर, महराजगंज, कुशीनगर, देवरिया, मऊ, गाजीपुर, बलिया, आजमगढ़, जौनपुर, संत रविदासनगर (भदोही), कौशांबी, इलाहाबाद (अब प्रयागराज), वाराणसी, चंदौली, मिर्जापुर, सोनभद्र समेत 27 जिले प्रस्तावित हैं। संपदाओं से भरपूर पूर्वाचल सोनभद्र की पहाड़ियों में चूना, पत्थर, कोयला मिलने के साथ ही देश की सबसे बड़ी सीमेंट फैक्ट्रियां, बिजली घर (थर्मल व हाइड्रो), एल्युमिनियम व रासायनिक इकाईयां स्थित हैं। इसके अलावा कई सहायक इकाईयां व असंगठित उत्पादन केंद्र (विशेष रूप से स्टोन क्रशर) भी स्थापित हुए हैं जिससे यह क्षेत्र औद्योगिक विकास में महत्वपूर्ण भूमिका अदा कर रहा है।
भदोही का कालीन कारोबार, बनारस की विश्व प्रसिद्ध साड़ियां, मऊ व आजमगढ़ में बुनकरों की कारीगरी, जौनपुर का इत्र, मिर्जापुर का पीतल, गोरखपुर का टेराकोटा आदि इस इलाके को औद्योगिक रूप से संपन्न बनाते हैं। छोटे व क्षेत्रीय दल कर रहे लगातार मांग अलग पूर्वाचल राज्य बनाने की मांग छोटे दल लगातार कर रहे हैं। आम आदमी पार्टी ने मुद्दा उठाते हुए आंदोलन छेड़ने का एलान किया था। सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी के अध्यक्ष व प्रदेश सरकार में कैबिनेट मंत्री ओमप्रकाश राजभर सूबे को चार राज्यों में बांटने की मांग का समर्थन करते हैं। राष्ट्रीय लोकदल पार्टी भी पश्चिमी उत्तर प्रदेश के कुछ जिलों को मिलाकर अलग हरित प्रदेश की मांग कर रही है। बसपा भी छोटे राज्यों की पक्षधर रही है। कई अन्य छोटे दल व संगठन भी पूर्वाचल को अलग करने के लिए लगातार मांग व प्रदर्शन कर रहे हैं।
मायावती ने चार राज्यों का भेजा था प्रस्ताव नवंबर 2011 में तत्कालीन मायावती सरकार ने राज्य विधानसभा में उत्तर प्रदेश को चार राज्यों पूर्वाचल, बुंदेलखंड, पश्चिम प्रदेश और अवध प्रदेश में बांटने का प्रस्ताव पारित कराकर केंद्र सरकार को भेजा था। हालाकि कुछ ही महीनों बाद प्रदेश में समाजवादी पार्टी की सरकार बनने के बाद यह मामला ठंडे बस्ते में चला गया था। वर्ष 2012 के विधानसभा चुनाव में समाजवादी पार्टी ने प्रदेश को चार हिस्सों में बांटने के विधेयक का विरोध किया। इसलिए पुनर्गठन आवश्यक देवरिया के पूर्व विधायक सुभाष चंद्र श्रीवास्तव का कहना है कि भूगोल, जनसंख्या व प्रशासन की दृष्टि से उत्तर प्रदेश का पुनर्गठन आवश्यक है। बगैर पुनर्गठन के राज्य में व्याप्त क्षेत्रीय असंतुलन दूर नहीं हो सकता।
पूर्वाचल के चतुर्दिक विकास के लिए अलग राज्य का दर्जा मिलना जरूरी है। क्योंकि उत्तराखंड जबसे अलग हुआ है वहां तेजी से विकास हो रहा है। पूरे प्रदेश में पूर्वाचल की आबादी की हिस्सेदारी लगभग 40 फीसद है। इसलिए पूर्वाचल को योजना परिव्यय में 40 फीसद हिस्सेदारी मिलनी चाहिए। तो ऐसे भी हो सकता है विकास गोविवि में ¨हदी विभाग के पूर्व अध्यक्ष प्रो. चित्तरंजन मिश्र का कहना है कि एक राज्य को स्थापित करने में जिन आधारभूत संरचनाओं की जरूरत पड़ती है, उन्हें खड़ा करने में एक बड़ी धनराशि खर्च होती है। वह धनराशि पूर्वाचल में अलग राज्य बनने के पूर्व ही खर्च कर दी जाए तो वैसे ही पूर्वाचल का विकास हो जाएगा। मायावती सरकार ने तो उत्तर प्रदेश को चार भागों में बांटने का विधान सभा में प्रस्ताव पास कर केंद्र सरकार को भेज भी दिया था, लेकिन बाद में उसका औचित्य नहीं पाया गया, इसलिए इस पर कार्यवाही आगे नहीं बढ़ी।
