आपको भूख लगी है तो किसी होटल में जाने की जरूरत नहीं, हर जगह मौजूद है फूड वैन Gorakhpur News
चटपटे लजीज व्यंजन अब सहज रूप से गली नुक्कड़ चौराहों पर उपलब्ध हैं। घर के पास नुक्कड़ पर खड़ी मोबाइल फूड वैन आपके स्वागत को तैयार है।
गोरखपुर, जेएनएन। भूख लगी है, कुछ चटपटा खाने का मन कर रहा है तो इसके लिए तैयार होकर होटल, रेस्तरां में जाने की जरूरत नहीं। घर के पास नुक्कड़ पर खड़ी मोबाइल फूड वैन आपके स्वागत को तैयार है। आर्डर करते ही चंद मिनटों में खाना आपके सामने होगा, वह भी आपके पसंद का। जी हां, लोगों की सुविधा और पसंद को ध्यान में रखते हुए बीते डेढ़-दो वर्षों में फूड वैन की संख्या तेजी से बढ़ी है। नए कलेवर और नए फ्लेवर के साथ फास्ट फूड व देसी व्यंजन आपके गली-मोहल्लों और चौराहों पर सहज उपलब्ध होने लगे हैं। फूड-रिक्शा, फूड-वैन, फूड-ट्रक जैसे नाम के वाहनों में फटाफट व्यंजन बनते हैं और साफ-सुथरे ढंग से परोसे जाते हैं। दरअसल, मेट्रो-सिटीज का मोबाइल फूड कल्चर पूर्वांचल में तेजी से पांव पसार रहा है। झटपट और राह चलते भूख मिटाने का यह नया तरीका शहर के युवाओं और महिलाओं में खासा लोकप्रिय है।
घर से निकलते ही, कुछ दूर चलते ही--
फिल्मी गाने की ये पंक्ति मोबाइल फूड वैन के संदर्भ में बिल्कुल सही साबित हो रही है। चटपटे, लजीज व्यंजन अब सहज रूप से गली, नुक्कड़, चौराहों पर उपलब्ध हैं। चाउमीन, पावभाजी, पिज्जा, मोमोज, बर्गर जैसे फास्ट-फूड के साथ चउवां-फरा, इडली-फ्राई, उपमा, सिवईं जैसे पारंपरिक देसी व्यंजन पूरी गुणवत्ता के साथ लोगों तक पंहुच रहे हैं। स्ट्रीट-फूड में हुए इस बदलाव की वजह हमारा शिक्षित युवा है जो खानपान में नए बदलाव के साथ हमारे बीच है।
बदल रहा ट्रेंड
अल्पशिक्षित या अशिक्षित लोग ही समोसे, चाट-टिक्की के ठेले लगाकर व्यवसाय करते थे। अब यह ट्रेंड बदल रहा है। ठेले की जगह वाहनों ने लेनी शुरू कर दी है। सड़क किनारे बिक रहे व्यंजनों में जब पढ़े-लिखे युवाओं की नई सोच का तड़का लगा तो इन व्यंजनों का स्वाद व स्वरूप दोनों बदल गया। दरअसल मोबाइल फूड कल्चर आज की तेज रफ्तार जिंदगी में फिट बैठता है। कोचिंग या हॉबी क्लास के लिए निकले ब'चे हों या शॉपिंग, कामकाज के सिलसिले में निकली महिलाएं जहां हैं, खड़े-खड़े वहीं भूख मिटा लिया।
यहां पर हर तरह के भोजन
शाकाहारी, मांसाहारी, मौसमी व्यंजनों के साथ आइसक्रीम, लस्सी, शेक सभी कुछ। आकर्षक ढंग से परोसे गए मोबाइल फूड के व्यंजन गुणवत्ता व स्व'छता के मानक पर भी खरे उतरते हैं। कीमत भी पॉकेट फ्रेंडली। यही वजह है कि शाम होते-होते शहर के तारामंडल, असुरन, गोरखनाथ, इंदिरा बाल विहार, मोहद्दीपुर, रुस्तमपुर, बक्शीपुर में इन वाहनों पर खाने वाले लोगों की संख्या बढ़ती जा रही है।
कुछ अलग करने की चाहत
