कभी लोगों से मदद मांग रही थी, अब कर रही दूसरों की मदद
गरीबी के कारण कभी लोगों से मदद मांगने वाली निशा ने अपने जज्बे से गरीबी को मात दी। अब वह दूसरों की मदद कर रही है।
गोरखपुर, (सौरभ कुमार मिश्र)। वह कहने के लिए बेटी है, लेकिन सच यह है कि बेटों से चार कदम आगे है। उसमें समस्याओं के सीने पर पांव रख आगे बढ़ने का हौसला है। छोटी सी उम्र में उसे दर्द ही दर्द मिले। बाबुल के घर बेटी का तो प्यार मिला, लेकिन शादी के बाद उसके जिंदगी की नाव ऐसे मझधार में फंसी कि डूबने के कगार पर जा पहुंची। निशा ने संघर्ष का पतवार थामा और वह कर दिखाया जो सभी के बूते की बात नहीं है। हम बात कर रहे हैं देवरिया शहर के सीसी रोड स्थित हनुमान मंदिर के समीप रहने वाली होनहार बेटी निशा तिवारी की। उसकी दिनचर्या अखबार बांटने से शुरू होती है और शाम आटो रिक्शा चलाते हुए ढलती है।
प्रतिदिन हो रही 1000-1200 रुपये की कमाई
देवरिया शहर में आटो रिक्शा चलाने वाली यह इकलौती बेटी है। कभी आर्थिक तंगी से जूझने वाली निशा आज प्रतिदिन बारह सौ रुपये कमा रही है। परिवार को आर्थिक तंगी से उबारने के साथ ही वह समाज के लिए नजीर बन गई है। देवरिया के भागलपुर विकास खंड के परसिया चंदौर निवासी निशा के पिता रामवृक्ष तिवारी असम के डिगबोई में इंडियन आयल में ड्राइवर की नौकरी करते थे। मां बचपन में ही बीमारी से चल बसी। उधर इकलौती संतान होने के कारण पिता ने अपनी इस बेटी को बेटे की तरह पाला। असोम के सोमड़ विद्या स्कूल से हाई स्कूल पास किया। अभी आगे की पढ़ाई कर रही थी कि पिता ने वहीं शादी करा दी। एक बेटा हुआ लेकिन दुर्भाग्य कुछ ही माह बाद मार्ग दुर्घटना में पति ने सदा के लिए साथ छोड़ दिया। इस बीच पिता उसे लेकर गांव आ गए और कम उम्र व पहाड़ जैसी जिंदगी देख पिता ने आनन फानन उसकी दूसरी शादी करा दी, लेकिन निशा की जिंदगी में शायद पति का सुख नहीं नसीब था। पति तो है, लेकिन निशा से कोई मतलब नहीं रखता। निशा अपने बेटे को असोम के डिगबोई के डीपीएस स्कूल में हास्टल में रखकर पढ़ाती है।
सुबह अखबार बांटती है, दिन में चलाती है ऑटो
अखबार बांटते समय किसी ने सुझाया कि तुम मोटर साइकिल चला लेती हो तो ई-रिक्शा भी चला सकती हो। उसने ई-रिक्शा चलाना सीखा और ई-रिक्शा चलाने के लिए पहली बार किराये पर देवरिया रामनाथ के जय प्रकाश मणि ने उसे ई-रिक्शा दिया। निशा ने अगले दिन से ई-रिक्शा लेकर फर्राटा भरना शुरू कर दिया तो उसे देख लोग दंग रह गए। आज उसके मोबाइल पर लगातार यात्रियों का फोन आता रहता है। निशा कहती है कि ई-रिक्शा से 1000 रुपये व अखबार बांट कर 200 रुपये रोज कमा लेती हूं। कभी आर्थिक रूप से बेहद कमजोर निशा तिवारी अब जरूरतमंदों की आर्थिक रूप से मदद भी करती हैं।