पूर्वाचल राज्य का मुद्दा महत्वपूर्ण है लेकिन चुनावों में कभी बड़ा मुद्दा नहीं बन सकी। पूर्वाचल राज्य बनाने की माग काफी पुरानी पूर्वाचल राज्य बनाने की माग काफी पुरानी है। 1953 में गाजीपुर के सासद विश्वनाथ गहमरी ने तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू के समक्ष इस मामले को उठाया। इसके बाद 90 के दशक में फिर बात शुरू हुई। चर्चाओं का दौर शुरू हुआ।
चर्चा ने संस्थागत रूप तब ले लिया जब इस राज्य के समर्थक उस दौर के कुछ नामचीन जनप्रतिनिधियों और नेताओं ने तीन नवंबर 1996 को पूर्वाचल बनाओ मंच का गठन किया। इसे लेकर वाराणसी के नगर निगम के प्रेक्षागृह में हुए सम्मेलन में पूर्व राज्यपाल मधुकर दिघे, स्वतंत्रता सेनानी व पूर्व सांसद प्रभुनारायण सिंह, श्यामधर मिश्र, रामधारी शास्त्री, प्रो.विश्वास, रामनरेश कुशवाहा, जनार्दन ओझा, डा.सुधाकर पांडेय जैसे जनप्रतिनिधियों ने हिस्सा लिया।
1998 के बाद पूर्व केंद्रीय मंत्री कल्पनाथ राय, पूर्व सांसद हरिकेवल प्रसाद व शतरुद्र प्रकाश जैसे नेता भी इस मंच से जुड़ गए। उन दिनों पूर्व प्रधानमंत्री विश्वनाथ प्रताप सिंह व एचडी देवगौड़ा भी इसके समर्थकों में शामिल हो गए। इसी बीच लखनऊ में हुई बैठक में पूर्वाचल बनाओ मंच की जगह पूर्वाचल राज्य बनाओ मंच पर सहमति बनी। 1998 में ही प्रभुनारायण सिंह अध्यक्ष, कल्पनाथ राय कार्यकारी अध्यक्ष और डा.सुधाकर पांडेय को संगठन महासचिव बनाया गया।
राजनीतिक स्वरूप 2004 में मिला राज्य निर्माण को लेकर जब संस्थागत युक्ति काम न आती दिखी तो इन जनप्रतिनिधियों ने संस्था को राजनीतिक स्वरूप दे दिया और 2004 में पूर्वाचल राज्य बनाओ दल के नाम से एक राजनीतिक दल भारत निर्वाचन आयोग में पंजीकृत कराया गया। रामधारी शास्त्री 2004 से 2010 तक दल के अध्यक्ष रहे। इसके बाद दल की कमान डा.सुधाकर पांडेय संभाल रहे हैं।
पूर्वाचल राज्य के लिए प्रस्तावित 27 जिले पूर्वाचल राज्य बनता है तो यह एक समृद्ध राज्य होगा। इसके हिस्से में बहराइच, श्रावस्ती, बलरामपुर, गोंडा, फैजाबाद, बस्ती, सिद्धार्थनगर, संतकबीरनगर, अंबेडकरनगर, सुल्तानपुर, प्रतापगढ़, गोरखपुर, महराजगंज, कुशीनगर, देवरिया, मऊ, गाजीपुर, बलिया, आजमगढ़, जौनपुर, संत रविदासनगर (भदोही), कौशांबी, इलाहाबाद (अब प्रयागराज), वाराणसी, चंदौली, मिर्जापुर, सोनभद्र समेत 27 जिले प्रस्तावित हैं। संपदाओं से भरपूर पूर्वाचल सोनभद्र की पहाड़ियों में चूना, पत्थर, कोयला मिलने के साथ ही देश की सबसे बड़ी सीमेंट फैक्ट्रियां, बिजली घर (थर्मल व हाइड्रो), एल्युमिनियम व रासायनिक इकाईयां स्थित हैं। इसके अलावा कई सहायक इकाईयां व असंगठित उत्पादन केंद्र (विशेष रूप से स्टोन क्रशर) भी स्थापित हुए हैं जिससे यह क्षेत्र औद्योगिक विकास में महत्वपूर्ण भूमिका अदा कर रहा है।