इलाहीबाग के रहने वाले अनादि प्रिय पाठक ने दिल्ली से एमबीए करने के बाद वहीं की सॉफ्टवेयर कंपनी में नौकरी ज्वॉइन कर ली। इस बीच वहां लोगों में मोबाइल फूड का जबरदस्त क्रेज देखा। खाने-खिलाने का शौक था तो सोचा क्यूं न मैं भी यही व्यवसाय करुं। नौकरी से इस्तीफा देकर घर वापस आए और मोबाइल फूड वैन से संबधित सारी जानकारी जुटाई। मुद्रा योजना से लोन लेकर मेरठ से खास तरीके का रिक्शा बनवाया। मां सुशीला के सहयोग से खाना बनाने का काम शुरू किया। फास्ट-फूड से इतर पारंपरिक चउवां-फरा, कर्ड-राइस, सेवईं-उपमा, इंदौरी-पोहा इनके मेन्यू में शामिल है। इन्होंने सात-आठ लोगों को रोजगार दे रखा है। लोगों की सकारात्मक प्रतिक्रियाओं से उत्साहित अनादि फूड व्यवसाय को विस्तार देने की योजना बना रहे हैं।
11 लोगों को दिया है रोजगार
दिल्ली की बहुराष्ट्रीय कंपनी में काम करने वाले अरुण प्रसाद को वहां की दौड़ भाग वाली जिंदगी रास नहीं आई। चौदह साल काम करने के बाद नौकरी छोड़ दी। घर वापस आए और मोबाइल फूड व्यवसाय से जुडऩे का मन बनाया। अपने निर्देशन में विशेष तरीके की वैन बनवाई। पूर्वांचल के लोगों की पसंद को ध्यान में रखते हुए खाने का मेन्यू बनाया और काम शुरू कर दिया। चिकेन पॉपकॉर्न और नॉनवेज बर्गर इनके मोबाइल वैन की खास डिश है। पनीर रोल, चिली पोटैटो लोगों की पसंद को ध्यान में रखते हुए बनाई जाती है। अरुण ने 11 लोगों को रोजगार दे रखा है। ढाई साल में वाहनों की संख्या एक से बढ़कर चार हो गई है।
मनपसंद व्यंजन खिलाकर मिलती है खुशी
अश्विनी कुमार ने इलेक्ट्रानिक्स में डिप्लोमा लिया है। नौ साल तक टेलीकॉम कंपनी में नौकरी करने के बाद और मन नहीं लगा तो नौकरी छोड़ अपना व्यवसाय शुरू किया। दो साल हो गए फास्ट-फूड के व्यवसाय से जुड़े हुए। अश्विनी कहते हैं कि मेरे बनाए व्यंजनों को जब लोग चाव से खाते हैं तो मन को बहुत तसल्ली मिलती है। हलांकि इस काम की अपनी मुश्किलें हैं इसमें अनुभव व अनुमान बहुत मायने रखते हैं ताकि बनाया हुए सारे व्यंजनों की खपत हो जाए। खाने की गुणवत्ता व स्वाद ऐसा हो कि हर खाने वाले को लंबे समय तक याद रहे।
जाने-इनका क्या है अनुभव
कृष्णानगर निवासी आकाश तिवारी का कहना है कि कोचिंग क्लास के बीच जब भी ब्रेक मिलता है, मैं सारे दोस्तों के साथ पास की मोबाइल फूड वैन पर जाता हूं। पांच मिनट में मनपसंद चीज खाकर पेट तो भरता ही है मूड भी तरोताजा हो जाता है। इसी तरह पादरी बाजार निवासी आंचल श्रीवास्तव का कहना है कि पढ़ाई और हॉबी क्लास के कारण पूरा दिन व्यस्तता भरा होता है। ऐसे में फूड ट्रक पर कुछ खाकर भूख मिटा लेती हूं। बिना अतिरिक्त समय निकाले मनपसंद व्यंजन खाने को मिल जाता है। जबकि दुर्गाबाड़ी निवासी सीमा गुप्ता का कहना है कि वास्तव में मोबाइल फूड वैन आज के समय की मांग है। कम समय और कम पैसे में साफ-सुथरे तरीके से बना मनचाहा खाना। मैं जब भी शॉपिंग के लिए निकलती हूं फूड वैन पर खाना नहीं भूलती।