आमदनी चवन्नी नहीं, खर्चा तीन लाख से ज्यादा- 40 लाख रुपये खर्च
नगर निगम ने अपनी कमाई के लिए क्रेन खरीदा था लेकिन इससे नगर निगम को कोई कमाई नहीं हो रही है। नवंबर में तीन लाख रुपये से ज्यादा खर्च होने के बाद भी क्रेनों से एक रुपये की कमाई नहीं हुई।
गोरखपुर, दुर्गेश त्रिपाठी। कमाई के लिए नगर निगम में खरीदी गई तीन क्रेन अब घाटे का सौदा बन गई हैं। नवंबर में तीन लाख रुपये से ज्यादा खर्च होने के बाद भी क्रेनों से एक रुपये की कमाई नहीं हुई। यानी क्रेन तो सड़क पर चली लेकिन किसी वाहन का चालान नहीं हुआ। क्रेनों पर सालाना 40 लाख रुपये से ज्यादा खर्च होने के बाद सात लाख रुपये भी कमाई न होने की जानकारी नगर आयुक्त को मिली तो उन्होंने माथा पीट लिया। नगर आयुक्त ने क्रेन सेवा को बंद कर दिया है। तीनों क्रेन को जमा कराकर इन पर तैनात चालकों को दूसरे वाहनों पर तैनाती दी जा रही है।
वाहनों को उठाने के लिए खरीदे तीन क्रेन
शहर में यातायात में बाधक बने वाहनों को उठाकर पुलिस लाइन पहुंचाने के लिए नगर निगम प्रशासन ने कुछ साल पहले तीन क्रेन की खरीद की थी। क्रेन पर चालकों की तैनाती नगर निगम ने की थी। क्रेन का तेल और मेंटीनेंस भी नगर निगम के जिम्मे था। शहर में यातायात पुलिस के जवानों के साथ क्रेन का संचालन किया जाता था। नगर निगम के चालक क्रेन से बेतरतीब खड़े वाहनों को उठाकर पुलिस लाइन ले जाते थे। यहां वाहन चालकों से जुर्माना जमा कराया जाता था। जुर्माना की राशि नगर निगम और यातायात विभाग में बांटी जाती थी।
निजी क्रेन सर्विस का मामला फंसा
लखनऊ की निजी क्रेन सर्विस ने शहर में बेतरतीब खड़े वाहनों को उठाने का नगर निगम प्रशासन से करार किया था। इसके तहत निजी सर्विस के लोग नगर निगम के तीन क्रेन का प्रति माह 50 हजार रुपये देते, साथा ही वह अपनी सात क्रेन लेकर आते। वाहनों से जुर्माना के एवज में नगर निगम को भी हिस्सा मिलता लेकिन कार्य और जुर्माना की राशि को लेकर मामला फंसा हुआ है।
नगर निगम में किसी तरह की फिजूलखर्ची बर्दाश्त नहीं की जाएगी। क्रेन सेवा में कमाई के मुकाबले खर्च पांच गुना से ज्यादा खर्च था। इसे देखते हुए तीनों क्रेन खड़ी करा दी गई हैं। - अविनाश सिंह, नगर आयुक्त।