भदोही का कालीन कारोबार, बनारस की विश्व प्रसिद्ध साड़ियां, मऊ व आजमगढ़ में बुनकरों की कारीगरी, जौनपुर का इत्र, मिर्जापुर का पीतल, गोरखपुर का टेराकोटा आदि इस इलाके को औद्योगिक रूप से संपन्न बनाते हैं। छोटे व क्षेत्रीय दल कर रहे लगातार मांग अलग पूर्वाचल राज्य बनाने की मांग छोटे दल लगातार कर रहे हैं। आम आदमी पार्टी ने मुद्दा उठाते हुए आंदोलन छेड़ने का एलान किया था। सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी के अध्यक्ष व प्रदेश सरकार में कैबिनेट मंत्री ओमप्रकाश राजभर सूबे को चार राज्यों में बांटने की मांग का समर्थन करते हैं। राष्ट्रीय लोकदल पार्टी भी पश्चिमी उत्तर प्रदेश के कुछ जिलों को मिलाकर अलग हरित प्रदेश की मांग कर रही है। बसपा भी छोटे राज्यों की पक्षधर रही है। कई अन्य छोटे दल व संगठन भी पूर्वाचल को अलग करने के लिए लगातार मांग व प्रदर्शन कर रहे हैं।
मायावती ने चार राज्यों का भेजा था प्रस्ताव नवंबर 2011 में तत्कालीन मायावती सरकार ने राज्य विधानसभा में उत्तर प्रदेश को चार राज्यों पूर्वाचल, बुंदेलखंड, पश्चिम प्रदेश और अवध प्रदेश में बांटने का प्रस्ताव पारित कराकर केंद्र सरकार को भेजा था। हालाकि कुछ ही महीनों बाद प्रदेश में समाजवादी पार्टी की सरकार बनने के बाद यह मामला ठंडे बस्ते में चला गया था। वर्ष 2012 के विधानसभा चुनाव में समाजवादी पार्टी ने प्रदेश को चार हिस्सों में बांटने के विधेयक का विरोध किया। इसलिए पुनर्गठन आवश्यक देवरिया के पूर्व विधायक सुभाष चंद्र श्रीवास्तव का कहना है कि भूगोल, जनसंख्या व प्रशासन की दृष्टि से उत्तर प्रदेश का पुनर्गठन आवश्यक है। बगैर पुनर्गठन के राज्य में व्याप्त क्षेत्रीय असंतुलन दूर नहीं हो सकता।
पूर्वाचल के चतुर्दिक विकास के लिए अलग राज्य का दर्जा मिलना जरूरी है। क्योंकि उत्तराखंड जबसे अलग हुआ है वहां तेजी से विकास हो रहा है। पूरे प्रदेश में पूर्वाचल की आबादी की हिस्सेदारी लगभग 40 फीसद है। इसलिए पूर्वाचल को योजना परिव्यय में 40 फीसद हिस्सेदारी मिलनी चाहिए। तो ऐसे भी हो सकता है विकास गोविवि में ¨हदी विभाग के पूर्व अध्यक्ष प्रो. चित्तरंजन मिश्र का कहना है कि एक राज्य को स्थापित करने में जिन आधारभूत संरचनाओं की जरूरत पड़ती है, उन्हें खड़ा करने में एक बड़ी धनराशि खर्च होती है। वह धनराशि पूर्वाचल में अलग राज्य बनने के पूर्व ही खर्च कर दी जाए तो वैसे ही पूर्वाचल का विकास हो जाएगा। मायावती सरकार ने तो उत्तर प्रदेश को चार भागों में बांटने का विधान सभा में प्रस्ताव पास कर केंद्र सरकार को भेज भी दिया था, लेकिन बाद में उसका औचित्य नहीं पाया गया, इसलिए इस पर कार्यवाही आगे नहीं बढ़ी।
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